पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६७

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1, अव उस दालान की खुदाई हुई जिसके बगल वाली कोठरी के अन्दर से तहखाने में जार का रास्ता था। हाथ भर तक जमीन खोदने के बाद लाहे की सतह निकल आई जिसमें छेद हाना भी मुश्किल था। यह देख वीरेन्द्रसिह को भी बहुत रज हुआ और उन्होंने खडहर के बीच की जमीन अर्थात चौक खादन का हुक्म दिया। दूसरे दिन चोक की खुदाई से छुट्टी मिली खुद जाने पर वहाँ एक छोटी सी खूबसूरत बावली निकली जिसके चारों तरफ छोटी छोटी सगमरमर की सीढियाँ थीं। यह बावली दस गज से ज्यादे गहरीन थी और इसके नीचे की सतह तीन गज चौडी और इतनी ही लम्बी होगी। दोपहर दिन चढते चढत उस यावली की मिट्टी निकल गई और नीचे की सतह में पीतल की एक मूरत दिखाई दी। मूरत बहुत बड़ी न थी एक हिरन का शर ने शिकार किया था, हिरन की गर्दन का आधा हिस्सा शेर के मुह में था। मूरत बहुत ही खूबसूरत और कीमती थी मगर मिट्टी के अन्दर बहुत दिनों तक दवे रहने से मैली और खराब हो रही थी। वीरेन्द्रसिह न उसे अच्छी तरह झाडपोछ कर साफ करने का हुक्म दिया। बीरेन्द्रसिह ने तज सिह से कहा इस खुदाई में समय भी बहुत नष्ट हुआ और कुछ काम भी न चला। तेज--में इस मूरत पर अच्छी तरह गौर कर रहा हूँ, मुझे आशा है कि कोई अनूठी बात जरूर दिखाई देगी। वीरेन्द्र-(ताज्जुय में आकर ) देखो देखो शर की आखे इस तरह घूम रही है जैसे वह इधर उधर देख रहा हो । आनन्द-(अच्छी तरह देख कर ) हाँ ठीक तो है। इसी समय एक आदमी दौडता हुआ आया और हाथ जोड़ कर बोला महाराज चारा तरफ से दुश्मन की फौज न आकर हम लागों को घेर लिया दो हजार सवारों के साथ शिवदत्त आ पहुंचा जरा मैदान की तरफ देखिए । न मालूम शिवदत्त इतन दिनों तक कहा छिपा हुआ था और क्या कर रहा था। इस समय दो हजार फौज के साथ उसका यकायक आ पहुंचना और चारों तरफ स खडहर को घेर लेना बडा ही दुखदायी हुआ क्योंकि वीरेन्द्रसिह क पास इस समय केवल सौ सिपाही थे। सूय अस्त हो चुका था चारों तरफ से अन्धेरी घिरी चली आती थी। फौज सहित राजा शिवदत्त जब तक खडहर के पास पहुंचे तब तक रात हो गई। राजा शिवदत्त को यह तो मालूम हो गया कि केवल सौ सिपाहियों के साथ राजा वीरन्द्रसिंह कुँअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लाग इसी खडहर में हैं परन्तु राजा वीरेन्द्रसिह कुमार और उनके ऐयारों की वीरता और साहस को भी वह अच्छी तरह जानता था इसलिए रात के समय खंडहर के अन्दर घुसने की उसकी हिम्मत न पडी। यद्यपि उसके साथ दो हजार सिपाही थे मगर खडहर के अन्दर डेढ दो सो सिपाहियों से ज्यादे नहीजा सकते थे क्योंकि उसके अन्दर ज्यादे जमीन न थी और वीरेन्दसिह तथा उनके साथी इतने आदमियों को कुछ भी न समझत थे इसलिए शिक्दत्त ने साचा कि रात भर इस खडहरको घेर कर चुपचाप पड़े रहना ही उत्तम हागा। वास्तव में शिवदत्त का विचार बहुत ठीक था और उसने ऐसा ही किया। राजा वीरेन्द्रसिह को भी रात भर सोचने विचारने की माहलत मिली। उन्होंने कई सिपाहियों को फाटक पर मुस्तैद कर दिया और उसके बाद अपने बचाव का ढग सोचने तगे। दूसरा बयान इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह काई ताज्जुब की बात नहीं है क्योंकि लडको और दास्त एयारों के सहित राजा वीरेन्दसिह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन हो गया है। शिग्दत्त के आदमियों ने उस खडहर का चारों तरफ से घेर लिया और उसे निश्चय हो गया कि अब हम पुन चुनार की गद्दी पावेंगे और इसके साथ नौगढ विजयगढ गयाजी और रोहतासगढ की हुकूमत भी बिना परिश्रम हाथ लगेगी। एक घने वटवृक्ष के नीचे अपने दोस्तों और एयारों को साथ लिये बैठा शिवदत गप्पे उडा रहा है। ऊपर एक सफेद चन्दया तना हुआ है। विछावन और गद्दी उसी प्रकार की है जैसी मामूली सरदार अथवा डाकुओं के भारीगरोह के अफसर की होनी चाहिए। दो मशालची हाथ में मशाल लिये सामने खडे है और इधर उधर कई जगह आग सुलग रही है। बाकरअली खुदाबक्श यारअली और अजायबसिह ऐयार शिवदत्त के दानों तरफ बैठे है और सभों की निगाह उन शराब की बोतलों और प्यालों पर बराबर पड रही है जो शिवदत्त के सामने काठ की चौकी पर रक्खी हुई हैं। धीरे धीरे शराब पीने के साथ साथ सब कोई शखी बघार रह है। कोई अपनी बहादुरी की तारिफ कर रहा हैतो कोई वीरेन्द्रसिह वगैरह को सहज में गिरफ्तार करने की तीव बता रहा है। शिवदत्त ने सिर उठाया और वाकरअली ऐयार की तरफ देख कर कुछ कहना चाहा परन्तु उसी समय उसकी निगाह सामने मैदान की तरफ जा पड़ी और वह चौक उठा। एयारों ने भी चन्द्रकान्ता सन्तत्ति भाग ६