पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७७

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GYM या तुम्हारे चारो तरफ होगा उसकी आखें तो बन्द हो जायेंगी मगर तुम्हारी आखें खुली रहेंगी और तुम दुश्मन को बखूबी मार सकोगे। इतना कह कर कमलिनी ने एक एक अगूठी तीनों को पहिरा दी और इसके बाद एक एक खजर तीनों के हवाले किया। तारा भूतनाथ और नानक एसा अदभूत खजर पाकर हद से ज्यादे खुश हुए और घडी घडी उसका कब्जा दबा कर उसकी चमक का मजा लेते रहे। कम-अब एक खजर ओर एक अगूठी यच गई सो कुँअर इन्द्रजीतसिह के लिए अपने पास रक्तूंगी जिस समय उनसे मुलाकात होगी उनके हवाले करुंगी और यह अगूठी जो मेरी उगली में है और यह नेजा जो अपने वास्ते लाई हूँ, इसमें भी वही गुण है जा खजर में है मगर फर्क इतना है कि बनिस्बत खजर के इस नेजे में बिजली का असर बहुत ज्यादे । उस नेज के चार टुकडे थे जो पेंच पर चढा कर एक कर दिये जाते थे। कमलिनी ने इन चारों टुकड़ों को एक कर दिया और अब वह पूरा नेजा हा गया। भूत-इसमें काई सन्देह नहीं कि आपने हम लोगों को अद्भुत और अनमोल चीजदी इसकी बदौलत हम लोगों के हाथ से बड बड़े काम निकलेंगे। इसकवाद कमलिनी ने वह कपड़े की गठरी खोली। इसमें स्याह रग की एक साडी एक चोली और एक बोतल थी। कमलिनी उठ कर समाधि के पीछे गई और गीले कपडे उतार कर वही काली साडी और चोली पहिर कर अपने ठिकाने आ बैठी। वह साडी और चोली रेशमी थी और उसमें एक प्रकार का रोगन चढा हुआ था जिसके सबब उस कपड़े पर पानी का असर नहीं होता था। कमलिनी ने वह गीली साडी और चोली तारा के सामने रख दी और बोली "इसेतू पेड़ पर डाल दे जिसमें झटपट सूख जाय इसके बाद तू कमलिनी बन जा अर्थात मेरी तरह अपनी सूरत बना ले और इसी साडी और चोली का पहिर कर मेरे घर अर्थात उस तालाव वाले मकान में जाकर बैठ जिसमें नोकरों को मेरे गायब होने का हाल मालूम न हो वे यहीं समझ कि तारा कहीं गई हुई है। तारा-बहुत अच्छा मगर आप कहा जायगी कम-मेरा काई ठिकाना नहीं मुझे बहुत काम करना है। (भूतनाथ और नानक की तरफ देख कर) आप लोग भी जाइये और जहाँ तक हो सके राजा वीरेन्द्रसिह की भलाई का उद्योग कीजिये। नानक बहुत अच्छा । ( हाथ जोड कर } मेरी एक बात का जवाब दीजिये तो बड़ी कृपा होगी। कम-वह क्या? नानक-इस प्रकार का खजर उन लोगों के पास भी है या नहीं? कम-(हॅस कर ) क्या उन लोगों के पास पुन जाने की इच्छा है ? अपनी रामभोली को देखा चाहता है। नानक-हाँ यदि मौका मिलेगा तो। कम-अच्छा जा काई हर्ज नहीं, इस प्रकार की कोई वस्तु उन लोगों के पास नहीं है और न इसका पता ही मिल सकता है मगर जो कुछ कीजिये होशियारी के साथ। इसके बाद कमलिनी ने वह बोतल खोली जो कपड़े की गठरी में थी। उसमें किसी प्रकार का अर्क था। समाधि के पीछे जाकर कमलिनी ने वह अर्क अपने तमाम बदन में लगाया जिससे बात की बात में उसका रंग बहुत ही काला हो गया तब वह फिर तारा के पास आई और उससे दो लम्बे बनावटी दात लेकर अपने मुह में लगाने के बाद नेजा हाथ में लेकर खड़ी हो गई। तारा ने भी अपनी सूरत बदली और कमलिनी बन कर तैयार हो गई। इस काम में भूतनाथ ने उसकी मदद की। कमलिनी के हुक्म से वह सन्दूक और जजीर पानी में डाल दी गई। कमलिनी ने अपने घोडे को आवाज दी। यद्यपि.वह कुछ दूर पर चर रहा था परन्तु मालिक की आवाज के साथ ही दौड़ता हुआ पास आ गया। तारा ने उसे पकड़ लिया और चारजामा कस कर उस पर सवार हो गई तथा कमलिनी तारा के घोड़े पर सवार हुई। अन्त में चारों आदमी कुछ सलाह करके अलग हुए और चारों ने अपना अपना रास्ता लिया अर्थात् उसी जगह से चारों आदमी जुदा हो गए। इस वारदात के कई दिन बाद कमलिनी इसी राक्षसी वेष में नेजा लिए रोहतासगढ की पहाड़ी पर कनिस्तान में कमला से मिली थी इसी ने राजा वीरेन्द्रसिह वगैरह को कैद से छुडाया और फिर भी कई दफे उनके काम आई थी जिसका हाल पिछले बयानों में लिखा जा चुका है। 1 न चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६