पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३८९

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दि जडाऊ कुर्सियाँ थीं और दोनों तरफ वाली जडाऊ कुर्सियों पर नौजवान और खूबसूरत औरतें बडे ठाठ से बैठी हुई थी मैं उस दर का कभी न भूलूगी। कम--ठीक है ता अब तुझ मायारानी को देखने की जरूरत नहीं खैर मुख्तसर में कह कि फिर क्या हुआ? कमला-पहिल यह बता दीजिए कि मायारानी के वमल में छोट सिहासन पर कौन औरत थी क्योकि वह भी चडी ही खूबसूरत थी। कम-वह मेरी छाटीबहिन थी। सब स बडीमायारानी उससे छोटी में और मुझसे छोटी वही औरत है उसका नाम लाडिली है। कमला-आपकी और भी काई वहिन है। कम नहीं हम तीनों के सिवाय और कोई भाई या बहिन नहीं है। अब अपना हाल कह फिर क्या हुआ? कमला-मायारानी के सिहासन के पीछे मनारमा खडी थी। उन्हीं सभों की बातचीत से मुझे मालूम हुआ कि उसका नाम मनोरमा है। वह बडी दुष्ट थी ? कम-थी नहीं बल्कि है हॉ खैर तब क्या हुआ? कमला-ऐसे दर्बार को देख मैं घबडा गई। जिधर निगाह पडती थी उघर ही एक से एक बढकर जड़ाऊ चीजें नजर आती थीं। मै हैरान थी कि इतनी दौलत इन लोगों के पास कहाँ से आई और ये लोग कौन है। मै ताज्जुब में आकर चारों तरफ देखने लगी। यकायक मेरी निगाह कुँअर आनन्दसिह और तारासिह पर पड़ी। कुँअर आनन्दसिह हथकड़ी और बेडी से लाचार मेर पीछे की तरफ बैठे थे उनके पास उन्हीं की तरह हथकड़ी बेडी से वेषस तारासिह भी बैठे थे फर्फ इतना था कि कुँअर आनन्दसिह जख्मीन थे मगर तारासिह बहुत ही जमी और खून से तरबतर हो रहे थे। उनकी पोशाक खून स रगी हुई मालूम पडती थी। यद्यपि उनके जख्मों पर पट्टी बंधी हुई थी मगर सूरत देखने से साफ मालूम पड़ता था कि उनके बदन से खून बहुत निकल गया है और इसी से वे सुस्त और कमजोर हो रहे हैं। कुमार की अवस्था देख कर मुझे क्रोध चढ़ आया मगर क्या कर सकती थी क्योंकि हथकडी और बेडी ने मुझे भी लाचार कर रक्खा था। हाथ में नगी तलवारें लिए कई औरतें कुँअर आनन्दसिह तारासिह और मुझको घेरे हुए थीं। यह जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा था कि जब हम लोग बेहोश करके यहाँ लाए गये तो तारासिह को जखमी करने की आवश्यकता क्यों पडी। मायारानी ने मनोरमा की तरफ देखा और कुछ इशारा किया मनोरमा तुरन्त मेरे पास आई। उसके एक हाथ में कोई चीती थी और दूसरे हाथ में कलम और दावात। मनोरमा ने वह चीठी मेरे आगे रख दी और उस पर हस्ताक्षर कर देने के लिए मुझे कहा मैंने चीठी पढी और क्रोध के साथ हस्ताक्षर करने से इन्कार किया। कम-उस चीठी में क्या लिखा था? कमला-वह चीटी मेरी तरफ से राजा वीरेन्द्रसिह के नाम लिखी गई थी और उसमें यह लिखा हुआ था- आप चीठी देखते ही केवल एक ऐयार को लेकर इस आदमी के साथ बेखौफ चले आइए। कुँअर इन्दजीतसिह आनन्दसिह और किशोरी वगैरह इसी जगह कैद है। उनको छुडाने का पूरा पूरा उद्योग कर चुकी हूँ केवल आपके आने की देर है। यदि आप तीन दिन के अन्दर यहाँ न पहुंचेंगे तो इन लोगों में से एक की भी जान न बचेगी। कम- अच्छा फिर क्या हुआ? कमला-जब मैने दस्तखत करने से इन्कार किया तो मनोरमा बहुत बिगडी और बोली कि यदि तू हस्ताक्षर न करेगी तो तेरे सामने ही कुँअर आनन्दसिह और तारासिह का सिर काट लिया जायगा और उसके बाद तुझे भी सूली दे दी जायगी । यह सुनकर मैं घबडा गई और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए इतने में ही तारासिह ने मुझे पुकार कर कहा 'कमला उस चीठी में जो कुछ लिखा है मैं अन्दाज से कुछ कुछ समझ गया खबरदार इन लोगों के धमकाने में न आइयो और चाहे जो हो उस चीठी पर दस्तखतन कीजियो। तारासिह की बात सुन कर मायारानी की तो भृकुटी ही चढ़ गई परन्तु मनोरमा बहुत ही उछली कूदी और बकझक करने लगी। उसने मायारानी की तरफ देख कर कहा, कम्बख्त तारासिह को अवश्य सूली देनी चाहिए उसने यहाँ का रास्ता भी देख लिया है इसलिए उसका मारना आवश्यक हो गया है और इस नालायक कमला को सरकार मेरे हवाले करें में इसे अपने घर ले जाऊँगी। मायारानी के इशारे से मनोरमा की बात मजूर की। मनोरमा ने एक चोबदार औरत की तरफ देख कर कहा 'कमला को ले जाकर कैद में रक्खो। चार पाँच दिन बाद काशीजी में हमारे घर भिजवा देना क्योंकि इस समय मुझे एक जरूरी काम के लिए जाना है जहाँ से तीन चार दिन के अन्दर शायद न लौट सकूँगी। हुक्म के साथ ही मुझ पर पुन चादर डाल दी गई जिसकी तेज महक ने मुझका वेहोश कर दिया और फिर जव मैं होश में आई अपने को एक अन्धेरी कोठरी में कैद पाया।

  • इसी दर्बार में रामभोली का आशिक नानक गया था।

- चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६