पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Le ta जसवन्तसिह को बेहाश होकर गिरते देख महारानी ने लौडिया को कहा, 'देखो देखा सम्हालो. यह रनवीरसिह का दिली दोस्त है, इसे कुछ न होने पाव, वेदमिश्क वगैरह लाकर जल्द इस पर छिडका ! मुँह पर अर्क बेदमिश्क इत्यादि छिडकने स थाडी देर में जसवन्तसिह होश में आये और रानी के सामने बैठ कर बोल 'क्या में स्वप्न देख रहा हू या जाग रहा हू' नहीं नहीं यह स्वप्न नहीं है. मगर स्वप्न नहीं तो आखिर है क्या ? क्या आप ही की मूरत उस पहाडी के ऊपर थी ? नहीं नहीं इसमें तो कोई शक ही नहीं कि वह आपही की मूरत थी जिसकी बदालत मेरे दोस्त पर वह आफत आई ओर मुझको उनके साथ से अलग हाना पड़ा ठीक है वह सगीन मूरत (पत्थर की मूरत) आप ही की थी जिसे कारीगर सगतराश न यडी मेहनत और कारीगरी से बनाया था मगर इतनी नजाकत और सफाई उस तस्वीर में वह कहाँ से ला सकता था जो आप में है। रनवीरसिह के नसीव ही में यह लिखा था कि वह उस भूरत ही को देख कर पागल हो जाय और आप तक न पहुंच सफ, इसे कोई क्या कर ? अपनी अपनी किस्मत अपन अपने साथ है। इतना कह जसवन्तसिह चुप हो रहे मगर महारानी से न रहा गया । एक 'हाय के साथ ऊँची सॉस लेकर धीमी आवाज से चाली- "हाँ वह पत्थर की मूरत तो मेरी ही थी मगर अफसोस सोचा था कुछ और हो गया कुछ खैर अव ईश्वर मालिक है देखा चाहिये क्या होता है अपन दुश्मन को । खूप पहिचानती हू आखिर वह जाता कहा है । इतना कह महारानी चुप हो रही। जसवन्तसिह भी मुह बन्द किये बैठे रहे । थोड़ी देर तक विल्कुल सन्नाटा रहा, इसके बाद महारानी ने फिर जसवन्तसिह से कहा, "आज मैं अपने जासूसों को इस बात का पता लगाने के लिय भेजूगी कि रनवीरसिह कहा और किस हालत में है। जसवन्त-जरूर भेजना चाहिये। महारानी-अभी आपको तकलीफ करने की कोई जरूरत नहीं। जसवन्त-मै जानता ही नहीं कि वह कहा है। महारानी-अगर जान भी जाओ तो क्या करोगे? जसवन्त-जो बन पडेगा करूगा भला बताइये तो सही कि उनका यह दुश्मन कोन है और कहा है ? महारानी यहाँ से बीस कोस दक्खिन की तरफ एक गॉव है जिसका मालिक बालेसिह नामी एक क्षत्री है। कहने को तो वह एक जमींदार है मगर पुराना डाकू है और उसके सगी साथी इतने दुष्ट है कि वह राजाओं को भी कुछ नहीं समझता। जहाँ तक मै समझती है यह काम उसी का है। जसवन्त-रनवीरसिह ने उसका क्या बिगाड़ा है? महारानी-(कुछ शर्मा कर और नीची गर्दन करके) आपसे कहने में तो कोई हर्ज नहीं, खैर कहती है । एक वर्ष के लगभग हुआ कि उसने अपनी एक तस्वीर मरे पास भेजा और कहला भेजा कि तुम मेरे साथ शादी कर लो पर मैंने इसे कबूल न किया। क्योंकि मेरा दिल अपने काबू में न था। बहुत पहिले ही से वह रनवीरसिह के काबू में जा चुका था और मै दिल में उनको अपना मालिक बना चुकी थी, जिस बात को किसी तरह बालेसिह भी सुन चुका था। उसने बहुत जोर मारा मगर कुछ न कर सका, यस यही असल सबब है। जसवन्त-(ताज्जुब में आकर) आपने रनबीरसिह को कब देखा? क्या आप ही ने उस पहाडी पर अपनी ओर रनवीरसिह की मूरत बनवाई थी? महारानी-हॉ, मगर वह सब हाल में अभी न कहूँगी, मौका आवेगा तो तुम्हें आप ही मालूम हो जायगा । जसवन्त अच्छा, उस यालेसिह की वह तस्वीर कहाँ है ? जरा मैं देखू ? महारानी-हाँ देखो, (एक लौडी से) वह तस्वीर तो ले आ। महारानी का हुक्म पाते ही लाँडी लपकी हुई गई और वह तस्वीर जो हाथ भर.सं. कुछ छोटी होगी ले, आई। जसवन्तसिह ने उसे गौर से देखा। अजब तस्वीर थी, उसके एक अग से बहादुरी और दिलावरी झलकती थी मगर साथ ही इसके सूरत बहुत ही डरावनी रग काला, बड़ी बडी सुर्ख ऑखें.ऊपर की तरफ चढी हुई कडी कडी मूछे देखने ही से रोंगटे खड़े होते थे। मोटे मोटे मजबूत ऐंठे हुए अगों पर की चुस्त पोशाक और ढाल तलवार पर निगाह डालने ही से बहादुरी छिपी फिरती थी, मगर जसवन्तसिह उसे देखकर हँस पड़ा और बोला- "वाह क्या सूरत है कैसे हाथ पैर हैं मजा तो तभी था न कि बहादुरी के साथ साथ मेरे जैसी मुलायमियत और कुसुम कुमारी १०४७