पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४०

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यूषसूरसी नी होती और आ. ही काल में मुहास और इस दुष्ट सहायापाई होगी देखें कितनी बहादुरी दिखाता है ! सपतसिह की गत तुन और उसको हरे की तरफ गौर से दस महारानी गुत्तम लाल औय कर उठ खडी हुई और जब तक जसब सि आँख उठाकर उनकी तरफ देयतका बिजली की तरह लपक कर दूसर कमर में चली चासबासि तास उसार दस लगा लि दरीता रहा लेकिन फिर महारानी न दिखाई पीकालाडियर्या लिली उस उस जगह पड़ी थी ज्यों की त्यो जसवन्तसिहको धेरै खड़ी रही। अब तो जसवन्त के दितमेवपाल पैदा होने लगा महारानी वो चली गई जाती वक्त मुझसे कुछ कहा भा रही? कुछ रजतो नरा स्विीर की निन्दा करने से कुछ गुरसा तो नहीं आ गया। वह ता इस डाकू से अपना र और रनवीस से गुच्या दियाती थी फिर यह क्या हो गया? राय, क्या गोली सूरत है रिनवीरसिह का इस पर आशिक होना ठीका दीया मगर यह पत्थर की मूरत इतनी खूबसूरत का जितनी यह युद है वाह वाह, मरी भी किरमत कितनी अच्छी थी जो अपनी औरयों से इसकी मोहिनी मूरत दयला कम्बखन रनवीरसिह की एसी किस्मत कहाँ ? पाई क्या मजे में सामने बैठी थापीत कर रही थीं, यकाय मालूम क्या उठकर चली गई और अभी तक न लौटीं। मरा तो यही जी चाहता है कि दिन रा443 की सूरत दर करू, रनवीरमि की खोज में कहा टक्कर मारता फिरंगा यहला अपनी किस्मत जा जिसके नसीय में लिया है हागा ही, किसी की मदद से क्या होता जाता है ? मगर अफसोस तो यही है कि या रणधीरसिंह पर आशिक है!कोई तरकीब ऐसी करनी चाहिय जिसमें यह रनवीरसिंह को भूल जाय और मर साथ ब्याह करने पर राजी होजाया क्या में किसी तरह रनवीरसिह से खूबसूरती में कम हू? बात यह है कि इसने पहिले किसी तरह रनवीर को देख लिया है या उसकी तस्वीर ही दख ली है और इसी से उसके ऊपर जान दे बैठी है। रनवीर के बदले में पहिले मुझे देखती ता मेरी ही किरमत जाग जाती : यर रनवीर तो इस वक्त जहन्नुम में जा पा है, किसी तरह न छूटे सोही ठीक है आखिर दस पाच दिन में यह मेरे साथ मिल ही जायगी मगर जब तक रनवीर की उम्मीद है तब तक यह मुझे न कयूल करेगी !अगर उस डाकू ने रनवीर को मार डाला हो ता बड़ी खुशी की धात नहीं तो जिस तरह हो सके उससे मिल कर रनबीर को खत्म करा देना चाहिय तब मेरा काम होगा। ऐसी खूबसूरत औरत भी मिलेगी और इस राज्य का मालिक भी धनूगा । दुष्ट और बईमान जसवन्तसिह वहा बैठा बैठा इसी किस्म की बातें सोच रहा था कि इतने में एक लौडी वहाँ आई जिस जसवन्त ने पहिल नहीं देखा था और उसने कहा भोजन तैयार है, चलिये खा लीजिये। जसवन्त-कहाँ चलू? तुम्हारी महारानी कहां गई !क्या अब वह न आवेगी? लोडी-जी नहीं, अब इस वक्त उनसे मुलाकात न होगी, आपको दूसरे मकान में ले चल कर भोजन कराने के लिए हुक्म दिया है। जसवन्त-अच्छा चलिये उनका हुक्म मानना जरूरी है। जसवन्तसिह को साथ लिये हुए वह लौडी उस महल के बाहर हुई और अलग एक दूसरे मकान में ले गई जहाँ खाने पीने तथा आराम करने और सोने का विल्कुल सामान दुरुस्त था और दो लोडियाँ भी हाजिर थीं। जसवन्त ने आज खूब पेट भर के भोजन किया और चारपाई पर लेट कर रनबीरसिह और महारानी के बारे में क्या क्या करने चाहिये यही सब कुछ सोचने लगा। सातवां बयान महल के अन्दर ही एक छोटा सा नजरयाग है जिसके बीच में थोडी सी जमीन घास की सब्जी से दुरुस्त की हुई है. उसी पर एक फर्श लगा है और पॉच चार सखी सहेलियों के साथ महारानी वहीं बैठी धीरे धीरे बातें कर रही है। महारानी ने कहा, "देखो, हरामजादे का मिजाज एकदम से फिर गया ! एक सखी-उससे यह उम्मीद बिलकुल न थी। दूसरी सखी-अब किसी तरह का भरोसा उससे न रखना चाहिये। महारानी-राम राम, उसका भरोसा रखना अपनी जान से हाथ धो बैठना है मगर मुश्किल तो यह है कि अगर रनवीरसिह से कोई कहे कि जसवन्त तुम्हारा सच्चा दोस्त नहीं है तो वह कभी न मानेंगे। तीसरी सखी-न मानेंगे तो धोखा भी खायेंगे। महारानी-बड़ी मुश्किल हुई अव तो किसी से कुछ काम लेने का जी नहीं चाहता। देवकीनन्दन खत्री समग्र १०४८