पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२०

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दि तेजसिंह के मुंह से बात निकलने के बाद जैसे ही लाडिली की ताज्जुब भरी निगाह मायारानी पर पड़ी वैसे ही मायारानी ने अपने को सम्हाल कर धनपति की तरफ देखा। अव धनपति अपने को रोक न सकी, उसने घोड़ी बढ़ा कर तेजसिंह पर तलवार का वार किया। तेजसिह, फुर्ती से वार खाली देकर अपने को बचा लिया और वही लोहे का गोला धनपति की घोड़ी के सर में इस जोर से महा कि वह सम्हल न सकी और सर हिला कर जमीन पर गिर पड़ी। लोहे का गोला छटक कर दूर जा गिरा और तेजसिईने लपक कर उसे उठा लिया। आशा थी कि घोडी के गिरने से धनपति को भी कुछ चोट लगेगी मगर वह घोड़ी पर से उछल कुछ दूजा रही और बड़ी चालाकी से गिरते गिरते उसने अपने को बचा लिया। तेजसिह फिर वही गोला लेकर सामने ख) हो गए। तेज-(गोला दिखा कर ) इस गोले की करामात देखी? अगर अबकी फिर वार करने का इरादा कगी तो यह गोला तेर घुटने पर बैठेगा और तुझे लगड़ी होकर मायारानी का साथ देना पड़ेगा। मैं यह नहीं चाहता कि तु लोगों को इस समय जान से मा मगर हाँ इस समय जिस काम के लिए आया हूँ उसे किए बिना लौट जाना भी मुसिब नहीं समझता। माया-अच्छा बताओ तुम हम लोगों के पीछे पीछे क्यों आए हो और क्या चाहते हो? तेज-(लाडिली की तरफ इशारा कर के ) केवल इनसे एक बात कहनी है और कुछ नहीं। लाडिली-कहो क्या कहते हो? तेज-मै इस तरह नहीं कहा चाहता कि तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा सुने इन दोनों से अलग होकर सुन लो फिर मैं चला जाऊँगा। डरो मत मै दगाबाज नहीं हूँ, यदि चाहूं तो ललकार कर तुम तीनों को यमलोक पहुँचा सकता मगर नहीं तुमसे केवल एक बात कहने के लिए आया हूँ जिसके सुनने का अधिकार सिवाय तुम्हारे और किसी को नहीं है। कुछ सोच कर लाडिली वहाँ से हट गई और कुछ दूर जाकर तेजसिंह की तरफ देखने लगी मानों वह तेजरिह की बात सुनने के लिए तैयार हो। तेजसिह लाडिली के पास गए और बटुए में से एक चीठी निकाल उसके हाथ में देकाबोले, इसे जल्द पढ़ लो देखो मायारानी को इसका हाल न मालूम हो । लाडिली ने बड़े गौर से वह चीठी पढी और इसके बाद टुकड़े टुकड़े कर फेंक दी। तेज-इसका जवाब? लाडिली-केवल इतना ही कह देना कि बहुत अच्छा । अब तेजसिह को ठहरने की कोई जरूरत न थी। उन्होंने उत्तर का रास्ता लिया मगर घूम घूम कर देखते जा थे कि पीछे कोई आता तो नहीं। तेजसिह के जाने बाद मायारानी ने लाडिली से पूछा वह चोठी किसकी थी और में क्या लिखा था "लाडिली ने असल भेद तो छिपा रक्खा मगर कोई विचित्र यात गढ़ कर उस समय मायारानीकी दिलजमई कर दी। पाँचवॉ बयान पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बाध रक्खा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहाँ कोई उसका मददगार न पहुंचा और नागर फिरी होश में आकर उठ बैठी। नागर-अब मुझे मालूम हुआ कि तेरे पास भी एक अदभूत वस्तु है। भूत-जो अब तुम्हारी होगी। नागर-नहीं जिसके छूने से मैं बेहोश हो गई उसे अपने पास क्योंकर रख सकती हूँ मगर मालूम होता है कि कोई ऐसी चीज भी तेरे पास जरूर है जिसके सबब से इस खाजर का तुझ पर असर नहीं होता। खैर मै तेरा यह तीसरा कसूर भी माफ करूँगी यदि तू यह खजर मुझे दे दे और वह दूसरी चीज भी मेरे हवाले कर दे जिसके सबब से इस खजर का असर तुझ पर नहीं होता। भूत-मगर मुझे क्योंकर विश्वास होगा कि तुमने मेरा कसूर माफ किया) नागर-और मुझे क्योंकर विश्वास होगा कि तूने वास्तव में वही चीज मुझे दी जिसके समय से खजर की करामात से तू बचा हुआ है? देवकीनन्दन खत्री समग्र Xoo