पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२५

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ci कम-उनकी कृपा किस पर नहीं रहती थी । (कुछ सोच कर) खैर आज मै तुझे इस याग मे चौथे दर्जे में ले चल कर एक तमाशा दिखलाऊँगी। लाडिली-( ताज्जुब से ) क्या चौथे दर्जे में तुम जा सकती हो ? कम-हाँ मै यहाँ के भेदों की जान गई हूँ और सब जगह घूम फिर सकती हूँ। लाडिली-अहा तब ता मै जरूर चलेंगी 'जीजाजी अक्सर कहा करते थे कि इस याग के चौथे दर्जे में अगर कोई जाय तो उसे मालूम हो कि दुनिया क्या चीज है और ईश्वर की सृष्टि में कैसी विचित्रता दिखाई दे सकती है। कम-अच्छा अब चल कर पहिले कैदियों को छुड़ाना चाहिए। इतना कह कर कमलिनी उटी और मोमबती हाथ में लिए हुए उस सुरग के मुहाने पर गई जिसका मुँह चौखूटे पत्थर के हट जाने से खुल गया था और जिसमें से वह कुछ ही दर पहिले निकली थी। नीचे उतरने के लिए सीढियाँ मौजूद थीं दानों यहिनै नीचे उतर गई। आखिरीसीढी पर पहुँचने के साथ ही वह चौखूटा पत्थर एक हलकी आवाज के साथ अपने ठिकाने पहुंच गया और उस सुरग का मुंह वन्द हो गया। ॥ सातवाँ भाग समाप्त। चन्द्रकान्ता सन्तति आठवा भाग पहिला बयान भायारानी की कमर मे सताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घटे भर बाद मायारानी होश में आ कर उठ चैठी। उसके बदन में कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घर लिया जिनकी बदौलत दा घण्ट पहिले वह बहुत ही परेशान थी। न वह बैठ कर आराम पा सकती थी। और न है काई उपन्यास इत्यादि पढकर ही अपना जी बदला सकती थी। उसने अपनी आलमारी में से नाटक की किताय निकाली और शमादान के पास जाकर पढना शुरु किया पर नान्दी पढले पढने ही उसकी आयों पर पलकों का पर्दा पड़ गया और फिर आधे घण्ट तक वह गम्भीर चिन्ता में डूबी रह गई इसके बाद किसी के आने की आहट ने उस चौका दिया और • वह घूम कर दर्याज की तरफ देख्न लगी। धनपत उसके सामन जाकर खड़ी हो गई और बाली- धनपत-मरी प्यारी रानी मै दयती हूँ कि इस समय तू बहुत ही उदास और किसी गम्भीर चिन्ता में डूबी हुई है शायद अभी तक तेरी आखों में निद्रादेवी का डेरा नहीं पड़ा। माया-दशक ऐसा ही है मगर तर चहर पर भी धनपत-मता बहुत घबरा गइ हूँ क्योंकि अब यह यात लोगो का मालूम हुआ चाहती है ने खूब जानती हूं कि तुम्हारी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ८ ४०५