पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२६

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कट्टर रिआया उसे जी जान से माया-वस बस आग कहन की काई आवश्यकता नहीं इसी साच न ता मुझे काम कर दिया है। धनपत-मै थाड दिनों के लिए तुमस जुदा ही जाना उचित समझती हूँ ओर यही कहन के लिए मै यहा तक आई माया-(घबडा कर ) तुझ क्या हो गया है ? मुँह से बात भी सम्भाल कर नहीं निकालती । धनपत-हॉ हॉ मुझस भूल हो गई इस समय तरदुद और डर न मुझे काम कर रक्खा है। माया-अच्छा तो तू मुझसे जुदा हा कर कहाँ जायगी? धनपत-जहा कहा। माया-(कुछ साथ कर ) अभी जल्दी न करो इन्दगीतसिह और आनदरािह कब्ज मे आ चुक है सूर्योदय के पहिल ही में उनका काम तमाम कर दूगी। धनपत-मगर उसका क्या बन्दावस्त किया जायगा जिसक विषय में चल न तर कान में माया-आह उसकी तरफ स भी अच मुझे निराशा हा गई वह बड़ा जिद्दी है। धनपत-तो क्यों नहीं उसकी तरफ से निश्चित हा जाती हा? माया-हों अब यही होगा। धनपत-फिर दर करन की क्या जरूरत है? माया-में अनी जाती है क्या तू भी मर साथ चलगी । धनपत-मै चलन के लिए तैयार हू, मगर न मालूम उस ( चण्डूल का ) यह बात क्योकर मालूम हा गई। माया-खेर अव चलना चाहिए। अब भायारानी का ध्यान कंदखान की ताली पर गया। अपनी कमर में ताली न देख कर बहुत हैरान हुई थोडी देर के लिए वह अपन को बिल्कुल ही भूल गई पर आखिर एक लम्बी सास लेकर धनपत स वाली - माया-आफत आने की यह दूसरी निशानी है। धनपत-सा क्या ? मरी समझ में कुछ भी न आया कि यकायक तेरी अवस्था या बदल गई और किर नई घटना ने आकर मुझे घर लिया। माया-फैदखान की ताली जिसमें सदा अपनी कमर में रखती थी गायब हो गई। धनपत-(घबडा कर ) कहीं दूसरी जगह न रख दी हो। माया-नहीं नहीं जचर मर पास ही थी। चल लाडिला से पूः शायद यह इस विषय में कुछ कह सफ। मायारानी धनपत का साथ लिए लाडिली के कमर में गई मगर वहा लाडिली थी कहा जो मिलती। अब उसकी घबराहट का कोई हदद न रहा। एक दम बाल उटी बेशक लाडिली न धाराा दिया। धनपत-उसे दूढना चाहिए। माया-(आसमान की तरफ देख कर और लम्बी सास लेफर ) आह यह पहर भर के लगभग रात जो बाकी है मेर लिए बडी ही अनमोल है। इसे मै लाडिली की खोज में व्यर्थ नहीं सोना चाहती। इतने ही समय में मुझे उस जिद्दी के पास पहुँचना और उसका सिर काट कर लौट आना है। कैदियों से भी ज्यादे.तरदुद मुझे उसका है। हाय अभी तक वह आवाज मर कानों में गूज रही है जा चण्डूल ने कही थी खैर यहाँ जात जाते कैदखाने का भी देखती चलूगी। (जाश में आकर ) कैदी चाह कैदखाने के बाहर हो जाय मगर इस बाग की चहारदीवारी का नहीं लाध सकते। जा विहारीसिह और हरनामसिह को बहुत जल्द पुला ला। धनपत दौडी हुई गई और थोड़ी ही देर में दोनो एयारों को साथ लिए हुए लौट आई। वे दोनों एयारी के सामान से दुरुरत और हर काम के लिए मुग्तैद थे। यद्यपि विहारीसिह के चेहरे का रग अच्छी तरह साफ नहीं हुआ था तथापि उसकी कोशिशों न उसके चेहरे की सफाई आधी स ज्यादे कर दी थी आशा थी कि दो ही एक दिन में वह आइने में अपनी असली सूरत देख लेगा। केदखाने का रास्ता पाटकों को मालूम है क्योंकि तेजसिह जव बिहारीसिह की सूरत में आए थे तो मायारानी के साथ कैदियों को देखने गये थे। लाडिली के कमर में स दस चारह तीर और कमान ले के धनपत तथा दोनों ऐयारों को साथ लिए हुए मायारानी सुरग में घुसी। जब कैदखाने के दर्वाजे पर पहुंची तो दर्वाजा ज्यों का त्यों बन्द पाया। कैदवाने की ताली लाडिली के गायन होने का हाल कह के बिहारीसिह और हरनामसिह को ताकीद कर दी कि जब तक मैं लौट कर न आऊ तब तक तुम दोनों बड़ी होशियारी से इस दर्वाजे पर पहरा दो। इसके बाद धनपत को साथ लिए हुए मायारानी बाग के तीसरे दर्जे 1 देवकीनन्दन खत्री समग्र ४०६