पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२९

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दि -- इस आदमी के आन के पहिले कैदी लोग तुरत और उदास बैठे हुए थे मगर जब इस आदमी ने आकर ऊपर लिखी पाते कही ला सभी की अवस्था बदल गई। क्रोध से समों का चेहरा लाल हो गया और बदन काँपने लगा लेकिन उस आदमी की बात का जवाब किसी ने भी कुछ न दिया। कैदियों को सन्देशा दने के बाद मायारानी का आदमी उस कोठरी में गया जिसमें हथकड़ी और बेड़ी से वेवस बेचारी कामिनी कैद थी। थोड़ी ही देर बाद कामिनी को साथ लिए हुए वह आदमी बाहर निकला। उस समय सभी की निगाह उस मेधारी पर पड़ी । देखा कि रज गम और दुख के मारे वह सूख कर काटा हो गई है. मालूम होता है मानों वर्षों से धीमार है सिर के बाल खुले और फैले हुए है साड़ी मैली और खराब हो गई है मगर भोलापन यूपसूरती और नजाकतने इस अवस्था में भी उसका साथ नहीं छोडा है। उसके दानो हायरधे थे और वह बेडी के सबसे अच्छी तरह क्दम नहीं उठा सकती थी। समों के देखते कामिनी का साथ लिए हुए मायारानी का आदमी कैदखाने के बाहर चला गया और कैदखाने का दर्याजा फिर बन्द हा गया। ताली भरन की आवाज भी बहादुर कैदियों के कानों में पड़ी । यो तो यहा जितने कैदीथे सभी क्रोध के मारे काप रह थे मगर हमारे आनन्दसिह की अवस्था कुछ और ही थी। एक तो अपने मायाप का हाल सुनकर जोश में आ ही चुके थे दूसरे कामिनी का जो इस वेवसी के साथ कैदखाने के बाहर जाते देखा और भी उचल पडे क्रोध सम्हाल न सके उठ के खड़े हो गये और जगले बाली कोठरी में जिसमें कैद थेटहलने लगे। जिस जगले वाली कोठरी में कुँअर इन्द्रजीतसिह थे वह आनन्दसिह के ठीक सामने थी और ऐयार लोग भी उन्हें अच्छी तरह देख सकते थे। टहलने के साथ आनन्दसिह के पैर की जजीर बोली जिससे सभी का ध्यान उनकी तरफ जा रहा । इन्द्रजीत-आनन्द । आनन्द-आज्ञा? इन्द--क्या यह बयसी हम लोगों का साथ न छोड़ेगी। आनन्द-येशक छोडगी अब हम लोग इस अवस्था में कदापि नहीं रह सकते। हम लोग जगली शर नहीं है जो जगल के अन्दर बन्द पड़े रहे। इन्दजीव-(यडे हाकर) हा ऐसा ही है यह लोहे की तार अब हमें रोक नहीं सकती! इता कह कर इन्द्रजीतसिह ने इष्टदेव का ध्यान कर अपनी कलाई उमेठी और जोर करके हथकडी तोड़ डाली। बड़े भाई की दखादखी आनन्दसिह ने भी वैसा ही किया। हथकड़ी तोड़ने के बाद दोनों ने अपने पैरों की बेड़िया खोली और तच जगले के बाहर निकलने का उद्योग करने लगे। दोनों हाथों से लोहे का छड़ जो जगले में लगा हुआ था पकड़ के और लात अड़ा के खींचने लगे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि दोनों कुमार बड़े वहादुर और ताकतवर थे। छड़ देदे हा होकर छंदों से बाहर निकलने लगे और बात की बात में दोनों शेर जगले वाली काठरी के बाहर निकल के खड़े हो गये। दोनो गले गले मिले और इसके बाद हर एक जगले के छड़ों का निकाल कर दोनों भाइयों ने अपने ऐयारों को भी छुड़ाया और जोश में आकर चाले 'उद्योग से बद के दुनिया में कोई पदार्थ नहीं । आनन्द-ईश्वर चाहेगा तो अब थोड़ी देर में हम लोग इस कैदखाने के बाहर भी निकल जायगे। इन्द्रजीतसिह-हाँ अब हम लोगों को इसके लिए भी उद्योग करना चाहिये। भैरो-हम लोग जोर करके तहखाने का दर्वाजा उखाइ डालेंगे और इसी समय कम्परत मायारानी के सामने जा खड़े होंगे। ऐयारों को साथ लिए हुए दोनों माई सदर दर्वाज के पास गये जो बाहर से बन्द था। यह दांजा चार अगुल मोट लोहे का यना था और इसकी मजबूत चूल भी जमीन में बहुत गहरी घुसी हुई थी इसलिए पूरे दो घण्टे तक मेहनत करने पर भी कोई नतीजा न निकला। क्रोध में आकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिह ने लोहे का छड़जो जगले में से निकला था उठा लिया और वाई तरफ की दीवार को चूना और ईटों से बनी हुई थी तोडने लगे। उस समय ऐयारो ने दोनों भाइयों के हाथ से छड़ ले लिया और दीवार तोडना शुरू किया। पहर भर की मेहनत से दीवार में इतना बड़ा छेद हो गया कि आदमी उसकी राह वरखूनी निकल जाय। भैरोसिंह ने शाक कर देखा उस तरफ विल्कुल अधरा था और इस बात का ज्ञात जरा भी नहीं हो सकता था कि दीयार के दूसरी तरफ क्या है। हम उपर लिख आये है कि इस कैदखाने में छत के सहारे शीशे की एक फन्दील लटकती थी। इस समय एयारों ने उसी कन्दील की रोशनी से काम लेना चाहा। तारासिह ने भैरो के कन्धे पर चर कर कन्दील उतार ली और उसे हाथ में लिए गए उस नूराय की राह दूसरी तरफ निकल गये। इनके पीछे दोनों कुमार और ऐयार लोग गो गए। अब मालूम हुआ कि यह कोठरी है जो लगभग तीस हाथ के लम्बी और पन्द्रह हाथ से कम चौड़ी है। कुमार या ऐयार - यन्द्रकान्ता ४०९ >