पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४९

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capi यदि एसान भी हो तो भी में अभी अपने को जाहिर नहीं किया चाहता और न मायारानी का ही अभी जान से मारूगा क्योंकि यदि वह मर ही जायगी तो अपने किये का यथार्थ फल मरे देखते कौन भोगेगा? इसलिए मैं थोडे दिनों तक छिप रह कर उसे सजा देनाउचित समझता हू। कम-जैसी मर्जी। गोपाल-(कमलिनी से) इसलिए मै चाहता हूँ कि कुअर साहब अपना एक एयार मुझे दें मैं उसे साथ लेकर काशी जाऊगा और किशोरी तथा कामिनी को जो मनोरमा के मकान में कैद है बहुत जल्द छुडा लाऊमा तव तक तुम दोनों कुमारो और लाडिली को अपने साथ लेकर मायारानी के उस तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में रहो। वहा खाने के लिए मेवों की बहुतायत है और पानी का चश्मा भी जारी है। मायारानी को तुम लोगों का हाल मालूम न होगा क्योंकि उसे वह स्थान मालूम नहीं है और न वहा तक जा ही सकती है। उसी जगह रह कर दोनों कुमारों को एक दो दफे रिक्तगन्थ शुक से आखिर तक अच्छी तरह पढ़ जाना चाहिए जो बातें इनकी समझ में न आयें तुम समझा देना और इसी बीच में वहा की बहुत सी अदभुत बातें भी ये देख लेगे इसलिए कि इनको बहुत जल्द वह तिलिस्म तोडना होगा जैसा कि हम बुजुगों की लिखी किताचा में देख चुके हैं वह इन्हीं लोगों के हाथ से टूटेगा। कम-बेशक देशका गोपाल और एक एयार को राहतासगढ़ भेज दो कि वहा जाकर महाराज वीरेन्दसिह को कुमारों के कुशल भगल का हाल कहे और थोडी सी फाज अपन साथ ले आकर जमानिया के मुकाविले में लड़ाई शुरू कर दे मगर वह लडाई जार के साथ शोध यखा निपटाने की नीयत से न की जाय जब तक कि हम लोग दूसरा हुक्म न दें। बस इसके बाद जब मैं अपना काम करके अर्थात किशोरी और कामिनी को छुडा कर लौटूगा और तुमसे मिलूगा तो जो कुछ मुनासिब होगा किया जायगा । हा देवमन्दिर म रह कर मौका मिले तो मायारानी को गुप्त रूप से छेडती रहना। कम-आपकी राय बहुत ठाक है मगर आप केंद की तकलीफ उठान के कारण बहुत ही सुस्त और कमजोर हो रहे है इतनी तकलीफ क्योकर उठा सकेगा। गोपाल-तुम इसकी चिन्ता मत से (कुमारों की तरफ देखकर ) आप लाग मेरी राय पसन्द करते हैं या नहीं? कुमार-वशक आपकी राय उत्तम है। कमलिनी-अच्छा तो अपना तिलिस्मी खजर जिसका गुण आपसे कह चुकी इ, आपको देती है यह आपकी बहुत सहायता करेगा। गोपाल-हा येशक यह खजर एसी अवस्था में मेरे साथ रहन यान्य है। परन्तु वह जब तक तुम्हारे पास है तुम्हें किसी तरह का खतरा नहीं पहुच सकता इसलिए खजर का मै तुमसे जुदा न करेगा। इन्द्रजीत-उस खजर का जोडा जो कमलिनी ने मुझे दिया है मैं आपको देता हू, आप इसे अवश्य अपन साथ रखें। गोपाल-नहीं नही इसकी कोई आवश्यकता नहीं। इन्दजीत-आपको मेरी यह बात अवश्य माननी पड़ेगी। इतना कह कर इन्दजीतसिह ने वह गुजर जबर्दस्ती गोपालसिंह के हवाले किया और किश्ती किनारे लगाने का हुक्म दिया। गोपाल-अच्छा ता मेरे साथ कौन ऐयार चलेगा? इन्द्रजीत-जिसे आप पसन्द करें केिवल लेजसिह चाचा को मैं अपने पास रखना चाहता हू इसलिए कि उनकी जुवानी उन घटनाओं का हाल सुनूगा जो आपको कैद से छुडाने के समय हुई होंगी। गोशल-हस कर ) बशक वे बातें सुनन याग्य है। देवी-आपके साथ मै चलूगा। गोपाल-अच्छी बात है। इन्द्र-भैरोसिह को राहतासगढ भेजता हूँ गोपाल-बहुत मुनासिब मगर तेजसिह के अतिरिक्त और दोनों ऐयारों को अर्थात तारासिंह और शेरसिंह को अपने साथ मत फसाये रहियेगा। इन्द्रजीत-नहीं नहीं उन दोनों को अपने रहने का ठिकाना दिखा कर छोड देंगे ये दोनों चारों तरफ घूम घूम कर खबर लगाते रहेंगे। गोपाल--और मै भी यही चाहता हू।(कमलिनी की तरफ देख कर) बाग के चौथे दर्जे में जो दवमन्दिर है वहा जाने का रास्ता तुझे अच्छी तरह मालूम है या नहीं? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४२९