पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४५०

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कमलिनी-रिक्तनाथ की बदौलत वहा का रास्ता में अच्छी तरह जानती हू। इतने में किश्ती किनारे लगी और सब कोई उतर पडे । सातवां बयान राजा गोपालसिह और देवीसिह को काशी की तरफ और भैरासिंट को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाम मात्र को याकी थी। प्राय सुषह को चलने वाली दक्षिणी इवा ताजी चिली हुई शुशबूदार फूलों की कलियों में से अपने हिस्से की सबसे पहिली खुशबू लिए हुए अठखेलिया करती सामने से चली आ रही थी। हमारे वहादुर कुमार और ऐयार लोग भी धीरे धीरे उसी तरफ जा रहे थे। यद्यपि मायारानी का तिलिस्मी बाग यहा से बहुत दूर था मगर वह खूबसूरत बगला जो चश्मे के ऊपर बना हुआ था और जिसमें पहिले पहल नानक और बाबाजी (मायारानी के दारोगा) से मुलाकात हुई थी थोड़ी ही दूर पर था बल्कि उसकी स्याही दिखाई दे रही थी। हमारे पाठक इस बंगले को अभी भूले न होग और उन्हें यह बात भी याद होगी कि नानक रामभोली को दूढता हुआ चश्मे के कि गरे चल कर इसी बगल में पहुंचा था और इसी जगह से बेवस करके मायारानी के दौर में पहुंचाया गया था। इन्द्र-(कमलिनी से ) सूर्योदय के पहिल ही हम लोगों को अपना सफर पूरा कर लेना चाहिए क्योंकि दूसर राज्य में बल्कि ये कहना चाहिए कि एक दुश्मन के राज्य में लापरवाही के साथ घूमना उचित नहीं है। कम-ठीक है मा में अब बहुत दूर जाना नहीं है। (हाथ का इशारा करके ) वह जो मकान दिखाई देता है वस वहीं तक चलना है। लाडिली-वह तो दारोगा वाला वगला है। कम-हा और मैं समझती हू कि जब से कम्बख्त दारागा केद हा गया है तब से वह याली ही रहता हागा? लाडिली-हा वह मकान आजकल बिल्कुल खाली पड़ा है। यहा से एक सुरग मायारानी के बाग तक गई है मगर उसका हाल सिवाय दारोगा के और किसी को मालूम नहीं है और दारागा ने आज तक उसका भेद किसी से नहीं कहा। कम-ठीक है मगर मुझे उस सुरग से कोई मतलब नहीं उस मकान के पास ही चश्में के दूसरी तरफ एक टीला है म यहा चलूगी क्योंकि आज दिन भर उसी टीले पर बिताना होगा। लाडिली-यदि मायारानी का काई आदभी मिल गया तो? कम-एक नहीं अगर दस भी हों लोपया परवाह । थोड़ी ही देर में यह मण्डली उस मकान के पास जा पहुंची जिसमें दारोगा रहा करता था। कमलिनी न चाहा कि उस मकान के बगल से हो कर चश्मे के पार चली जाय और उस टीले पर पहुंचे जहा जाने की आवश्यकता थी मगर यगले के वरामद में एक लम्बे कद के आदमी को टहलते देरा यह रुकी और उसी तरफ गौर से दयने लगी कमलिनी के रुकन से दानों कुमार और एयार लोग भी रुफ गय ओर सों का ध्यान उसी तरफ जा रहा। सवेरा तो हो चुका था मगर इतना साफ नहीं हुआ था कि सौ कदम की दूरी से काई किसी को पहिवान सक। उस आदमी ने भी कुअर इन्द की मण्डली को देया और तजी से इन लोगों की कुछ पास आत ही कमलिनी ने उसे पहिचाना और कहा यह ता भूत ाथ है । भूतनाथ का नाम सुनते ही शेरसिह काप उठा मगर दिल कडा करके चुपचाप खड़ा हो गया। कम-(भूतनाथ से) वाह वाह वाह 'तुम्हारे भरोसे पर अगर कोई काम छाड दिया जाय तो वह बिल्कुल ही चौपट हो जाय" भूत-(हाथ जोड कर) माफ कीजिएगा मुझसे एक भूल हो गई और इसी सवय से में आज्ञानुसार काशी में आपस मिल न सका। कम-भूल कैसी? भूत-नागर को लिए हुए में आपके मकान की तरफ जा रहा था। एक दिन तो बखूबी चला गया दूसरे दिन जब बहुत थक गया तो एक पहाड़ी के नीचे घने जगल में उसकी गठरी रख कर सुस्ताने के लिए जमीन पर लेट गया यकायक कम्बख्त नींद ने धर दबाया और मैं सो गया। जव आख खुली तो नागर को अपने पास न देख कर घबरा गया और उस चारों तरफ टूढो लगा मगर कही पता न लगा। कम-अफसास। भूत-कई दिन तक दूढता रहा आखिर भेष बदल कर जब काशी में आया तोयबर लगी कि नागर अपने मकान में देवकीनन्दन खत्री समग्र