पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४५५

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ay भूतनाथ-(कुछ देर साच कर) अगर ऐसा है तो मुझे स्वय उन दोनों को ढूढना पडेगा। मुलाकात हाने पर दोनों को काम करने के लिये कह कर किशोरी और कामिनी का रोहतासगढ पहुचाने का वादा कर ले जाऊगा और उस गुप्त खोह में जिसे मै अपना मकान समझता हूँ और तुम्हें दिखा चुका हूँ अपने आदमियों के सुपुर्द करके गोपालसिह से आ मिलूंगा और फिर उसे कैद कर के मायारानी के पास पहुंचा दूगा जिसमें वह अपने हाथ से उसे मार कर निश्चिन्त हो जाय ! गुप्त रीति से इस मकान के अन्दर ले आऊँगा और किशोरी कामिनी को छुडाकर यहाँ से निकाले जाऊँगा फिर धोखा देकर किशोरी और कामिनी को अपने कब्जे में कर लूगा अर्थात उन्हें कोई दूसरा नागर-यस बस तुम्हारी राय बहुत ठीक है अगर इतना काम हो जाय तो फिर क्या चाहिय। मायारानी से मुहभाग! इनाम मिले क्योंकि इस समय वह राजा गोपालसिंह के सबब से बहुत ही परेशान हो रही है, यहा तक कि कुअर इन्दजीतसिह वगेरह के हाथ से तिलिस्म को बचाने का ध्यान तक भी उसे बिल्कुल ही जाता रहा। यदि वह पापालसिह को मार को निश्चिन्त हो जाय तो अपने से बड कर भाग्यवान दुनिया में किसी को नहीं समझेगी जैसा कि थाडे दिन पहिले समझती थी। भूतनाथ-जो मैं कह चुका है वहीं हागा इसमें कोई सन्देह नहीं अच्छा अब तुम इस मकान का पूरा पूरा भेद मुझे बता दो जिसमें किसी तहखाने कोठरी रास्ते या चोर दर्वाजे का हाल मुझसे छिपा न रहे। नागर-बहुत अच्छा उठिए जहा तक जल्द हो सके इस काम से भी निपट ही लेना चाहिए। नागर ने उस मकान का पूरा पूरा भेद भूतनाथं रता दिया हर एक कोठरी तहखाना रास्ता और चोरदर्वाजा तथा सुरग दिखा दिया और उनक खोलने और वन्द करने की विधि भी बता दी। इस काम से छुट्टी पाकर मूतनाथ नागर से विदा हुआ और राजा गोपालसिह तथा देवीसिंह की खाज में चारों और घूमने लगा। दसवां बयान दूसरे दिन आधी रात जात जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुचा। इस समय नागर आराम से साई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरयाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखत ही वह हसती हुई पास आई और बोली। नागर-कहो कुछ काम हुआ 7 भूत-काम तो बखूबी हो गया उन दानों से मुलाकात भी हुई और जो जो कुछ मेने कहा दोनों ने मजूर भी किया। कमलिनी की चीठी जब मैंने गोपालसिह के हाथ में दी तो वे घड कर बहुत खुश हुए और बोले कमलिनी ने जो कुछ लिखा है में उसे मजूर करता है। वह तुम पर विश्वास रखती है तो मैं भी रखूगा और जो तुम कहोगे वही करुगा। नागर-बस तब काम बखूबी बन गया अच्छा अब क्या करना चाहिये ? भूत-अब वे दोनों आते ही होंगे तुम टहलना बन्द करो और कमरे में जाकर कियाड बन्द करके सो रहा और सिपाहियों को भी हुक्म दे दो कि आज कोई सिपाही पहरा न दे बल्कि सव आराम से सो रहे यहा तक कि अगर किसी को इस वाग में दखें भी तो चुपके हो रहे । नागर 'यहुत अच्छा कह कर अपने कमरे में चली गई और भूतनाथ के कहे मुताविक सिपाहियों को हुक्म देकर अपन कमरे का दर्वाजा बन्द करके चारपाई पर लेट रही। भूतनाथ उसी वाग में घूमता फिरता पिछली दीवार के पास जहा एक चारदर्वाजा था जा पहुचा और उसी जगह बैठ कर किसी के आने की राह देखने लगा। आधे घण्टे तक सम्नाटा रहा इसके बाद किसी ने दर्वाज पर दा दफे हाथ से थपकी लगाई। भूतनाथ ने उठ कर झट दर्वाजा खोल दिया और दो आदमी उस सह से आ पहुचे।यधे हुए इशारे के होने से मालूम हो गया कि ये दोनों राजा गोपालसिह और देवी सिह है। भूतनाथ उन दानों का अपने साथ लिए हुए धीरे धीरे कदम रखता हुआ नजरबाग के चीचोबीच आया जहा एक छोटा सा फौवारा था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४३५