पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४६३

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b कुअर इन्द्रजीतसिह सार ही रहे थे कि स्वय चल के आन्दसिह का पता लगाना चाहिए कि इतने ही में लाडिली को साध लिए हुए कगलिनी वहाँ आ पहुंची। इहें देख कुमार का बेचैनी कुछ कम हुई और आशा की सूरत दिखाई देने लगी। कमलिनी ने जब कुमार को उस जगह अकले और उदास देखा तो उस ताज्जुब हुआ मगर वह बुद्धिमान औरत तुरन्त सना गई इन छाटे माई आनन्दसिह इनके साथ नहीं दिखाई देते जरूर वे किसी मुसीबत में पड़ गए है और ऐसा होना कोई ताम्जुग की बात नहीं है क्योंकि यह तिलिस्म का मौका है और यहाँ रहने वाला थाडी भूल में तकलीफ उठा सकता है। कमलिनीन इन्द्रजीतसिह से उदासी का कारण और कुँअर आनन्दसिह के न दिखन का सवव पूछा जिसके जवाब में इन्द्रजीतसिह न जो कुछ हुआ था बयान करके कहा कि आनन्द को गये हुए नौ घटे के लगभग हो गये है। इस समय काई लाडिली की सूरत गौर से देखता तो वशक समझ जाता कि आनन्दसिह का हाल सुन कर उसको हद से ज्यादा रज हुआ है। ताज्जुब नहीं कि कमलिनी और इन्दजीतसिह भी उसके दिल की हालत जान गये हों क्योंकि वह अपने आखों को डण्डबाने और आसू के निकलने को बड़े परिश्रमपूर्वक रोक रही थी। यद्यपि उस निश्चय था कि दोनों कुमार इस तिलिस्म को अवश्य तागे तथापि उसका दिल दुख गया था। कौन ऐसा है जो अपने प्यार पर आई हुई मुसीबत का हाल सुनकर पैचेन न हो ? कमलिनी-(सब बातें सुन कर ) किसी का आना ताज्जुब नहीं है हॉ किसी औरत का आना बेशक ताज्जुब है क्योंकि (इन्द्रजीलसिह की तरफ इशारा करके) आप कहते है कि एक औरत के रोने की आवाज आई थी। लाडिली-ठीक है जहाँ तक में समझती हूँ तिवाय तुम्हार मायारानी क और मेरे किसी चौथी औरत को यहाँ आने का रास्ता मालूम नहीं है हॉ मदों में जरूर कोई एसे है जो यडों आ सकते है। कमलिनी-मगर इस दवमन्दिर के अदर हम लागों के अतिरिक्त राजा गापालसिह के सिवाय और कोई भी नहीं आ सकतारखैर इन बातों को जाने दो अब यहाँ सचलकर कुअर साहब का पता लगना बहुत जरूरी है। यद्यपि यहाँ किसी दुश्मन का आना बहुत कठिन है तथापि खुटका लगा ही रहता है। जब दोनों कुमारों को मायारानी के कैदखार्न से छुडा कर हम लोग सुरग ही सुरग तिलिस्मी बाग से बाहर हो रहे थे तो उस हरामजादे के आ पहुचने की कौन उम्मीद थी जिसने कुमार को जमा किया था । इसी तरह कौन ठिकाना यहाँ भी कोई दुष्ट आ पहुचा हो ! आखिर कअर आनन्दसिह को खोजने के लिए तीनों वहा से रदाना हुए और देवमन्दिर के नीचे उतर उसी तरफ गये जहा आनन्दसिह गय थे। जब एक मकान का दर्वाजा पर पहुंचे तो बडेकमलिनी रुकी और बढ़ गौर से उस दर्वाजा को जो बद था दखने लगी इसके बाद फिर आगे बढी, दूसरे मकान के दर्वाजे पर पहुच कर उसे भी गौर से देखा और सिर हिलाती हुई फिर आगे बढी । इसी तरह कुअर इन्दजीतसिह और लाडिली को साथ लिए हुए कमलिनी सात आठ मकानों के दर्वाज पर गई। हर एक मकान का दर्वाजा बंद था और हर एक दर्वाजे को कमलिनी ने गौर से देखा लेकिन कुछ काम न चला मगर जब उस मकान के दर्वाजे पर पहुंची जिसमें कुअर आनन्दसिंह गय थे तो रुककर मामूली तौर पर उसकेदर्वाजे को भी घड गौर से देखने लगी और थोड़ी ही देर में बोल उठी वेशक कुअर आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर है। (ऊगली स दर्याजे के उपर बाल चौखटे की तरफ इशारा करके) देखिये यह स्याह पत्थर की तीन खूटीवा नीचे की तरफ झुक गई है। कुमार-इन खूटियों स क्या मतलब है? कम-इस मकान के अन्दर जितने आदमी जायगे उतनी खूटिया नीचे की तरफ झुक जायगी। कुमार-(ऊपर वाल चौखट की तरफ इशारा करक) ऊपर कुल बारह खूटियों है मान लिया जाय कि बारहों खूटियाँ उस समय झुक जायगी जब बारह आदमी इस मकान के अन्दर जा पहुँथेंगे मगर जब बारह से ज्यादे आदमी इस मकान के अन्दर जायगे तब क्या होगा? कम-बारह से ज्यादे आदमी इस मकान के अन्दर जा ही नहीं सकते तिलिस्मी वात में किसी की जबर्दस्ती नहीं चल सकती। कुनार-ठीक है मगर तुमने यह कैस जाना कि आनन्दसिह इसी मकान के अन्दर है ? कम-सिर्फ अन्दाज से समझती हू कि आनन्दसिह इसी मकान में होंगे क्योंकि इस बाग में एक आदमी का आना आपने वयान किया था इसके बाद कहा था कि किसी औरत के रोने की आवाज आई थी दो तो हो चुके तीसरे आनन्दसिह भी पीछा किए हुए इधर ही आये है और इस तरह स मकान के अन्दर तीन आदमियो का होना सावित होता है। इन्हीं सब बातों से मुझे विश्वास होता है कि ये ही तीन आदमी इस मकान के अदर है। कुमार-तुम्हाग सोचना बहुत ठीक है मगर जहातक जल्द हो सक इस बात का निश्चय करके आनन्द को छुडाना चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ९