पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४८३

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दि लक्ष्मीदेवी का बग के निकल जाना आपके लिए दुखदायी न होगा? और जब इस बात की खबर गोपालसिह को होगी तो क्या वे आपको छाड देगे? बेशक जो कुछ आज तक मैंने किया है सब आप ही का कसूर समझा जायगा। मैंने इस बात का पता न लग जाय कि दारोगा की करतूत ने लक्ष्मीदेवी की जगह इतना कह कर मायारानी चुप हो गई और बडे गौर से बायाजी की सूरत देखने लगी मानों इस बात का पता लगाना चाहती है कि बावाजी के दिल पर उसकी बातों का क्या असर हुआ। दारोगा साहब भी मायारानी की बातें सुन कर तरददुद म पड़ गए ओर न मालूम क्या सोच ! लगे। थोड़ी देर बाददारोगा ने सिर उठाया और मायारानी की तरफ देख कर कहा अच्छा अव विशष बातों की कोई जरूरत नहीं है मैं वादा करता हू कि गोपालसिह के बार में तुम पर किसी तरह का दवादन डालूगा और इससे ज्यादे कुछ न कहूँगा कि इनके मारने का विचार न करके थोडे दिनों तक इन्हें कैद ही में रखना आवश्यक है बल्कि कमलिनी लाडिलो भूतनाथ और देवीसिह को भी कैद ही में रखना चाहिए। हाँ जब मैं उन आफता का दूर कर लू जिनके कारण तुम्हें अपना राज्य छाडना पड़ा और तुम्हें फिर उसी दर्जे पर पहुंचा दूतब जो तुम्हारे जी में आव करना। यस बस इसमें दखल मत दो और i मैने कहा है उसे करो नहीं तो तुम्हें पूरा पूरा सुख कदापि न मिलगा । माया-खैर ऐसा ही सही मगर यह तो कहिये कि इन लोगों को कैद कहाँ कीजिएगा? वावा-इसके लिए मरा वगला बहुत मुनासिव है। माया-ओर मर रहन के लिए कौन सा ठिकाना सोच रक्खा है ? वाया-वाह क्या तुम समझती हो कि तुम्हें बहुत दिनों तक अपने राज्य से अलग रहना पड़ेगा ? नहीं दा ही तीन दिन में मैं उन सबों का मुह काला करूँगा जो तुम्हारे नौकर होकर तुमसे खिलाफ हो रहे है आर तुम्हे फिर उसी दर्जे पर बिठाऊगा जिस पर मेरे सामने तुम थी हाँ एक चीज के विना हर्ज जरूर होगा । माया-वह क्या? शायद आपका मतलब अजायबघर की ताली से है । बाबा- हाँ मेरा मतलब अजायबघर की ताली ही से है क्या तुम उसे अपने महल ही में छोड आई हो? माया-जी नहीं वह मरे पास है जव म लाचार होकर अपने घर से भागी ता एक वही चीज थी जिसे मै अपन साथ ला सकी। वावा-वाह वाह यह बड़ी खुशी की बात तुमने कही। अच्छा वह ताली मरे हवाले करा ता और कुछ बातें होंगी। माया-(अजायबघर की ताली बायाजी कोदकर ) लीजिए तैयार है अब जहाँ तक जल्द हो सके यहाँ से निकल चलना चाहिए। चाया-हाँ हाँ मै भी यही चाहता हू, भला यह तो कहा कि यह तिलिस्मी खजर तुमने कहाँ से पाया ? माया-यह तिलिस्मी खजर कमलिनी ने भूतनाथ और गापालसिह को दिया था जो इस समय इन सभों के बेहोश हो जाने पर मुझे मिला। एक तो मैने ले लिया और दूसर नागर का दे दिया है। मैने सुना है कि इसी तरह के और भी कई खजर कमलिनी न अपन साथियों को यॉट है मगर मालूम नहीं इस समय वे कहाँ है। बाचा-ठीक है खैर यह काम तुमने बहुत ही अच्छा किया-कि अजायबघर की ताली अपने साथ लेती आई नहीं तो उड़ा हर्ज होता। माया-जी हाँ। मायारानी अजायबघर की ताली के बारे में भी दारोगा से झूठ बोली। यद्यपि उसने यह ताली भूतनाथ को दे दी और इस समय गोपालसिह के पास से पाई थी परन्तु भूतनाथ का नाम लेना उसने उचित न जाना क्योंकि उसने यह ताली भूतनाथ का राजा गापालसिंह की जान लने के बदले में दी थी और यह बात यावाजी से कहना उर्स मजूर न था इससे वह, इस समय वहाना कर गई। मायारानी और नागर को साथ लिए हुए बाबाजी वहाँ से रवाना हुए। और उस खम्भे के पास पहुचे जिस पर गड़ारीदार पहिया लगा हुआ था। अब मायारानी बडी उत्कण्टा से देखने लगी कि बाबाजी किस तरह से दवाजा खोलते है और इसलिए जय बाबाजी ने गडारीदार पहिये को घुमा कर सुरग का दर्वाजा खोला तो माया रानी को बडा आश्चर्य हुआ क्योंकि इसी पहिये को वह कई दफे उलट फेरकर घुमा चुकी थी मगर दर्वाजा नहीं खुला था मायारानी ने बडे आग्रह से इसका सबब बाबा जी से पूछा और कहा कि इसी पहिये को मै पहिले कई दफे घुमा चुकी थी मगर दर्वाजा न खुला इस समय क्योकर खुल गया? इसके जवाब में बाबाजी हस कर बोले 'इसका सबब किसी दूसरे वक्त तुमसे कहूँगा क्योंकि समझाने में बहुत देर लगेगी और पहिले उन कामों को बहुत जल्द कर लेना चाहिए जिनका करना आवश्यक है। - चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ९