पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४८४

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- बाया-(हस कर) बस बस बहुत उछल कूद न करो। यद्यपि मै चुडदा हूतथापि तुम दो औरतों से किसी तरह हार नहीं सकता। में वही करूंगा जो मरे जी में आवेगा। यदि तुम इस तिलिस्म की रानी हो तो मैं भी तिलिस्म का दारोगा है, मेरे पास मी बहुत सी अनूठी चीचे है इसके अतिरिक्त तुम मुझसे विगाड करके कुछ फायदा भी नहीं उठा सकतीं और अब तो तुमने साफ कबूल ही दिया कि माया-(यात काट कर ) हॉहॉ कबूल दिया और फिर भी कहती हू कि तुम्हारे बिना मेरा कुछ हर्ज नहीं हो सकता। तुम्हें अपने दारोगापन की शेखी है तो देखो मैं अपनी ताकत तुमको दिखाती है । इतना कह कर मायारानी ने तिलिस्मी खजर का कब्जा दधाया। उसमें से बिजली की तरह चमक पैदा हुई और जठ कजा ढीला किया तो चमक बन्द हो गई मगर बाबाजी पर इसका कुछ असर न हुआ जिससे मायारानी को वडा ताज्जुब हुआ। आखिर उसने वेहोश करने की नीयत से तिलिस्मी खजर बायाजी के वदन से लगाया मगर इससे भी कुछ नतीजा न निकला, बावाजी ज्यों के त्यों खड़े रह गए। अव तो मायारानी के ताज्जुब का काई ठिकाना न रहा और वह घबरा कर बाबाजी का मुह देखने लगी। अगर तिलिस्मी खजर में से चमक न पैदा होती तो उसे शक होता कि यह तिलिस्मी खजर शायद वह नहीं है जिसकी तारीफ भूतनाथ ने की थी मगर अब वह इस खजर पर किसी तरह का शक भी नहीं कर सकती थी। चाया-(हस कर ) कहो मरा घमण्ड वाजिब है या नहीं । माया-(तिलिस्मी खजर की तरफ देख कर ) शायद इसमें कुछ बाया-(धात काट कर ) नहीं नहीं इस खजर के गुण में किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा। मैं इस खजर को खूब जानता है। यद्यपि तुम्हारे लिए यह एक नई चीज है परन्तु में अपने ( राजा गोपालसिह की तरफ इशारा करके) इस मालिक की बदौलत इसी प्रकार और गुण के कई खजर कटार तलवार और नेर्ज देख चुका है और उनस काम भी लं चुका हू, मगर जय मै तिलिस्मी कामों मे सिद्ध के बरावर हा गया तब मेरे दिल से ऐसी तुच्छ चीजों की कदर और इज्जत जाती रही। तुम देखती हो कि इस खजर का मुझपर कुछ भी असर नहीं हाता { असल तो यह है कि तुम मेरी ताकत को नहीं जानती हो तुम्ह नहीं मालूम है कि खाली हाथ रहने पर भी मैं क्या कर सकता हू बस में अपनी ताकत का हाल खालना उचित नहीं समझता परन्तु अफसोस तुम मुझी को मारने के लिए तैयार हो गई खैर कोई चिन्ता नहीं आज तक मै तुम्हारी इज्जत करता रहा और तुमने जा कुछ भला युरा किया उस देखकर भी तरह देखा गया मगर अब देखता हु तो तुम माया-(चात काट कर ) सुनिए सुनिए आप जो कुछ कहेंगे में समझ गई। मेरी यह नीयत न थी और न है कि आपकी जान लू क्योंकि केवल आप ही के भरोसे पर मैं कूद रही हू, और आप ही की मदद से बडे बडे बहादुरों को मैं कुछ नहीं समझती। यह तो साफ जाहिर है कि थोडे ही दिन आप मुझस अलग रहे और इसी बीच में मेरी सय दुदशा हो गई। में आपको पिता के समान मानती है इसलिए आशा है कि ( हाथ जोडकर ) इस समय जो कुछ मुझसे भूल हो गई उस आप बाल बच्चों की भूल के समान भान कर क्षमा करेंगे मगर इस कसूर से मेरा असल मतलब सिर्फ इतना ही था कि किसी तरह राजा गोपालसिह के मारने पर आप का राजी करूँ। वावाजी पर तिलिस्मी खजर का कुछ भी असर न होते देख मायारानी का कलजा धडकने लगा वह बहुत डरी और उसे विश्वास हो गया है कि तिलिस्मी कारखाने में जितना बाबाजी को दखल और जानकारी है उसका सोलहवाँ हिस्सा भी उसका नहीं है और उसी के साथ तिलिस्मी चीजों से बाशजी न बहुत कुछ फायदा भी उठाया है। यह भी उसी फायदे का असर है कि राजा वीरेन्दसिह की कैद से सहज ही में छूट आए और एसे अदभुत तिलिस्मी खजर को तुच्छ समझते है तथा इसका असर इन पर कुछ भी नहीं होता। अब वह इस बात को साचने लगी कि उसे याबाजी से बिगाड करना उचित नहीं बल्कि जिस तरह हो सक उन्हें राजी करना चाहिए फिर मौका मिलन पर जैसा होगा देखा जाएगा। ऐसी एसी बहुत सी बातें मायारानी तेजी के साथ साच गई और उसी समय से वह अधीनता के साथ बाबाजी से वाते करने लगी। जय अपनी यात रखतम करके चुप हो गई तो वावाजी ने मुस्कुरा दिया और कुछ सोचकर कहा 'खैर मैं तुम्हार इस कसूर को माफ करता हू मगर यह नहीं चाहता कि राजा गोपालसिह को किसी तरह की तकलीफ हो जिन्हें मुदत के बाद आज म इस अवस्था मे देख रहा हू! माया-तब आपने माफ ही क्या किया? यद्यपि आपको इस बात का रज है कि मेने गोपालसिह के साथ दगा किया और यह भेद आपसे छिपा रक्खा मगर आप भी तो जरा पुरानी बातों को याद कीजिए खास करके उस अधेरी रात की यात जिसमें मेरी शादी और पुतले की बदलौयल हुई थी वह सब कर्म तो आप ही का है आप ही ने मुझे यहाँ पहुचाया। अब अगर मेरी दुर्दशा हागी ता आप बच पाएगे? फिर मान लिया जाय कि आए गोपालसिह को बचा भी ले तो क्या { देवकीनन्दन खत्री समग्र