पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२५

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६ .. ऊपर चढ़ गई और वहा से जब दुश्मनों की तरफ देखा तो मालूम हुआ कि वे लोग जो गिनती में चार सौर्स किसी तरह कम न हाँग तालाब के पास पहुच गय है और तालाब क खौलत हुए जल तथा उस एक चक्र का जो इस समय जल के बाहर निकला हुआ तजी के साथ घूम रहा था हेरत की निगाह से देख रहे है। तारा-किशारी बहिन दखो अगर इस समय उन चारों पुतलियां का हाल मलूम न होता तो हम लोगों की तबाही में कुछ बाकी न था। किशोरी-यशक इस समय तो उन चारों चका ही ने हम लोगों की जान बचा ली। दुश्मन लोग इस समय उन चक्रो को आश्चर्य से ही देख रहे है और इस तरफ कदम बढाने की हिम्मत नहीं करते। कामिनी-मगर हम लोग कब तक इस अवस्था में रह सकते है ? क्या वे चारों चक्र इसी तरह बहुत दिनों तक घूमते रह सकते है। तारा-हा अगर हम लोग स्वय न राक देता एक महीने तक बराबर घूमते रहेगे इसके बाद इन चक्रों के घुमाने के लिए कोई दूसरी तर्कीब करनी होगी जो मुझे मालूम नहीं । किशोरी-अगर एसा है ता महीन भर तक हम लाग घेखौफ रह सकते है और क्या इस बीच मे हमारी मदद करने वाला कोई भी नहीं पहुचेगा? तारा-क्यो नहीं पहुधगा मान लिया जाय कि हमारा साथी इस बीच में कोई न आवेता भी रोहतासगढ से मदद जरुर आवेगी क्योंकि यह जमीन रोहतासगढ की अमलदारी में है और राहतासगढ यहाँ से बहुत दूर भी नहीं है अस्तु एसा नहीं हो सकता कि राजा की अमलदारी में इतने आदमी मिल कर उपदव मचावे और राजा को कुछ खबर न हो। कामिनी-ठीक है मगर यह ता कहो कि बहुत दिनों तक काम चलने के लिये गल्ला इस मकान में है ? तारा-आह गल्ले की क्या कमी है साल भर से ज्यादे दिन तक काम चलाने के लिए गल्ला मौजूद है कामिनी-और जल के लिय क्या बन्दोबस्त होगा क्योंकि जितनी तेजी के साथ इस तालाब का जल निकल रहा है उससे तो मालूम होता है कि पहर भर के अन्दर तालाब सूख जायगा । कामिनी की इस बात ने तारा का चौका दिया। उसके चेहर से बेफिक्री की निशानियाँ जो चारों पुतलियों की करामात स पैदा हो गई थी जाती रही और उसके बदले मे घबराहट और परेशानी ने अपना दखलं जमा लिया। लारा की यह अवस्था देख कर किशोरी और कामिनी को विश्वास हो गया कि इस तालाब का जल सूख जानेपर बेशक हम लोगों को प्यासे रह कर जान देनी पड़गी क्योंकि अगर ऐसा न होता तो तारा घबडा कर चुप न हो जाती जरुर कुछ जवाब देती। आरियर तारा का चिन्ता में डूबे हुए देख कर कामिनी ने पुन कुछ कहना चाहा मगर मौका ना मिला क्योंकि तारा यकायक कुछ सोच कर उठ खड़ी हुई और कामिनी तथा किशोरी को अपने पीछे पीछे आने का इशारा करके छत के नीचे उतर कमरों में घूमती फिरती उस काठरी में पहुँची जिसमें नहाने के लिये छोटा सा हौज बना हुआ था जिसमें एक तरफ स तालाब में पानी कम हो जान के कारण हौज का जल भी कुछ कम हो गया था। तारा ने वहा पहुचने के साथ ही फुर्ती से उन दानो रारतों को बन्द कर दिया जिनसे हौज में जल आता और निकल जाता था इसके बाद एक ऊँची सास लेकर उसन कामिनी की तरफ दखा और कहा- तारा--ओफ इस समय बड़ा ही गजय हो चला था । अगर तुम पानी के विषय में याद न दिलाती तो इस हौज की तरफ से मैं बिल्कुल बफिक्र थी इसका ध्यान भी न था कि तालाब का जल कम हो जाने पर यह हौज भी सूख जायगा और तब हम लोगों को प्यासे रह कर जान देनी पड़ेगी। किशोरी-ता इससे जाना जाता है कि तालाब सूख जाने पर सिवाय इस छोटेस हौज के और कोई चीज ऐसी नहीं है जो हम लोगों की प्यास बुझा सके। कामिनी-और यह हौज तीन चार दिन से ज्यादे काम नहीं चला सकता एसी अवस्था में उन चक्रों का महीने भर तक घूमना ही वृथा है क्योंकि हम लोग प्यास के मारे मौत के मेहमान हो जायेंगे। अफसोस जिस कारीगरने इस मकान की हिफाजत के लिए ऐसी ऐसी चीजें बनाई और जिसने यह सोच कर कि तालाव का जल सूख जाने पर भी इस मकान में रहने वालो पर मुसीयत न आवे ये घूमने वाले चक बनाये उसने इतना न सोचा कि तालाब सूखने पर यहा के रहने वाले जल कहा से पीयेंगे? उसे इस मकान में एक कूआ भी बना देना था। तारा-ठीक है मगर जहा तक मै ख्याल करतीटू इस मकान के बनान वाल कारीगर ने इतनी बड़ी भूल न की होगी। उसने काई कूआ अवश्य बनाया होगा लकिन मुझ उसका पता मालूम नहीं। सैर देखा जायगा मै उसका पता अवश्य लमाऊगी। चन्द्रकान्ता सन्ततिभाग ११ ५१७