पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४२

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और दूसरी जाहेनी तरफ। कमलिनी ने नैरोसिह और देवीसिह की तरफ दख के कहा मुझ गालूम है कि दाहिनी तरफ जान हम लोग उस काटरेरी में यहुचेंग जिसमें कैदी लोग कैद थे या जो कैदखाने के नाम से पुकारी जाती है और बाई पर जान से हम लाग उस सुरग के चोचावीच में पहुचंगे जिसमें किशारी कामिनी और तारा का भगवनिया ने फेरा रा। आप लोगों की क्या गय है किधर चलना चाहिये? देवी -हम लोगों को पहिले उस सुरग ही में चलना चाहिए जिसमें किशोरी कामिनी और तारा को जल्द देखें। इस बात को सभों ने पसन्द किया और कमलिनी ने चाइ तरफ का रास्ता लिया। दो चार कदम जाने के बाद भैरोसिंह ने कहा मैं समझता हूं कि अव दीस पचीस कदम स ज्यादे न चलना होगा और उस ठिकाने पहुच जाय जहा शीघ्र पहुचने की इच्छा है । कमलिनी -यह बाल तुमको कैसे मालूम हुई? भैरो--(छत और दोनों तरफ की दीवार की तरफ इशारा करके ) देखिये छत और दीवार नम मालूम होती है कही कहीं पानी की बूदे भी टपक रही है इससे निश्चित होता है कि इस समय हम लोग तालाब के नीचे पहुच गये है। कमलिनी ने कहा "ठीक है तुम्हारा सबूत ऐसा नहीं है कि कोई काट सके। थाडी ही दूर आगे जाने बाद एक छोटी सी खिड़की मिली। इसका दर्वाजा भीउसी ढग से खुलने वाला था जैसा कि पहिला और दूसरा दजा जिनका हाल हम ऊपर लिख आये है। कमलिनी ने दर्वाजा खोला। इस समय इन चारों का कलेजा धकधक कर रहा था क्योंकि अब ये लोग किशोरी कामिनी और तारा की किस्मतों का फैसला देखने वाले थे और उनको दिलों का यह खुटका क्रमश बढता ही जाता था कि देखे बेचारी किशोरी कामिनी और तारा को हम लाग किस अवस्था में पात है। कहीं ऐसा न हुआ हा कि वे तीनों भूख प्यास के दुःख को न सह कर इस दुनिया से कूच कर गई हो और इस समय उनकी लाशें सामने पड कर हम लोगों को भी दीन दुनिया के लायक न रखें। यहाँ पर एक मामयत्ती और जला ली गइ। ददाजा खुला और य चारों उसके अन्दर गये। आह यहा यकायक जमीन पर सामने की तरफ तीन लारों पड़ी हुई दिखाई दी जिस पर नजर पडते ही कमलिनी के मुह से एक चीख निकल पड़ी और वह “हाय करके उन लागों के पास जा पहुची । ये तीनों लाशें किशोरी कामिनी और तारा की थी जो भूख और प्यास की सताई हुई इस अवस्था को पहुच गई थीं। तारा के बगल में तिलिस्मी नजा जमीन पर पड़ा हुआ था और उसके जोड की अगूठी उसकी यूपसूरत उगली में पड़ी हुई थी कमलिनी ने सबस पहिल किशारी के क्लेजे पर हाथ रखा। कलेजे की धडकन बन्द थी और शरीर मुर्दे की तरह ठडा था । कमलिनी की आखों से आसू की ब्दं गिरने लगी मगर उसने किशारी की नब्ज पर हाथ रक्खा और साथ ही इसक खुश होकर बाल उठी अहा अभी नब्ज चल रही है । आशा है कि ईश्वर मेरी मेहनत सफल करेगा ॥ कमलिनी न तारा और कामिनी की भी जाच की दोनों ऐयारों ने भी सभों को गौर से देखा। किशोरी कामिनी और तारा तीनों को अवस्था खराब थी होश हवास कुछ भी न था सास विल्कुल मालूम नहीं पड़ती थी हा नब्ज का कुछ कुछ पता लगता था जो बहुत ही बरोक और सुस्त चल रही थी। यद्यपि यह जान कर सभी का कुछ प्रसन्नताहुई कि ये तीनों अभी जीती है मगर फिर भी उन तीनों की अन्तिम अवस्था इस बात का निश्चय नहीं कर सकती थी कि इनकी जान नि सन्देह यच ही जायगी और यही कारण था कि जिसस कमलिनी लाडिलो देवीसिह और भैरोसिह का कलेजा फाप रहा था और आखें डबडगई हुई थीं ! देवीसिह ने अपने बटुए में से एक शीशी निकाली जिसमें लाल रंग का काई अर्क था।उसी में से थोडाथोडा अर्क उन तीनों क मुह में (जो पहिल ही से खुला हुआ था) डाला और थाडी देर बाद नब्ज पर हाथ रक्सा । नब्ज पहिले से कुछ तेज मालूम हुई और सास भी फु बलने लगी। भैरो -इन तीनों को यहा से बाहर निकाल कर मैदान में ले चलना चाहिये क्योंकि जब तक ठण्डी और ताजी हवा न मिलेगी इनफी अवस्था ठीक न होगी । देवी - वेशक ऐसा ही है इस सुरग की बन्द हवा हमारे इलाज का सफल न होने देगी। कमलिनी --ता पहिले यही काम करना चाहिय । इत" कह कर कमलिनी न तारा की उगली से तिलिस्मी नेजे के जोड की अगूठी निकाल ली और भैरोसिंह को देकर कहा इस अगूठी को तुन पटिर लो जिसमें इस तिलिस्मी नेजे का अपने पास रख सको क्योंकि इन तीनों को बाहर ले जान के बाद गाडिली और देवीसिह को साथ लेकर थोडी दर के लिए मैं तुम्स अलग हा जाऊगी और किशोरी कामिनी तथा तारा की हिफाजत के लिए तुम अकेले रह जाओगे। देवकीनन्दच खत्री समग्र