पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६०

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- दि - चन्द्रकान्ता सन्तति बारहवां भाग पहिला बयान हम ग्यारह भाग के अन्त में लिख आये है कि जब देवीसिह ने उस विचित्र मनुष्य का चेहरा धोकर साफ किया तो शायद तारा ने उसे पहिचान लिया और इस घटना उस पर ऐसा असर हुआ कि वह चिल्ला उठी,उसका सिर घूमने लगा और वह जमीन पर गिरने के साथ ही बहाश हो गई। उसी समय सामने से वह नकाबपोश भी आता हुआ दिखाई दिया जिसने उस विचित्र मनुष्य को हैरान और परशान कर दिया था और उस गठरी को भी अपने कब्ज में कर लिया था जिसमें विचित्र मनुष्य के कहे मुताविक तारा की किस्मत बन्द थी। इस बयान में भी हम उसी सिलसिल का जारी रखना उचित समझते है। वात की बात मे नकाबपोश उस जगह आ पहुँचा जहाँ वह विचित्र मनुष्य और उसके सामन एक पत्थर की चट्टान पर तारा बहोश पड़ी हुई थी तथा कमलिनी बडी मुहव्यत से तारा का तर थामें ताज्जुब भरी निगाहों से हर एक को देख रही थी। देवी (नकाबपोश से) आप यहा कैसे आये? क्या यहा का रास्ता आपको मालूम था ? नकाव-नहीं नहीं मैं तुम्हारे पीछे पीछे यहाँ तक आया हूँ। इतना कह कर नकाबपाश ने अपने चहर सनकाय उठाकर पीछे की तरफ उलट दी और सोन तजसिह का पहिचान कर बड़ा ही आश्चर्य किया। भैरोंसिंह ने दौड़ कर अपन पिता का चरण छूआ. देवीसिह भी तेजसिह के गले मिले और किशारी कामिनी लाडिलो तथा कमलिनी ने भी उन्हें प्रणाम किया। देवी-(तजसिंह से ) क्या आप ही वह नकाबपाश है जिसका विचिन हाल भूतनाथ की जुबानी मैने सुना है ? तेज-हाँ में ही था भगर भूतनाथ को इस बात का शक भी न हुआ होगा की नकाबपोश वास्तव में तेजसिह है। (विचित्र मनुष्य की तरफ इशारा करके) इसके और भूतनाथ के बीच म जो जा बात या घटनाए हुइ यह भूतनाथ की जुवानी तुमने सुनी ही होगी? देवी-हॉ सुनी तो है मगर मुझे विश्वास नहीं है कि भूतनाथ ने जो कहा सब सब कहा हागा। तेज-ठीक है रात से मेरा ख्याल भी भूतनाथ की तरफ से एसा ही हो रहा है खैर मै स्वय सब हालतुम लोगों से कहता हू मै तारा सिह को साथ लिए हुए रोहतासगढ गया था। उस समय में रोहतासगढ ही में था जब यह खबर पहुंची कि कमलिनी के तिलिस्मी मकान को दुश्मनों ने घेर लिया है और उस पर अपना दखल जमाया ही चाहते है। मैने तुरन्त थोडे से फौजी सिपाहियों को दुश्मन से मुकाला करने के लिए रवाना किया और दो घण्टे बाद तारासिह कासाथलकर सूरत बदले हुए खुद भी उसी तरफ रवाना हुआ। रात की पहली अधेरी थी जब हम दोनों एक जगल में पहुँच और उसी समय घोडे के टापों की आवाज आने लगी यह आवाज पीछे की तरफ से आ रही थी और क्रमश यास होती जाती थी। हम दोनों यह सोचकर पेड़ की आड में खड़े हो गये कि जवयहसवार आगे निकल जाय तय हम लोग चलेंगे मगर जब यह घोडा उस पेड के पास पहुंचा जिसकी आड में हम दोनों छिपे खडे थे तो हमने देखा कि उस घोड़े पर एक नहीं बल्कि दो आदमी सवार है जिनमें से एक औरत है जो पीछे की तरफ बैठी हुई है। उसका औरत होना मुझे इस तरह मालूम हुआ कि जय घोडा पड के पास पहुँचा जिसकी आड में हम लोग छिपे हुए थे तो उस औरत ने कहा जरा ठहर जाइये में इम जगह उतरुनी और दस बारह पल के लिए आपसे जुदा हाऊगी। बस इस आवाज ही से मुझे निश्चय हो गया कि वह औरन है। घोडा राककर सवार उतर पड़ा और हाथ का सहारा देकर उस औरत को भी उसने उतारा। इतना कह कर तेजसिह रूक गये और कमलिनी की तरफ देख कर बोले मगर मुझे इस समय अपना किस्सा कहत अच्छा नहीं मालूम होता। कम-सा क्यों?