पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६४

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वही रघुवर - प्रियवर हेलासिह- आपने लिखा कि यद्यपि मुन्दर विधवा है और उसकी उम्र भी ज्यादे हे परन्तु नाटी होने के सवय वह ज्यादे उम्र की मालूम नही पडती ठीक है मगर बहुत सी बातें ऐसी हैं जो औरों को चाहे मालूम न हों मगर उससे किसी तरह छिपी नहीं रह सकती जिसकसाथ उसकी शादी होगी और इसी बात से राजा गोपालसिह का दारोगा भी डरता है मगर मैने भविष्य के लिए उसक ख्याल में एसे ऐसे सरसब्ज बाग पैदा कर दिए हैं कि जिसकी बेसुध और मदहोश कर देन वाली खुशबू को वह अभी से सूघने लग गया है तिस पर भी मैं इस बात का तुम्हें विश्वास दिलाता हू कि यह शादी प्रकट रूप से नहीं हो सकती। इसके लिए उस व्याह वाले दिन ही कोई अनोखी चाल चलनी पडेगी। अस्तु दारोगा साहब ने यह कहा है कि आज के आठवें दिन गुरूवार को सन्ध्या समय दारोगा साहब के बगले में आप उनसे मिलें मै भी वहा मौजूद रहूगा फिर जो कुछ तै हो जाय वही ठीक है। कम-मुझे यह नहीं मालूम था कि भूतनाथ के हाथ से ऐसे ऐसे अनुचित कार्य हुए है। उसने यही कहा था कि मैं राजा वीरेन्द्रसिह का दोषी हू और इस बात का सबूत मायारानी और उसकी सखी मनोरमा के कब्जे में है। जहा तक मुझसे बना मैने भूतनाथ का पक्ष करके उन सबूतों को गारत कर दिया मगर मैं हैरान थी कि मूतनाथ को धमकाने कब्जे में रखन या तबाह करने के लिए मायारानी ने इतने सबूत क्यों बटोर रक्खें है या उसे भूतनाथ की परवाह इतनी क्यों हुई मगर आज उस बात का असल भेद खुल गया। इस समय मालूम हो गया कि लक्ष्मीदेवीऔर गोपालसिह के साथ दगा करने में भूतनाथ शरीक था और इस बात का डर केवल भूतनाथ और दारोगा ही को नहीं था बल्कि मायारानी को भी था और वह भी अपने को भूतनाथ और दारोगा के कब्जे में समझती थी। राजागापालसिह को कैद करने के बाद यह डर और भी बढ गया होगा और भूतनाथ ने भी उसे कुछ डराया धमकाया या रुपए वसूल करने के लिए तग किया होगा और उस समय भूतनाथ को अपने आधीन करने के लिए मायारानी ने यह कार्रवाई की होगी अर्थात् भूतनाथ को राजा वीरन्दसिह का दोषी ठहरान के लिए बहुत से सबूत इकटठे किए होंगे। भैरो-मैं भी यही सोचता है। तेज-नि सन्देह ऐसा ही है। कम-ओफ ओह अगर मै पहिले ही ऐसा जान गई होती तो भूतनाथ का इतना पक्ष न करती और न उसे अपना साथी ही बनाती। देवी -- मगर इधर तो उसने आपके कामों में बड़ी मेहनत की है इसलिए कुछ मुरोवत तो करनी पड़ेगी। कम नहीं नहीं मै उसका कसूर कभी माफ नहीं कर सकती चाहे जो हो । देवी-मगर फिर वह भी आप ही लोगों का दुश्मन होजायगा! जहा तक मै समझता हू इस समय वह अपने किए पर आप पछता रहा है। कमलिनी-जो होमगर यह कसूर ऐसानहीं हैजिसे मैं माफ कर सकू। ओह आह 'क्रोध के मारे मेरा अजब हाल हो - तेज-उसने कसूर भी भारी किया है। बल-अभी क्या है अभी तो कुछ देखा ही नहीं | उसने जो किया है उसका हजारवा भाग भी अभी तक आपको मालूम नहीं हुआ है जरा आगे की चीठिया तो पढिए और इसके बाद जब वह पीतल वाला कमलदान खुलेगा तब हम दवीसिहजी से पूछंगे कि कहिये भूतनाथ के साथ कैसा सलूक करना चाहिए ॥ इस समय बेचारी तारा (जिसको आगे से हम लक्ष्मीदेवी के नाम से लिखा करेंगे) धुपचाप बैठी लम्बी लम्बी सासे ले रही थी। बाप के शर्म से वह इस विषय में कुछ बोल नहीं सकती थी मगर भूतनाथ से बदला लेने का ख्याल उसके दिल मे गजबूती के साथजड पकडता जा रहा था और क्रोध की आच उसके अन्दर इतनी ज्यादे तेज होकर सुलग रही थीं कि उसका तमाम वदन गर्म हो रहा था इस तरह जैसे बुखार चढ़ आया हो। आज के पहिले वह भूतनाथ कोलायक और नेक समझती थी मगर इस समय यकायक जो वार्ते मालूम हुई उन्होंने उसे अपने आपे से बाहर कर दिया था। तजसिह ने चौथी चीठी पदी उसमें लिखा हुआ था - प्रिय वन्धु हेलासिह बहुत दिनों स पत्र न भेजन के कारण आपको उदास न होना चाहिए। मै इस फिक्र में लगा हुआ हूँ कि किसी तरह बलभदसिह और लक्ष्मीदेवी कोखपा डालू मगर अभी तक में कुछ न कर सका क्योंकि एक तो बलभद्रसिह स्वय ऐयार है दूसर आजक्लाराजा गोपालसिट की आज्ञानुसार विहारीसिह और हरनामसिह भी उसके घर की हिफाजत कर रहे है। खैर कोई चिन्ता नहीं देखिए तो सही क्या होता है मिने बलभदसिह के पड़ोस में हलवाई की एक दुकान खोली है और देवकीनन्दन खत्री समग्र