पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६५

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आफ अच्छ अच्छ कारीगर हलवाई नोकर रक्खे है। बहुत सी मिठाइया मैंने ऐसी तैयार की है जिनमें दारोगा साहब का दिया हुआ अनूठा जहर बड़ी खूबी के साथ मिलायागया है। यह जहर ऐसा है कि जिसे खाने के साथ हीआदमी नहीं मर जाता वल्कि महीनों तक बीमार रहकेजान देता है। जहर खाने वाले का बिल्कुल बदन फूट जायगा और वैद्य लोग उस देख के सिवाय इसके और कुछ भी नहीं कह सकेंगे कि यह गर्मी की बीमारी से मरा है जहर का तो किसी को गुमान भी न होगा। मैंने उस घर की लौडियों और नौकरों से भी मेलजाल पैदा कर लिया है अस्तु चाहे वे लोग कैसे होशियार और धूर्त क्यों न हो मगर एक न एक दिन हमारी जहरीली मिठाई बलभद्रसिह के पेट में उतर ही जायगी। आपकी लडकी बड़ी ही होशियार और चागली है वह सुजान के घर में बहुत अच्छ ढग से रहती है। सुजान ने उसे अपनी भतीजी कहके मशहूर किया है और उसकी भी बातचीत चल रही है मगर गोपालसिह का बूढा बाप ही शैतान है। दारागा साहब उसका नाम निशान भी मिटाने के उद्यान में लगे हुए हैं। सर करो घबडाओ मत काम अवश्य बन जायेगा आज से मैं अपना नाम बदल देता हू मुझ अब भूतनाथ कह के पुकारा करना । वही-भूता इस चीटी न सभों के दिल पर बडा ही भयानक असर किया यहाँ तक कि देवीसिह की आखे भी मारे क्रोध के लाल हो गई और तमाम वदन कापन लगा। तेज-बईभान दुष्ट । इतनी बडी चढी बदमाशी। भैरो-इस हरमजदगी का कुछ ठिकाना है ॥ लाडिली-इस समय मेरा कलेजा फुका जाता है। यदि भूतनाथ यहाँ मौजूद हाता तो इसी समय अपने हृदय की आच में उसे आहुति दे देती। परमेश्वर ऐसे ऐस पापियों के साथ तू कमलिनी- हाय कम्बस्त भूतनाथ ने ता एसा काम किया है कि यदि वह कुत्ते से भी नुचवाया जाय ता उसका यदला नही हो सकता। बलभद-ठीक है मगर में उसकी जान कदापि न मारुगा। मैं वही काम करेगा जिसस मेरे कलेजे की आग ठढी हो देवीसिह-इधर हम लोगों के साथ मिल के भूतनाथ ने जो जो काम लिए है उनसे विश्वास हो गया था कि वह हम लोगों का खैरख्वाह है। हम लोग उससे बहुत ही प्रसन्न थे और बलभद्र-नहीं नहीं वह एसे काले साप का जहरीला बच्चा है जिसके काट मन्त्र ही नहीं। उसका कोई ठिकाना नहीं। बेशक वह कुछ दिन में आप लोगों को अपने आधीन करके मायारानी से मिल जाता। यह काम भी वह कभी का कर चुका होता मगर जब से उसने मरी सूरत देखली है और उस निश्चय हा गया कि में मरा नहीं बल्कि जीता हू तब से उसकी अक्ल ठिकाने नहीं है वह घबडा गया है और अपने वचाव की तीव सोच रहा है। (तेजसिहस) खैर आगे पढिए दखिए और क्या बाल मालूम होती है। तजसिह न अगली चीठी पढी उसमें यह लिखा हुआ था - मेरे लगोटिया यार हेलासिह- मालूम हाता है तुम्हारा नसीवा यडाजवदस्तहै। राजा गोपालसिह का बुडढा बाप बडा ही चागला और काइया था। वह कम्बख्त अपने ही मन की करता था। अगर यह जीता रहतातो लक्ष्मीदेवी की शादी गोपालसिह से अवश्य हो जाती क्योंकि वह बलमदसिह की बहुत इज्जत करता था। वलभद्रसिह की जाति उत्तम है और वह जाति पाति का ख्याल बहुत करता था खैर आज तुम्हें इस वत की बधाई दता हूँ कि मेरी और दारोगा की मेहनत दिकाने लगी और वह इस दुनिया से कूच कर गया। सचता यों है कि बड़ा भारी काटा निकल गया। अब साल मर के लिए शादी रुक गई और इस बीच में हम लाग बहुत कुछ कर गुजरेंगे। वही-भूत। चीठी पूरी करन के साथ ही तेजसिह की आखों स आसू की चूदे टपकने लगी और उन्होने एक लम्बी सास लकर कहा अफसोस यह बात किसी को भी मालूम न हुई कि राजा गोपालसिह का बाप इन दुष्टों की चालबाजियों का शिकार हुआ। बेचारा वडा ही लायक और बात का धनी था। तारा यद्यपि बड़ी मुश्किल से अपन दिल को रोके हुए यह सब तमाशा देख और सुर रही थी मगर इस चीठी ने उसके साहस में विघ्न डाल दिया और उसे सभों की आखे बचा कर आचल के कोने से अपन आसू पोंछन पड़ा किशोरी कामिनी लाडिली कमलिनी और ऐयारों का दिल भी हिल गया और भूतनाथ की सूरत घृणा के साथ आखों के सामने घूमने लगी। तेजसिह ने कागज का मुद्दा जमीन पर रख दिया और अपने दिल को सम्हालने की नीयत से सर उठा कर सरसब्ज पहाडियों की तरफ देखने लगा थोडी देर तक सन्नाटा रहा इसके बाद तेजसिह ने कागज का मुद्दा उठा लिया और पढने लगे। "मेर भाग्यशाली मित्र हलासिह मुबारक हो आज हमारी जहरीली मिठाई बलभदसिह के घर में जा पहुची। इसका जो कुछ नतीजा देखूगा चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२ ५५७