पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६६

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LE नही-भूत। अगली चीठी में लिखूगा वास्तव में तुम किस्मतवर हो । कमलिनी-हाय कम्बख्त तरा सत्यानाश हो । लाडिली-चाण्डाल कहीं का ऐसा सत्यानाशी और हमलोगों के साथ रहे छी छी ।" तारा-(तेजसिह से ) हाय मेरा जी डूबा जाता है म हाथ जाती है इसके बाद वाली चौठी शीघ पदिय जिसमें मालूम हो कि उस विश्वासघाती की मिठाई का क्या नतीजा निकला। सय-हा हा यहाँ पर हम लोग नहीं रुक सकते शीघ पदिय । तेज-में पढ़ता श्रीमान प्यारे बन्धु इलासिड खुशी मनाइये कि मरी मिठाई ने लक्ष्मीदेवी की मा लक्ष्मीदवी के छोटे भाई और दो लौजियों का काम तमाम कर दिया । बलमदसिह और उसकी तीनों लड़कियों न मिठाई नहीं खाई थी इसीलिए यच गई और फिर सही, जात कहा है। दही-भूत। इस चौठी ने तो अन्धेर कर दिया। काई भी ऐसा ही था जिसकी आय से आतून निकलत हो। कमलिनी और लाडिली गेन लगी और लक्ष्मीदेवी ता चिल्ला कर बोली हाय इस समय मुझे लड़कपन की सर यातें याद आ रही है। वह समा मरी आखों क सामने धूम रहा है। मरे घर न वैद्यों की धूम मची हुई थी मरी प्यारी मा अपने लड़के की लाश पर पछा. खा रही थी अन्त में वह भी मर गई। हम लोग रो रोकर लाश के साथ विमटत थे और हमारा बाप हम लोगों को खंच खैच कर अलग करताथा! हाय क्या दुनिया में कई ऐसी सजा है जो इस बात का पूरा बदला कहला सके । किशारी-( रा कर ) कोई नहीं काई नहीं । कम-हाय मिरे कलज में दर्द हात लगा किस दुष्ट का जीवनचरित्र में सुन रही हूस अब मुझमें सुनने की सामर्थ्य नहीं रही ( रा कर ) आफ इतना जुल्म 'इतना अन्धेर । भैरो-बस रहन दीजिये अब इस समय आगन पद्रिय । तेज-इस समय मैं आगे पद ही नहीं सकता। तजसिह न कागज का नुटा लपट कर रख दिया और समों को दिलासा और तसल्ली दने लगा तेजसिह का इशारा पाकर भैरासिह और वीसिह कई तीतर और यटर शिकार कर लाय और उसका कयाय तथा शारया बनाने लगे जिसमें सभों का खिला पिला कर शान्त करें। आज खान पीन की इच्छा किसी की भी न थी मगर तेजसिह के समझान बुझान से सनों न कुछ खाया और जय शान्त हुए ता तेजसिह ने कहा अब हमको तालाब वाल मकान में चलना चाहिय। बलभद-हा अब इस जगह रहना ठीक न होगा मकान में चल कर जो कुछ पदना या देखना हो पढियेगा कम-गरी भी यही राय है। मेदेवीसिहजी से कह चुकी है कि यदि मैं उस मकान में रहती तो दुश्मन हमारा कुछ भीन चिमाड सकत और तालाब का पाट दना ता असम्भव ही था।खैर अब भी मै बिना परिश्रम के उस तालाव की तफाईकर 1 सकती हूँ। इतना कह कर कमलिनी ने तालाब वाल मकान का बहुत सा भेद तेजसिह को बताया और जिस तरह से तालाब की सफाई हा सकती थी वह भी कहा जो कि हम ऊपर नी लियआये है। अन्त में सभों ने निश्चय कर लिया कि घण्टे भर के अन्दर इस जगह को छोड देना और तालाब पाले मकान में चले जाना चाहिये । दूसरा बयान सुबह का सुहावना समय है। पहिले घण्टे की धप ने ऊचे पेड़ों की टहनियों मकान के कगूरों और पहाडों की चोटियों पर सुनहली चादर बिछा दी है। मुसाफिर लोग दो तीन कोस की मजिल मार चुके हैं। तारासिह और श्यामसुन्दरसिह अपन साथ मगनिया और भूतनाथ को लिये हुए तालाय वाले तिलिस्मी मकान की तरफ जा रहे है। उनके दानों साथी अर्थात भगवनिया और भूतनाथ अपने अपने गम में सिर नीचा किए चुपचाप पीछे पीछे जा रहे है। भूतनाथ के चहर पर उदासी और भगवनिया के चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई है। कदाचित भूतनाथ के चेहरे पर भी नुदनी छाई हुई होती या वह इन लागों में न दिखाई देता यदि उसे इस बात की यबर होती कि तारा की किस्मत वाली गठरी तजसिह के हाथ लग गई है और तारा तथा वलभद्रसिह का भेद खुल गया है। वह तो यही सोचे हुए था कितारा अपन - देवकीनन्दन खत्री समग्र