पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७२

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GY कमलिनो-तो क्या आपने पूछा नहीं कि अगर तुम यह हाल पहिल ही जानत थे तो अब तक इन लोगों से क्यों न कहा ? देवी- केवल यही नहीं बल्कि मैने कई बातें उससे पूछी। तेज-तुममें और भूतनाथ में जो-जो बातें हुई सब कह जाआ। वह तस्वीर एकएक करक सभों ने देखी और तब दीसिह उन बातों को दोहरा मय जो उनके और भूतनाथ के बीच में हुइ थी। उनके सुनन से सभा का ताज्जुब हुआ और सभी काई साचने लग कि अब क्या करना चाहिय । कमलिनी-(तारा स) बहिन वेशक तुम इस विषय में हम लोगों से बहुत ज्याद गौर कर सकती हो फिर भी इतना मैं कह सकती है कि मर पिता में जो भूतनाय से मिलन गय है और इस तस्वीर में बहुत ज्याद फर्फ नहीं है तारा-क्या कहू अक्ल कुछ काम नहीं करती मैिं उन्हें भी अच्छी तरह पहिचानती है और इस तस्वीर का भी अच्छी तरह पहिचानती हू। इस तस्वीर को तो हम तीनों में से जो देखेगा वही कहेगा कि हमार पिता की है मगर इनको केवल में ही पहिचानती है। जिस जमान में में और य एक कंदखान में थे उसी जमाने में इनकी सूरत शक्ल में बहुत फर्क पड गया था। (चोक कर ) आह मुझे एक पुरानी बात याद आई है जो इस भेद को तुरन्त साफ कर दगी ! कमलिनी-यह क्या? तारा--तुम्हें याद होगा कि जब हम लोग छाट छोट थे और लाडिली बहुत ही छाटी यी तो उसे एक दफे बुखार आया था और वह बुखार बहुत ही कडा था यहा तक कि सरसाम हो गया था और उसी पागलपन में उसन पिताजी के मोड़ पर दात काट लिया था। कम-ठीक है अव मुझ भी वह वात याद पडी। इतने जार से दात काटा था कि सरों खून निकल गया था। जन तक व हम लागों के साथ रहे तब तक मैं बराबर उस निशा को देखती थी मुझे विश्वास है कि सौ वर्ष बीत जान पर भी वह दाग मिट नहीं सकता। तारा-वशक ऐसा ही था और हमन तुमने मिल कर यह सलाह गाठी थी कि दात काटन के बदले में लाडिली का खूब मारेंगे। आखिर लडकपन का जमाना ही ता था कमलिनी-हा और यह यात हमारी मा का मालूम हो गई थी और उसन हम दाना का समझाया था। तारा की यह बात कुछ एसी थी कि इगन लडकपन जमाने की याद दिला दी और कमलिनी तथा लाडिली का तो इस बात में कुछ भी शक न रहा कि तारा वशक लक्ष्मीपथी है मगर बलभदसिह के विषय में जरूर कुछ शक हा गया और उनके विषय में दोनों न यह निश्चय कर लिया कि बलभदसिह भूतनाथ से मिल कर लौटें ता किसी बहाने से उनका गडा दखा जाय साथ ही यह भी निश्चय कर लिया कि इसके याद है कोई आदमी भूतनाथ के साथ जायऔरउस कैदी को भी देखें बल्कि जिस तरह बने उसे छुडा कर ले आवे। इतने ही में तालाब क बाहर से कुछ शोरगुल की आवाज आई। तजसिह ने पता लगान के लिय तारासिह को बाहर भजा और तारासिंह ने लोटकर खबर दी कि भूतनाथ और वलभद्रसिह में लड़ाई यल्कि यों कहना चाहिए कि जबर्दस्त कुश्ती हा रही है। यह सुनते ही कभलिनी लाडिली देवीसिह और तेजसिह बाहर चले गए और देखा कि वास्तव में वे दोनों लडरहे है ओर भैरोसिह अलग खडा तमाशा दख रहा है। भूतनाथ और बलभद्रसिह की लडाई तेजसिह पहिले ही देख चुके थे और उन्हें मालूम हो चुका था कि बलभदसिह भूतनाथ स बहुत जयदस्त है मगर इस समय जिस खूबी और बहादुरी के साथ भूतनाथ लड रहा था उसे देख कर तजसिह को ताज्जुब मालूम हुआ और उन्होंने तारा सिह की तरफ देखके कहा इस समय ता भूतनाथ वडी बहादुरी से लड रहा है। मैं समझता हू कि पहिले दफे जब हमने भूतनाथ को लडाई देखी थी ता उस समय डर और घबराहट ने भूतनाथ की हिम्मत तोड दी थी मगर इस समय क्रोध ने उसकी ताकत दूनी कर दी है लेकिन भैरो चुपचाप खडा तमाशा क्यों देख रहा है । देवी-जा हो पर इस समय उचित है किपास चलक इन लोगों को अलग कर देना चाहिय मगर अफसोस डोंगी एक ही हे जा इस समय उस पार गई हुई है। कमलिनी-सब कीजिये मैं दूसरी डॉगी ल आती है. यहाँ डोंगियों की कमी नहीं है। इतना कह कर कमलिनी चली गई और थोड़ी देर में मोटे और रागनी कपड़े की एक तोशक उठा लाई जिसमें हवा भरने क लिय एक कोन पर साने का पेंचदार मुह बना हुआ था और उसी के साथ एक छोटी भाथी भी थी। तेजसिह ने उसी नाथी स बात की बात में हवा भरक उस तयार किया और उस पर तजसिह और देवीसिह बैठ कर पार जा पहुंचे। तेजसिह और दयीसिह को यह दस कर बडा ही ताज्जुब हुआ कि दोनों आदिमियों का खजर और ऐयारी का बटुआ भैरोसिह के हाथ में है और वे दोनों बिना हर्ष के लड़ रहा है। तजसिहन बलभद्रसिह को और देवीसिह ने भूतनाथ को पकड देयकीनन्दन खत्री समग्र ५६४