पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५८

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मुश्किल से उसने अपने भाव को रोका और पूछा - मालती-भला तुम उसकी क्या मदद करोगी और कैसे यह किला फतह करा दोगी? कालिन्दी-मै खुद उसके पास जाऊँगी और अपने मतलब का वादा कराके समझा दूगी कि फलानी सुरग की राह से तुम इस किले में मय फौज के पहुच सकते हो क्योंकि मै खूब जानती है कि सनीचर के दिन उस सुरग का दर्वाजा बीरसेन के आने की उम्मीद में खुला रहेगा। अब मालती अपने गम और गुस्से को सम्हाल न सकी और भी सिकोड कर बोली- "तब तो तुम इस राज्य ही को गारत किया चाहती हो ! कालिन्दी-मेरी बला से राज्य रहे या जाय । मालती क्या महारानी पर तुम्हें रहम नहीं आता? महारानी भी तो एक गैर के लिये जान दे रही है !फिर मैं अपने दोस्त की मदद कलें तो क्या हर्ज है ? मालती-महारानी ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे किसी को दुख हो, लेकिन तुम्हारी करतूत से तो हजारों घर चौपट होंगे, सो भी एक ऐसे आदमी के लिये जिससे किसी तरह की उम्मीद नहीं । कालिन्दी-तुम्हें चाहे उम्मीद न हो पर मुझे तो बहुत कुछ उम्मीद है। मै सोचे हुए थी कि तुम मेरी मदद करोगी मगर हाय, तुम तो पूरी दुश्मन निकली। मालती-और तुम इस राज्य भर के लिये काल हो गई। कालिन्दी-क्या सचमुच तुम मेरा साथ न दोगी? मालती-कभी नहीं जब तुम्हारी युद्धि यहॉतक भ्रष्ट हो गई है तो साथ देना कैसा, मै इस भेद को खोल कर इस आफत से महारानी को बचाऊँगी? कालिन्दी-आह लड़कपन से तुम मेरे साथ रहती आई, जो जो मैने कहा तुमने माना, आज मुझे इस दशा में छोड अलग हुआ चाहती हो? क्या तुम कसम खाकर कहती हो कि मेरी मदद न करोगी? मालती-हॉ हाँ मै कसम खाकर कहती है कि तुम्हारी खातिर महारानी की जान पर आफत न लाऊगी, तुम मुझसे किसी तरह की उम्मीद मत रक्खो। मैं फिर भी कहे देती है कि इस काम में तुम्हें कभी खुशी न होगी, पीछे हाथ मल मल के पछताओगी और कुछ करते घरते न बन पड़ेगा। अफसोस, तुम दीवान सुमेरसिह की इज्जत मिटटी में मिला कर क्षत्री कुल की कलक बना चाहती हो, तुम्हारे तो मुह देखने का पाप है, सिवाय बेचारी मालती कुछ और कहा चाहती थी मगर मौका न मिला । बाधिन की तरह उछल कर कालिन्दी उसकी छाती पर चढ़ बैठी और कमर से खजर निकाल, जो शायद इसी काम के लिये पहिले से रख छोड़ा था. यह कह कर उसके, कलेजे के पार कर दिया कि-'देखें तुम मेरा भेद क्योंकर खोलती हो । हाय, बेचारी नेक महारानी की खैरखाह और नमकहलाल मालती ने दो ही चार दफा हाथ पॉव पटक हमेशे के लिये इस वदकार नमकहराम कालिन्दी का साथ छोड दिया और किसी दूसरी ही दुनिया में जा बसी। मगर उसी समय बाहर दालान के एक कोने से यह आवाज आई ऐकालिन्दी खूब याद रखियो कि तेरी यह शैतानी छिपी न रहेगी, जो कुछ तैने सोचा है कभी वह काम पूरा न होगा और बहुत जल्द तुझे इस बदकारी की सजा मिलेगी ! इस आवाज ने कालिन्दी की अजब हालत कर दी और वह एकदम धबरा कर चारो तरफ देखने लगी मगर थोड़ी ही देर में उसकी दशा बदली और यह खून से भरा खजर मालती के कलेजे से निकाल हाथ में ले कमरे से बाहर निकली और भूखी राक्षसी की तरह इधर उधर घूम घूम कर देखने लगी जिसमें उस आदमी का भी काम तमाम करे जिसने उसकी कार्रवाई देख सुन ली है, मगर उस ने मकान भर में किसी जानदार की सूरत न देखी। कई दफे ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर गई मगर कुछ पता न लगा तब खडी होकर सोचने लगी। इसी बीच में कई दफे उसकी सूरत ने पलटा खाया जिससे मालूम होता था वह डर और तरददृट में पड़ी हुई है, मगर यकायक वह ठमक पड़ी और तब चौक कर आप ही आप बोली 'ओफ मुझे डर किस बात का है ? अगर किसी ने मेरी कार्रवाई देख ही ली तो क्या हुआ? अब मुझे यहाँ रहना थोडे ही है। हॉ अब जल्दी करनी चाहिये, बहुत जल्दी करनी चाहिये। कालिन्दी तेजी के साथ एक दूसरी कोठरी में घुस गई जिसमें उसके पहिरने के कपड़े रहते थे और थोड़ी ही देर बाद मर्दानी पोशाक पहिरे हुए बाहर निकली नकाब की जगह रेशमी रूमाल मुँह पर बाँधे हुए थी जिसमें देखने के लिए आँख के सामने दो छेद किए हुए थे कमर में खजर खोंसे और हाथ में कमन्द लिए वह छत पर चढ़ गई और उसी के सहारे बेधडक पिछवाडे की तरफ उतर एक तरफ को रवाना हुई। यह मकान बैठक की तौर पर सजसजाकर कालिन्दी को रहने के लिए दिया गया था। इसके साथ ही सटा हुआ देवकीनन्दन खत्री समग्र