पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५८४

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इतना कह कर लक्ष्मीदेवी ने कमला को गल लगा लिया और उसके आसू पोछे क्योंकि इस समय उसकी ऑखों से वेअन्दाग आसू बह रहे थे। किशारी भी रो रही थी लक्ष्मीदेवी लाडिली और कमलिनी की आखे भी सूखी न थी । कमलिनीन सभों को समझाया और बातों का रग ढग बदल दने की कोशिश की। थोड़ी देर तक सनाटा रहने के याद सभों ने एक एक करके अपना हाल करना शुरू किया यहा तक कि आज की तीन पहर रात बातचीत मेशी बीत गई और इस पद 15 ईाटनान सभों को चौका दिया। सातवां बयान रात पहर भर स कम रह गई थी जय किशारी कामिनी फमला लक्ष्मीदपी लाडिली और कमाल की बातें पूरी हुई और उसने चाहा कि अब उट कर नीच चलें और दा घटे आराम करे।इस समय महल में बिल्कुल सन्नाटा था। लौनिया यफिटको साथसुर्राटे ले रही थी क्योंकि कमलिनी ने सभों को अपने सामन से विदा कर दिया था और कह दिया था कि बिना युनाये काई हम लोगों के पास न जाये। इस सभ ये सब जिल महल में है वह राजमहल के नाम से पुकारा जाता था। महाराज दिग्विजयसिह की रानी इसी में रहा करती थी। इसके बगल में पीछ की तरफ महल का यह दूसग भाग था जिसमें किशारी उन दिनों में रहती था जब शिविजय िपक्ष की जिन्दगी में नपर्दस्ती इस मकान के अन्दर गई गई थी और लाली तथा कुदा भी किशारी की हिफाजत के लिये उसी मकान में रहा करती थी पिसका हाल सन्तति तीसरे भाग के आठवें बयान मे लिय आय है। पाठक भूले न होंगे कि उसी महल या याग में जिसमे पहिले किशारी रहा करती थी) एक कोने पर वह इमारत थी जिसका दाज घर रहता 27 और जिग छन फोडकर किशोरी को साथ लिए ताली उसके अन्दर चली गई थी। यद्यपि माल का ह भाग अलग था मार राजमहल का धत पर से का मकान बखूबी दिखाई देता था। किशारी कमला लाडिली कामिनी गोदेवी और कालि गरी यात जब समाप्त हुई और ये सब नीच जाने के इरादे स उठ कर खडी हुई तो यकायका लाडिला की निगाह उर इमारत पर पड़ी जिसके अन्दर किशोरी को लेकर वह (लाली) चली गई थी। आज भी उस मकान का दाजी तर पर था और दिग्विजयसिह के समय में बन्द रहा करता था हा पहिले की तरह आज उस दवा पर पहरा नहीं पड़ता था उस मकान की छत जिसमें लालीन सेंध लगाई थी दुरुस्त कर दी गईथी। बाग में चारों तरफ सन्नाटा था क्योंकि आजकल उसमे काई रहतान था और यह बात कमलिनी और लाडिली इत्यादि का मालूम थी। निस रामालाडिली निगार उसनकान की छत पर पड़ी उसे एक आदमी दिखाई दिया जो बड़ी मुस्तैदी के नागेतरफ भूम धूम और दा देखकर शायद इस बात की टोह ले रहा था फ़ि कोई आदनी दिखाई तो नहीं देता मार किशारी और कामिनी इत्यादि से ठिकाने शी किय सब चारो तरफ सबका देखती मगर इन्हें कोई नहीं देख सकता पाक्योंकि जिस मकान की छत पर ये सर थी इतके चारो तरफ पुसे भर ऊधी कनाती दीवार थी और उसने यस्त से सूरायरन और तीर मारन के लायक बने हुए थे और इस समय लाडिती ने भी उस आदमी को ऐसे ही एक सूराय की राह से ही देखा था। लाडिली ने कमलिनी का हाथ पकड लिया और उस इमारत की तरफ देखने का इशारा किया। कमलिनी ने और इराक बाद एक एक करक सभों ने उस आदमी को देखा और अब वह क्या करेगी यह जानने के लिए सभी की निगाह उसी तरफ अटक गई। - देवकीनन्दन खत्री समग्र