पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५८५

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A बाड़ी देर बाद उस छत पर नीचे की तरफ से आती हुइ रोशनी दिखाई दी जिसस मालूम हुआ कि उसकी छत इस समय पुन ताडो गई है और नीच की कोठरी में और भी कई आदमी है। राशनी दिखाई दन क बाद दो आदमी और निकल आय और तीन आदमी उस छत पर दिखाई दने लगे। अब पूरी तरह निश्चय हा गया कि उस मकान की छत तोड़ी गई है। उन तीना आदमियों न बड गौर से उस तरफ देखा जहा किशोरी कामिनी इत्यादि खड़ी थी मगर कुछ दिखाई न दिया इसके बाद उन तीनों ने झुक कर छत के नीच से एक भारी गठरी निकाली। उसके बाद नीचे से दो आदमी और निकल कर छत पर आ गये तथा अब वहा पाच आदमी दिखाई देने लगे। कमलिनी ने कमल का हाथ पकड के कहा 'यहिन इन शैतानों की कार्रवाइ बेशक दखने और जाचने याम्य है ताज्जुन नहीं कि कोई अनूढा बात मालूम हो अस्तु तू जाकर जल्दी सतजसिह को इस मामल की खबर कर दे फिर जो कुछ उनको जो में आगमा करेंगे। इतना सुनल ही कमला तेजसिह की तरफ चली गई और व सब फिर उसी तरफ देखन्न लगी। थोडी दर तक व पाँचों आदमी बैट कर उस गठरी के साथ न मालूम क्या करते रहे इसके कमन्द के जरिय वह गठरी बाहर की तरफ याग में उतार दी गई। उसके पीछे व पाचों आदमी भी बाग में उत्तर आये और गठरी को लिए हुए बाग के बीचाचीच वाले उस कमरे की तरफ चल गए जिसमें पहिले किशारी रहा करती थी। उसीसमय कमला भी लोट कर आ पहुचा और याली तेजसिंहजी का राबर कर दी गई और वे देवीसिह वगैरह ऐयारों का साथ लकर किसी गुप्त वागम गए है। कमलिनी-मुझे भी वहा जाना उचित है। किशोरी क्यों? कमलिनी-उस मकान के गुप्त भद की खबर तेजसिंह को नहीं हे कदाचित कोई आवश्यकता पड़ । किशोरी-कोइ आवश्यकता न पड़गी यस चुपचाप खडी तमाशा दखो। लक्ष्मीदेवी-इनमें से अगर एक आदमी का भी तेजसिर पकड लैंग ता स्व भेद सुल जायग! । कमलिनी-झा सोता है। कमला-मैं समझती हूं कि उस मकान के अन्दर और नी कई आदमी होंगे। अगर व राव गिरफ्तार हा जालना बहुत ही अच्छा होना। कमलिनी-इसी स तो मैं करती हू कि मुझ यहा जान दा। मेरे पास तिलिस्मी खजर मौजूद है मै बहुत कुछ कर गुजरुगी। किशोरी-नहीं बहिन मै गहें कदापि न जाने दूरी मुझे डर लगता है तुम्हारे विना मै यहा नहीं रह सकती। कमलिनी-खैर में न जाऊगी तुम्हारे ही पास रहूगी । अब हम बाग के उस हिस्स का हाल लिखते है जिसमें वे पाचरे आदमी गहरो लिए दिखाई द चुके है । उपाचा आदमी पटरी लिए हुए चाग के बीचोबीच दाल उस मकान में पहुंच जिसमें पहिले किशारी रही की जय उस मकान के अन्दर पहुच गये तो उन लोगों न चकमक से आग झाड मशाल जलाई और गड गे चौधधाई जमीन पर छोड कर आपुस मे यो बातचीत करने लगे- एक-अच्छा अब क्या करना चाहिए? दूसरा-गठरी की इसी जगह छोड कर राजमहल में पहुचना और अपना काम करना चाहिये। तीसरा-नहीं नहीं पहिले इस गठरी को ऐसी जगह रखना या पहुंचाना चाहिये जिससे सवेरा होते ही किसी न किसी की निगाह इस पर अवश्य पड़े। चौथा-दाग के इस हिस्से में कोई रहता तो है नहीं फिर किसी की निगाह इस पर क्यों पड़ने लगी? पाचवा-अगर ऐसा है तो इसे भी अपने साथ ही गजमहल में ले चलना। पहिला-अजर आदमी हो राजमहल में अपना जाता तो कदिन हो रहा है तुम कहते हो गठरी भी लते चला दूसरा-फिर इस याग मे इस गटरी का रखना चेकार ही है जहा लोई आदनी रहता ही नहीं । चौथा-बस अब इमी हुज्जत में रात बिता दो अभी पहिले अपना असल काम तो कर ले जिसके लिये आये हैं। चलो पहिले तहखाना खालो। दूसरा-ठीक है मैं भी यही उचित समझता हूँ । इतना कहकर वह खड़ा हो गया और अपने साथियों को भी उठन का इशारा किया ! चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२ ५७७ ३७