पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५९८

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ayi मगर लक्ष्मीदेवी ने जिस समय उसे उजाले में देखा उसकी अजब हालत हो गई। वह सिर पकड कर जमीन पर बैठने के साथ ही बेहोश हाकर जमीन पर गिर पड़ी। लक्ष्मीदेवी के बेहोश होने से एक हलचल सी पड़ गई और कमलिनी तथा कमला इत्यादि उसे होश में लाने का उद्योग करने लगी। तेजसिह कलमदान उठा कर और यह कह कर कि लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठीक हो जाने के साथ ही बाहर खबर देना वीरेन्दसिह के पास चले आय और कलमदान सामने रख कर लक्ष्मीदेवी का हाल कहा। इस मामले से सभी का ताज्जुब और बढ़ गया और वीरेन्द्रसिह ने तेजसिह से कहा- वीरेन्द्र-इन भेदों को खोल कर आज अवश्य फैसला कर ही देना चाहिए। तेज-म भी यही चाहता हू। (जिन्न की तरफ देख के) मगर यह यात विना आपकी मदद के किसी तरह नहीं हा सकती । जिन्न-जब तक राजा वीरन्द्रसिह आज्ञा न देग मैं यहा से न जाऊगा क्योंकि मैं भी इस मामल को आंज खत्म कर दना आवश्यक समझता हू मगर तय तक सब कीजिए जब तक लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठिकाने न हो जाय और ये सब पर्दे के पास आकर बैठ न जाया हा वलभद्रसिंह को कहिए कि वह उठ कर अपन ठिकाने जाय और भाग जाने का ध्यान भूल कर चुपचाप बैठ। बलभद्रसिह की ताकत बिल्कुल निकल गई थी और वह सुस्त जहा का तहा बैठा रह गया था। तेजसिह ने उसे उठा कर अपने बगल में बैठा लिया और थोडी दर तक सन्नाटा रहा। आधी घडी के बाद खयर आई कि लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठीक हो गई और वे सब पर्दे के पास आकर बैठ गई है।

  • चारहवा भाग समाप्त *

देवकीनन्दन खत्री समग्र