पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०४

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भूत-जी नहीं। मीरेन्द्र-तुम अभी कह चुके हो कि यह पत्र मेरे हाथ का लिखा है और फिर कहते हो कि नहीं । भूत-जी में नहीं कहता कि यह कागज मेरे हाथ का लिया हुआ नही बल्कि में यह कहता हूं कि यह पत्र ईलासिह के पास मैने नहीं भेजा था। वीरेन्द्र-तब किसो भेजा था। भूत-(पलभद्रसिंह की तरफ इशारा कर का) इसरे भेजा था और इसी ने आपरा नाम भूतनाथ रक्खा था क्योंकि यह वास्तव में लक्ष्मीदवी का चाप लभद्रसिह रही है। वीरेन्द--अगर यह चीठी (बलभदसिह की तरफ इशारा करक) इन्होंने ऐलासिह के पास भजी थी ता फिर तुमने अपने हाथ से क्यों लिया? क्या तुम या नौकर या मुरिर थे ? भूत-जी नही. इसका कुछ दूसरा ही सरवर मगर इसक पटितं कि में आपकी बातों का पूरा पूरा जवाब हूँ बलभद्रसिंह से दो धार या पूछी आता चारता हूँ। वीरेन्द--क्या हर्ज है जो कुछ पूछना राहते है । भूत-(बलभद्रसिह की तरफ Tab) इस कागज के मको तुम शुरू से आखिर कि पर ही या नहीं। बलभद-हा पढ़ चुका हूँ। भूत-जी पीठी अभी पी गई। इसके आगपाली धाठियाँ अनी पढ़ी गई तुम्हार इस मुकदमे से कुछ सम्बर स्थती यलभद्र-नही। भूत-सो क्यों! बलभद्र-आगे की धीठियों का मतलब हमारी समझ में रही आता। भूत-ता अब आने वाली धीठियों को पढ़ने की कोई आवश्यकता न रही। चलभद-तरा कसूर साधित करने के लिए क्या इतनी चीठिया कम ईजा पढ़ी जा चुकी है ! भूत-बहुत है बहुत है अच्छा तो अब मै यह पूछता कि लक्ष्मीदेवी के शादी के दिशाम कैद कर लिया बलभद-हा। भूत-उस समय बालासिह कहाँ था और अब बालासित कहा है। भूतनाथ के इस सवाल नवलभद्रसिंह की अवस्था फिर बदल दी। यह और भी घयावासी होकर बोला इस सब बातों के पूछन से क्या फायदा निकलगा? कह कर उसने पासंगा और मायारानी की तरफ दया। मालूम होता था कि बालासिह के नाम ने मायारानी और दारोगा पर भी अपना असर किया जो मायारानी के बगल ही में एक खम्भे के साथ बघा हुआ था। धीरेन्द्रसिह और उनके युद्धिमान ऐयारो ने भा बलभद और दारोगा तथा मायारानी के चेहरे और उन तीनों की इस देया-देयी पर गौर किया और धीरेन्द्रसिह ने मुस्कुरा कर जिन्न की तरफ देखा। जिन्न- समझता हूँ कि इस बलभदसिह को साथ आपको देनुरोवती करतो होगी। वीरेन्द-वेशक मगर आप कह सकते है कि यह मुकद्दमा आज फैसला हो जायगा ? जिन्न-नहीं यह मुकदमा इस लायक नहीं है कि आज फैसला हो जाय। यदि आप इस मुकदमे की कलई अच्छी तरह खोला चाहते है तो इस समय इसे रोक दीजिये और भूतनाथ को छोड़ कर आज्ञा दीजिए कि महीने भर के अन्दर जहॉ से हो सके वहाँ से असली बलभदसिंह को योज लाये नहीं तो उसके लिए बेहतर न होगा। वीरेन्द्र-भूतनाथ को किसकी जमानत पर छोड दिया जाय। जिन्न-मेरी जमानत पर। वीरेन्द्र-जब आप ऐसा कहता है तो हमें कोई उजनहीं है यदि लक्ष्मीदेवी और लाडिली तथा कमलिनी इसे स्वीकार करें। जिन्न-उन सर्मों को भी कोई उज नहीं होना चाहिए। इतने में पर्दे के अन्दर से कमलिनी ने कहा हम लोगों को कोई उजन होगा हमार महाराज को अधिकार है जो चाह करें। धीरेन्द-(जिन्न की तरफ दखके ) तो फिर कोई चिन्ता नहीं हम आपकी बात मान सकते हैं। (भूतनाथ से )अच्छा देवकीनन्दन खत्री समग्र