पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३१

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- - लगाने में जो कुछ विलम्ब हो। (रुक कर) लो भैरो और देवीसिह भी आ गए ! (दोनों ऐयारों से) कहो क्या खवर है। देवी-दर्वाजे बन्द है। मैरो-किले के बाहर निकल जाने वाला दर्वाजा भी बन्द है। लेज-खैर कोई चिन्ता नहीं अब तो दुश्मन का आ जाना ही हमारे लिए बेहतर है। इन्द्रदेव-कहीं ऐसा न हो कि हम लोग तो दुश्मनों से लडने के फेर में रह जाय और दुश्मन लोग तीनों कैदियों को छुडा ले जाय अस्तु पहिले कैदियों का बन्दोवस्त करना चाहिए और इसस भी ज्यादे जरूरी (किशोरी कामिनी इत्यादि की तरफ इशारा करक) इन लडकियों की हिफाजत है। कमलिनी-मुझे छोड़कर और सभी की फिक्र कीजिए क्योंकि तिलिस्मी खजर अपने पास रख कर भी छिपे रहना मैं पसद नहीं करती मैं लडूंगी और अपने राजर की करामात देखूगी। धीरेन्द्र-नहीं नहीं हम लोगों क रहत हमारी लड़कियों को होराला करने की कोई जरूरत नहीं है। इन्द्रदेव-कोई हर्ज नही आप कमलिनी के लिए चिन्ता न करें मैयुशी से देखना चाहता हूँ कि वर्षो मेहनत करके मैंने जो कुछ विद्या इसे सिखाई है उससे यह कहा तक फायदा उठा सकती है खैर दखिये में सभी का बन्दोवस्त कर देता इतना कहकर इन्ददव ने ऐयारों की तरफ देखा और कहा, इन कैदियों की आँखो पर शोध पट्टी बाधिय। सुन्न के साथ ही बिना कुछ सयर पूछ भैरोसिह तारासिंह ओर देवीसिह जगले के अन्दर चले गये और बात की बात में तीनों कैदियों की आंखों पर पट्टियों बाँध दी। इसके बाद इन्द्रदेव ने छत की तरफ दया जहाँ लोहे की बहुत सी कडियों लटक रही थीं। उन कडियों में से एक कडी को इन्ददव ने उछल कर पकड़ लिया और लटकत ही हुए तीन चार झटके दिये जिससे वह कड़ी नीचे की तरफ खिच आई और इन्ददेव का पैर जमोन के साथ लग गया। वह कडी लोहे की एक जजीर के साथ बंधी हुई थी जो खैचने के साथ ही नोचे तक खिच आई और जजीर खिच जाने से एक कोटरी का दवाजा ऊपर की तरफ चढ़ गया जैसे पुल्का तख्ता जजीर बैचने से ऊपर की तरफ बढ़ जाता है। यह कोठरी उसी दालान में दीवार के साथ इस ढग से बनी हुई थी कि दर्वाजा बन्द रहने की हालत में इस बात का कुछ भी पता नहीं लग सकता था कि यहाँ पर कोठरी है। जा काठरी का दर्वाजा खुल गया तब इन्द्रदव ने कमलिनी को छोड के बाफी औरतों को उस काठरी के अदर कर दने के लिए तेजसिंह स कहा और तेजसिह ने ऐसा ही किया। जब सब औरतें कोठरी के अन्दर चली गई तब इन्द्रदेव ने हाथ स कडी छोड दी। तुरन्त ही उस कोठरी का दाजा बन्द हो गया और वह कड़ी छत के साथ इस तरह चिपक गई जैसे छत में कोई चीज लटकाने के लिए जडी हो। इसके बाद इन्द्रदेव ने तीनों कैदियों को भी वहा से निकाल ले जाकर किसी दूसरी जगह बन्द करन का इरादा क्यिा मगर ऐसा करने का समय न मिला क्योंकि उसी समय पुन 'सावधान सावधान ! की आवाज आई ओर कैदखान वाली कोठरी के बाहर बहुत से आदमियों के आ पहुचने की आहट मिली अतएव हमार बहादुर लोग कमलिनी के सहित शहर निकल आय । राजा वीरेन्दतिह और तेजसिह ने म्यान से तलवारे निकाल ली कमलिनी ने तिलिस्मी खजर सम्हाला ऐयारों ने कमन्द और खजर को दुरुस्त किया और इन्ददेव ने अपने बटुए में से छोटे-छोटे चार गेंद निकाले और लड़ने के लिए हर तरह से मुस्तैद होकर सभी के साथ कोठरी के बाहर निकल आया । राजा वीरेन्दसिह उनके ऐयारों और इन्द्रदेव का विश्वास हो गया था कि उस गुप्त मनुष्य ने जो कुछ कहा वह सब ठीक है और शिवदत्त माधवी और मनोरमा के साथ ही साथ दिग्विजयसिह का लड़का कल्याणसिह भी अपने मददगारों को लिए हुए इसी तहयान में दिखाई देगा इसलिए इन्द्रदव और एयार लोग इस बात की फिक्र में थे कि जिस तरह हो सके चारों ही को नहीं तो कल्याणसिंह और शिवदत्त को ता जरूर ही पकड लना चाहिए परन्तु वे लोग रेसा न कर सके क्यों कि कोठरी के बाहर निकलत ही जिन लोगों ने उन पर वार किया था व सबके सब अपने चेहरों पर नकाब डाल हुए थे और इसलिए उनमें से अपन मतलय के आदमियों को पहिचानना बड़ा कठिन था! इन्द्रदेव ने जल्दी साथ कमलिनी स कहा 'तू हम लोगों के पीछे इसी दर्वाज के बीच में खडी रह जब कोई तुझ पर हमला करे या इस कैदखाने के अन्दर जाने लगे तो अपने तिलिस्मी खजर से उसको रोकियो और कमलिनी न ऐसा ही किया। जन हमारे बहादर लोग कैदखाने वाली कोठरी से बाहर निकले तो देखा कि उन पर हमला करने वाला रैकड़ो नकाबपोश है में नगी तलवारें लिए आ पहुचे और मार-मार कहकर तलवारें चलाने लगता हमार बहादुर लागनी जो यद्यपि गिनती में उनस यहुत कम थे दुश्मनों के वारों का जवार दने और अपन वार करने लगे। हमार दानों एयारों में मशालें जमीन पर फेंक दी क्योकि दुश्मनों के साथ बहुत सी मशालें थी जिनकी राशनी से दुश्मनों के साथ ही साथ हमारे चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३ ६२३