पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३३

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h अस्तु आज कल के दुखों से तुम हताश मत हो जाओ और राजा वीरेन्द्रसिह तथा उनकी तरह सज्जन लोगों के साथ नकी करने स अपन दिल को मत रोको। तुम तो ऐयार हो और ऐयारों में भी नामी ऐयार फिर भी दो चार दुष्टों की अनोखी कार्रवाइयों से आ पड़ने वाली आफतों को न महकर उदास हा जाओ तो बड़े आश्चर्य की बात है। भूत-नहीं मेरे दोस्त मै हलाश हाने वाला आदमी नहीं हूँ मै तो केवल समय का हेर फेर देख कर अफसोस कर रहा हूँ। निःसन्देह मुझसे दो एक काम बुरे हो गये और उसका बदला भी मैं पा चुका हूँ मगर फिर भी मेरा दिल यह कहने से बाज नहीं आता कि तेरे माथे से कलक का टीका अभी तक साफ नहीं हुआ अतएव तू नेकी करताजा और भूलता जा । सर्दू-शाबाश मै केवल तुम्हीं को नहीं बल्कि तुम्हारे दिल को भी अच्छी तरह जानता हू और वे बाते भी मुझसे छिपी हुई नहीं है जिनका इलजाम तुम पर लगाया गया है। यद्यपि मैं एक ऐसे सर्दार का एयार हू किसी के नेक बद से सरोकार नहीं रखता और इस स्थान को देखने वाला कह सकता है कि वह दुनिया के पर्दे के बाहर रहता है मगर फिर भी मैं काम ज्यादे न होने के सबब से घूमता-फिरता और नामी ऐयारों की कार्रवाइयों को देखा-सुना करता है और यही सबब है कि मैं उन भेदों को भी कुछ जानता हूँ जिसका इल्जाम तुम पर लगाया गया है। भूल-(आश्चर्य से ) क्या तुम उन भेदों को जानते हो? स!-बखूबी तो नहीं मगर कुछ-कुछ। भूत-तो मेरे दोस्त तुम मेरी मदद क्यों नहीं करते? तुम मुझे इस आफत से क्यों नहीं छुड़ाते। आखिर हम तुम एक ही पाठशाला के पढे लिखे है क्या लडकपन की दोस्ती पर ध्यान देते तुम्हें शर्म आती है या क्या तुम इस लायक नहीं हो? स'-(हसकर ) नहीं नहीं एसा ख्याल न करो मैं तुम्हारी मदद जरूर करुंगा अभी तक तो तुम्हें किसी से मदद लेने की आवश्यकता भी नहीं पडी थी और जब आवश्यकता आ पड़ी है तो मदद करने के लिए हाजिर भी हो गया हूँ। भूत-( मुस्कुराकर ) तब तो मुझे खुश होना चाहिये मगर जब तक तुम्हारा मालिक रोहतासगढ से लौट कर न आ जाय तब तक हम लोग कुछ भी न कर सकेंगे। स' क्यों न कर सकेंगे। भूत-इसलिए कि तुम्हारा मालिक मुझे यहा कैद कर गया है। मै इसे कैद ही समझता हू जब कि यहाँ से बाहर निकलने की आमा नहीं है। स! यह कोई बात नहीं है अगर जरूरत आ पडे तो मै तुम्हें इस मकान के बाहर कर दूंगा चाहे बाहर होने का रास्ता अपने मालिक के नियमानुसार न बताऊ । भूत-( प्रसन्नता से हाथ उठाकर ) ईश्वर तू धन्य है। अब आशालता ने जिसमें सुन्दर और सुगन्धित फूल लगे हुए है. मुझे फिर घेर लिया। (स' से) अच्छा दोस्त तो अब बताओ कि मुझे क्या करना चाहिये ? सर्दू-सब के पहिले मनोरमा को अपने कब्जे में लाना चाहिए। भूत-(कुछ सोचकर) ठीक कहते हो मेरी भी एक दफे यही इच्छा हुई थी मगर क्या तुम इस बात को नहीं जानते कि शिवदत्त मनोरमा और सयू बात काटकर ) मै खूब जानता हूँ कि शिवदत्त माधवी औरमनोरमा को कमलिनी के कैदखाने से निकल भागने का मौका मिला और दे लोग माग गए। भूत-तब? सर्पू-मगर आज एक खबर ऐसी सुनने में आई है जो आश्चर्य और उत्कठा बढाने वाली है और हम लोगों को चुपचाप बैठे रहने की आज्ञा नहीं देती। भूत-वह क्या? सर्प-यही कि कम्बख्त मायारानी की मदद पाकर शिवदत्त माधवी और मनोरमा जो पहले से ही अमीर थे अपनी ताकत बहुत यढा ली और सबके पहले उन्होंने यह काम किया कि राजा दिग्विजयसिह के लडके कल्याणसिह को कैद से छुड़ा लिया जिसकी खबर राजा बीरेन्द्रसिंह को अभी तक नहीं हुई और यह भी तुम जानते ही हो कि रोहतासगढ के तहखाने का भेद कल्याणसिंह उतना ही जानता है जितना उसका बाप जानता था। भूत-वेशक-पेशक अच्छा तब? सर्प-अब उन लोगों ने यह सुनकर कि राजा बीरेन्द्रसिह तेजसिह इत्यादि ऐयार तथा किशोरी कामिनी कमलिनी कमला और लाहिती वगैरह सेभी रोहतासगढ़ में मौजूद है, गुप्त रीति से रोल्लासगढ़ बहुधगे का इरादा किया है। भूत-पेशक कल्याणसिह उन लोगों को तहखाने की गुप्त राह से किले के अन्दर ले जा सकता है और इसका नतीजा निसन्देह बहुत बुरा होगा। स' मै भी यही सोचता हूँ, तिस पर मजा यह है कि वे लोग अकेले नहीं है बल्कि हजार फौजी सिपाहियों को भी उन लोगों ने अपना साथी बनाया है। 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३ ६२५ ४०