पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३४

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layi भूत-और राहतासगढ के तहखाने में इससे दूने आदमी भी हो सो सहज ही में समा सकते हैं मगर मेरे दोस्त यह खबर तुमने कहा से और क्योंकर पाई? स!-मेरे चेलों ने जो प्राय बाहर धूमा करते हैं यह खपर मुझे सुनाई है। भूत-तो क्या यह मालूम नहीं हुआ कि शिवदत्त माधवी मनारमा और कल्याणसिह तथा उनके साथी किस राह से जा रहे है और कहा है? सा-हा यह भी मालूम हुआ है. वे लोग वरावर घाटी की राह से और जगल ही जगल जा रहे हैं। भूत-(कुछ देर तक गौर करके ) मौका ता अच्छा है। सयू-वेशक अच्छा है। सूर्य-चलो हम तुम दोनों मिलकर कुछ करें। भूत-मैं तैयार हू मगर इस बात को सोच लो कि ऐसा करने पर तुम्हारा मालिक रज तो न होगा । सर्दू-सर सोचा समझा है हमारा मालिक भी रोहतासगद ही गया हुआ है और वह भी राजा वीरेन्द्रसिह का पक्षपाती है। भूत-खैर तो अब विलन्द करना अपने अमूल्य समय को नष्ट करना है। (ऊची सास लेकर ) ईश्वर नकर शिवदत्त के हाथ कहीं फिशोरी लग जाय अगर एसा हुआ तो अबकी दफे वह अचारी कदापि न मचेगी। स! मै भी यही सोच रहा हू अच्छा तो अब तैयार हो जाओ मगर नियमानुसार तुम्हारी आँखों पर पट्टी याध कर बाहर ले जारुगा। भूत-कोई चिन्ता नहीं हा यह तो कहो कि मरे ऐयारी के बटुए में कइ मसाला को कभी हा गई क्या तुम उस पूरा कर सकत हो? स!- हा. जिन-जिन चीजर्जा की जरूरत हो ले लो यहा किसी बात की कमी नहीं है। तेरहवां बयान दोपहर दिन का समय है। गर्म-गर्म हवा के झपेटों से उड़ी हुइ जमीन की मिट्टी केरल आसमान ही को गदला नहीं कर रही है बल्कि पथिकों के शरीरों को भी आरा सा करती और आखों को इतना खुतने नहीं देती है जिसने रास्ते का अच्छी तरह देखकर तेजी के साथ चलें और किसी धन पेड़ के नीचे पहुंच कर अपने थके मादे शरीर को आराम दें। ऐसे ही समय में भूतनाथ सऍसिह और ससिह का एक यला आखों को मिट्टी और गर्द से बचाने के लिए अपने अपने चेहरों पर बारीक कपडा डाले रोहतासगढ़ की तरफ तजी के साथ कदम चढाय चल जा रहे है। हवा के झपेट आगे बढ़ने में रोक- टोफ करते हैं मगर तीनां अपनी धुन के परके इस तरह चले जा हर है कि बात तक नहीं करते हा उस सामने के घने जगल की तरफ उनका ध्यान अवश्य है जहाँ आधी घडी के अन्दर हीपहुचकरसफर की हरारत मिटा सकते है। उन तीनों ने अपनी चाल और भी तंज की और थोड़ी ही देर बाद उसो जगल में एक राधा पेड़ के नीचे बैठ कर थकावट मिटाते दिखाई देने लगे। स!-(रूमाल से मुँह पोंछ कर ) यद्यपि आज का सफर दुखदाई हुआ परन्तु हम लोग ठीक समय पर ठिकाने पहुँच गये। भूत-अगर दुश्मनों का डरा अभी तक इसी जगल में हो तो में भी ऐसा ही कहगा। स!-धेशका व लोग अभी तक इसी जगल में होगा क्योंकि मेरे शागिर्द ने उनके दो दिन तक यहा ठहरने की खबर दी थी और वह जासूसी का काम बहुत अच्छे ढंग से करता है। भूत-तब हम लोगों का कोई एसा ठिकाना टूढना चाहिये जहा पानी हो और अपना भे५ अच्छी तरह बदल सके। रा-जरा सा और आराम कर ले तब उठे। भूत-क्या हर्ज। थोड़ी देर तक ये तीनों उसी पेड़ के नीचे बैठे बातचीत करते रहे और इसके बाद उठ कर ऐसे ठिकाने पहुंचे जहा साफ जल का सुन्दर चश्मा कह रहा था। उसी चश्मे के पल से बदन साफ करने के बाद तीनों ने आपुस में कुछ सलाह करके अपनी सूरतें बदली और वहा से उठ कर दुश्मनों की टोह में देवकीनन्दन खत्री समग्र