पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दरवाजा है और इसी जगह से सुरग में घुसना होता है। दोनों आदमी सुरग के अन्दर रवाना हुए। यह सुरग इस लायक थी कि तीन आदमी एक साथ मिल कर जा सके। लगभग पचास कदम जाने के बाद फिर एक कोठरी मिली जो पहली कोठरियों की बनिस्बत ज्यादे लम्बी-चौड़ी थी। इसमें चामें तरफ कई खुली आलमारियों थी जो पचासों किस्म की चीजों से भरी हुई थी। किसी में तरह-तरह के हरबेथे किसी में एयारी का सामान किसी में रगबिरग के बनावटी दादी मूछ और नकाब इत्यादि ये और कई अलमारिया बोतलों और शीशियों से भरी हुई थीं। इनसामानों को देखकर नानक ने मनोरमा से कहा, "यह सब तो है मगर उसजवाहिरखाने का भी कहीं पता निशान है जिसका होना तुमने बयान किया था ! मनो-मैने आपसे झूठ नहीं कहा था, वह जवाहिरखाना भी इसी सुरग में मौजूद है । नानक-मगर कहा है। मनोरमा-इस सुरग में और थोड़ी दूर जाने के बाद इसी तरह का एक कमरा पुन मिलेगा उसी कमरे में आप उन सब चीजों को देखेंगे। इस सुरग में जमानिया पहुँचने तक इस तरह के ग्यारह अड्डे या कमरे मिलेंगे जिनमें करोड़ों रुपये की सम्पत्ति देखने में आवेगी । नानक-(लालच के साथ) जब कि तुम्हें यहा रास्ता मालूम है और ऐसी नादिर चीजें तुम्हारी जानी हुई है तो इन समों को उठा कर अपने घर में क्यों नहीं ले जाती !! मनो-मायारानी की बदौलत मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। रूपये. पैसे गहने, जवाहिरात और दौलत से मेरी तबीयत भरी हुई है इन सब चीजों की मैं कोई हकीकत नहीं समझती। नानक-वेशक ऐसा ही है। मनो-(योतल और शीशियों से भरी हुई एक अलमारी की तरफ इशारा करके देखो ये बोतले ऐशोआराम की जान खुशबूदार चीजों से भरी हुई हैं। इतना कह मनोरमा फुर्ती के साथ उस आलमारी के पास चली गई और एक योतल उठाकर उसका मुंह खोल और खूब सूघ कर बोली अहा सिवाय मायारानी के और तिलिस्म के राजा के ऐसी खुशबूदार चीजें और किसे मिल सकती इतना कहकर वह बोतल उसी जगह मुह बन्द करके रख दी और दूसरी बोतल उठा कर नानक के पास ले चली मगर वह बोतल उसके हाथ से छूट कर जमीन पर गिर पड़ी या शायद उसने जान-बूझकर ही गिरा दी। बोतल गिरने के साथ ही टूट गई और उसमें का खुशबूदार तेल चारों तरफ जमीन पर फैल गया। मनोरमा बहुत रज और अफसोस करने लगी और उसकी मुरीयत से नानक ने भी रज दिखाया। उस बोतल में जो तेल था वह बहुत ही खुशबूदार और इतना तेज था कि गिरने के साथ ही उसकी खुशबूतमाम कमरे में फैल गई और नानक उस खुशबू की तारीफ करने लगा। नि सन्दह मनोरमा ने नानक को पूरा उल्लू बनाया । पहिले जो बोतल खोल के मनोरमा ने सूची थी उसमें भी एक प्रकार की खुशबूदार चीज थी मगर उसमें यह असर था कि उसके सूघने बाद दो घण्टे तक किसी तरह की बेहोशी का असर सूघने वाले पर नहीं हो सकता था और जो दूसरी बोतल उसने हाथ से घिरा दी थी उसमें बहुत तेज बेहोशी का असर था जिसने नानक को तो चौपट ही कर दिया। वह उस खुशबू की तारीफ करता-करता ही जमीन पर लम्बा हो गया मगर मनोरमा पर उस दवा का कुछ भी असर न हुआ क्योंकि वह पहिले ही से एक दूसरी दवा सूधकर अपने दिमाग का वन्दोवस्त कर चुकी थी। नानक के हाथ से मनोरमा ने मोमबत्ती ले ली और एक किनारे जमीन पर जमा दी। जब नानक अच्छी तरह येहाश हो गया तो मनोरमा ने उसके हाथ से अगूठी उतार ली और फिर तिलिस्मी खजर के जाड की अगूठी उतार लेने के बाद तिलिस्मी खजर भी अपने कब्जे में कर लिया और और इसके बाद एक लम्बी सास लेकर कहा अब कोई हर्ज की बात नहीं है। थोड़ी देर कुछ सोचने विचारने बाद मनोरमा ने एक हाथ में मोमबत्ती ली और दूसरे हाथ से नानक का पैर पकड़ घसीटती हुई बाहर कोठरी में ले आई। उस काढरी का जिसमें से निकली थी दरवाजा चन्द कर दिया और साथ ही इसके एक तर्फीव ऐसी और भी कर दी कि नानक पुन उस दरवाज को खोल न सके । इन कामों से छुटटी पाने बाद मनोरमाने नानक की मुरके वाधी और हर तरह से बेकाबू करने याद लखलखा सुधा कर हाश में लाने का उद्योग करन लगी। थोडी हीदर याद नानक होश में आ गया और अपने को हर तरह से मजबूर और सामने हाथ ने उसी का जूता लिए मनारमा को मौजूद पाया । चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४