पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६६

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ह F - नानक-( आश्चर्य से ) यह क्या ! तुमने मुझ धोखा दिया | मना--(हस कर)जी नहीं यह ता दिल्लगी की जा रही है। क्या तुम नहीं जानते कि व्याह शादी में लोग दिल्लगी करते है ? मेरा कोई ऐसा रातेदार ता है नहीं जा तुमसे दिल्लगी करया व्याह की रस्म पूरी करे इसलिए मे स्वय ही इस रस्म को पूरा किया चाहती हूँ। इतना का कर मनोरमा तेजी के साथ व्याह की ररम पूरी करने लगी। जब नानक सिर की खुजलाहट से दुखी हा गया ता हाथ जोड़कर बोला, ' ईश्वर के लिए मुझ पर दया करा, मैं ऐसो शादी से याज आधा मुझस बड़ी भूल हुई। मनो-(संक कर ) नहीं घबड़ान की काई बात नहीं है। मैं तुम्हारे साथ किसी तरह की धुराई न करूगी बल्कि भलाई ककगी। में दखती हूँ कि तुम्हार हमजोली लोग सी दिल्लगी स तुम्ह बड़ा दुय देते हैं और तुम्हारी स्त्री भी यद्यपि तुम्हार ही गतेदारों और मित्रों का प्रसन्न करके गान कपड़ तथा सोगात स तुम्हारा घर भरती है मगर तुम्हारी नाक का कुछ भी मुलाहिजा नहीं करती अतएव तुम्हारी नाक पर रदन शामत आती ही रहती है, इसलिए मै दया करके तुम्हारी नाक ही का जड से उड़ा दना पसन्द करती हू जिसमें आइन्द के लिए तुम्ई काई कुछ कह न सके। हा इतना ही नहीं बल्कि तुम्हार साथ मे एक नेकी और भी किया चाहती हू जिसका व्यारा अभी कह देना उचित नहीं समझानी। नानक-क्षमा करो क्षमा करा, में हाथ जोड़कर कहता हूँ कि मुझ माफ कराईम कसम या कर कहता है कि आरो में अपने का तुम्हारा गुलाम समझूमा और जो कुछ तुम कहानी यही फकगा। मनो-(हस कर ) अच्छा ला आज स तू मेरा गुलाम हुआ नानक-यथक म आज से तुम्हारा गुलाम हुआ असली मत्र हाऊगा तो तुहार हुक्म से मुह न माडूगा । मनो-(हसती हुई) इसों में ता मुझका शक है कि तरी जात क्या है 'अस्तु काई चिन्ता नहीं में तुम धम पती ह कि दा नहीन तक अपने घर न जाइयो और बीच में अपने बाप या किसी दोसनातदार सभी न मिलिया इसके बाद ग इच्छा हो कीजिया में कुछ न बालूगी मगर मुझस और गर पक्षपारियों से दुश्मनी का इरादा कभी न कीजिया । नानक-एसा ही होगा। मनो-अगर मरी आम के विरुद्ध का काम करगा ता तुझ नान र मार डालूगी इस टूब याद रखियो । नानक-म सूप याद रखूगा और तुम्हारी आधा क विरुद्ध काई काम न करमा परन्तु कृपा करके भरा राजरता मुझ मनो-(क्राच स ) अब यह खजर तुझ नहीं मिल सकता खबरदार इसके माग या लो की इच्छा न कीजियो अच्छा अव में जाती है। इतना कह कर मनारमा न तिलिस्मी यजर नानक के बदन से लगा दिया और जब वह बटोश हो गया ता उसक हाथ पैर खोल दिये जलती हुई मामबत्ती एक काने में खड़ी कर दी और वहा स रपाना होकर खण्डर के बाहर निकल आई। घाड का अभी तक खण्डहर के पास चरत दया उसके पास चली गई अयाल पर हाथ फेरा दो चार दफे थपथपाया और फिर सवार होकर पश्चिम की तरफ रवाना हो गई। इधर नाइक भी थोड़ी दर वाद हारा में आया। मामवत्ती एक किनारे जल रही थी उसे उठा लिया और अपनी किस्मत को चिक्कार देता हुआ राण्डहर के थाहर होकर उरता और कापता हुआ एक तरफ को चला गया। दसवां बयान कुअर इद्रजीतसिह, आनन्दसिह और राजा गापालसिह यात कर ही रह थे कि वही औरत चमेली की टटटियों में फिर दियाई दी और इन्दजीतसिह ने चोक कर कहा देखिए वह फिर निकली । राजा वीरेन्द्रसिह ने चढ़ गौर से उस तरफ देखा और यह फहते हुए उस तरफ रवाना हुए कि आप दो भाई इसी जगह बैठे रहिये मैं इसकी ययर लेने जाता है । जब तक राजा गोपालसिह चमेली की टटटी के पास पहुंचे तब तक वह औरत पुन अन्तर्ध्यान हो गई। गोपालसिंह थोड़ी दर तफ उन्हीं पेड़ों में धूमते-फिरत रह इसके बाद इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिह के पान लौट आए । इन्दजीत कहिए क्या हुआ गापाल-हमा पहुँचन के पहिला वर गायब हो गई गायब क्या हो गई यस उसी दर्ज में चली गई जिसमें पथमन्दिर है। मरा इरादा सा हुआ कि उसका पीछा करु मगर यह सोधकर लौट आया कि उसका पीछा करके उस गिरफ्तार करना धण्टे दा घण्टे का काम नहीं बल्कि दा चार पहर यादा एक दिन का काम है क्योंकि देवमन्दिर वाले 2 देवीनन्दन खत्री समग्र