पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६७

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| दर्जे का बहुत बडा विस्तार है तथा छिप रहने योग्य स्थानों की भी वहा कमी नहीं है और मुझे इस समय इतनी फुसत नहीं। इसका खुलासा हाल तो इस समय आप लोगों सन कहूँगा हॉ इतना जरूर कहूगा कि जिस समय में अपनी तिलिस्मी किताब लेने गया था और उसके न मिलने से दुखी होकर लौटना चाहता था उसी समय एक और भी दुखदायी खबर सुनने में आई जिसक सवय स मुझे कुछ दिन के लिए जमानिया तथा आप दोनों भाइयों का साथ छोड़ना आवश्यक हा गया है और दोघण्टे के लिए मो यहाँ रहना मै पसन्द नहीं करता फिर भी कोई चिन्ता की बात नहीं है आप लोग शौक से इस तिलिस्म के जिस हिस्से को तोड़ सको तोडें मगर इस औरत का जो अभी दिखाई दी थी बहुत ध्यान रक्खें मेरा दिल यही कहता है कि मेरी तिलिस्मी किताब इसी औरत ने चुराई है क्योंकि यदि ऐसा न हो तो वह यहा तक कदापि नहीं पहुच सकती थी। इन्द-यदि ऐसा हो तो कह सकते है कि वह हम लोगों के साथ भी दगा किया चाहती है। गोपाल-नि सन्दह एसा है परन्तु यदि आप लोग उसकी तरफ से बेफिक्र न रहेंगे तो वह आप लामों का कुछ भी गाड न सकगी साथ ही इसकं यदि आप उद्योग में लगे रहेंगे तो वह किताव भी जो उसने चुराई है हाथ लग जायेगी। इन्द्र-जा कुछ आपन आज्ञा दी है मै उस पर विशेष ध्यान रक्खूगा मगर मालूम होता है कि आपने कोई बहुत दुखदाई ज्वर सुनी है क्योंकि यदि एसा न होतो इस अवस्था में अपनी तिलिस्मी किताबखो जाने की तरफ ध्यान न दे कर आप यहा मे जाने का इरादा न करते । आनन्द-और चब आप कही चुके है कि उसका खुलासा हाल न कहेंगे तो हम लोग पूछ भी नहीं सकते । गोपाल-नि सन्दह एग ही है मगर कोई चिन्ता नहीं आप लोग बुद्धिमान है और जैसा उचित समझें करे हा एक चात मुझे और भी कहनी है। इन्द्र-यह क्या ? गोपाल-(एक लपटा हुआ कागजलालटेन के सामने रखकर ) जब मैं उस औरत के पीछे चमेली की टट्टियों में गया तो वह औरत तो गायब हो गई मगर उसी जगह यह लपेटा हुआ कागज ठीक दर्वाजे के ऊपर ही पड़ा हुआ मुझे मिला पढ़ो ता सही इसमें क्या लिखा है। इन्दजीतसिह ने उस कागज को खोल कर पढ़ा यह लिखा हुआ था 'यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि न तो आप लोग मुझे जानते है और न मै आप लोगों को जानती हू, इसके अतिरिक्त जब तक मुझे इस बात का निश्चय न हो जाय कि आप लोग मेरे साथ किसी तरह की बुराई न करेंगे तब तक मैं आप लोगों को अपना परिचय भी नहीं दे सकती हॉ इतना अवश्य कह सकती हू कि मै बहुत दिनों से कैदियों की तरह इस तिलिस्म में पड़ी है। यदि आप लोग दयावान और सज्जन हैं तो मुझे इस वेद से अवश्य छुडावेंगे। -कोई दुखिनी। गोपाल-( आश्चर्य से ) यह तो एक दूसरी ही बात निकली ! इन्द-ठीक है मगर इसके लिखने पर हम लोग विश्वास ही क्यों कर सकते है? गोपाल-आप सच कहते हैं हम लोगों को इसके मिलने पर यकायक विश्वास न करना चाहिए। खैर मैं जाता हू आप जो उचित समझेंगे करेंगे। आइए इस समय हम लोग एक साथ बैठ के भोजन तो कर लें फिर क्या जाने कब और क्योंकर मुलाकात हो। इतना कहकर गोपालसिह ने वह चगेर जो अपने साथ लाए थे और जिसमें खाने की अच्छी अच्छो चीजें थी आगे रक्खीं और तीनों माई एक साथ भोजन और बीच बीच में बातचीत भी करने लगे। जब खाने से छुट्टी मिली तो तीनों भाइयों ने नहर में से जल पीया और मुह धोकर निश्चिन्त हुए इसके याद कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिंह को बहुत कुछ समझा बुझा और वहा से देवमन्दिर में जाने का रास्ता बताकर राजा गोपालसिह वहीं से रवाना हो गये। ग्यारहवां बयान राजा गापालसिह के चले जाने के बाद दोना कुमारों ने बातचीत करते-करते ही रात बिता दी और सुदह को दोनों भाई जरुरी कामों से छुट्टी पाकर फिर उस बाजे वाले कमरे की तरफ रवाना हुए। जिस राह से इस बाग में आये थे वह दरवाजा अभी तक खुला हुआ था उसी राह से होते हुए दोनों तिलिस्मी वार्ज के पास पहुंचे। इस समय आनन्दसिह अपने तिलिस्मी खजर से रोशनी कर रहे थे। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४