पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६७१

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दि आता यदि मैं उसे अच्छी तरह समझ सकती तो नि सन्देह यहाँ से बाहर जा सकती और आश्चर्य नहीं कि अपनी मां को छुडालती। गोपाल-वह किताब कौन सी है और कहा है? इन्दिरा-(कपड़े के अन्दर से एक छाटी सी किताब निकाल कर और गोपालसिह के हाथ में देकर ) लीजिए यही A यह किताब लम्बाई-चौडाई में बहुत छोटी थी और उसके अक्षर भी बड़े ही महीन थे मगर इसे देखते ही गापालसिह का चेहरा खुशी से दमक उठा और उन्होंने इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह की तरफ देखकर, यही मरी वह किताब है जो खा गई थी। (किताब चूमकर) आह इसके खो जाने से तो मैं अधमूआ सा हो गया था (इन्दिरा से) यह तरे हाथ कैसे लग गई। इन्दिरा-इसका हाल भी वडा विचित्र है अपना किस्सा जय में फहगी तो उसी के बीच में वह भी आ जायगा। इन्द्र-(गोपालसिह स) मालूम होता है कि इन्दिरा का किस्सा बहुत बड़ा है इसलिए आप पहिल रोहतासगढ़ का हाल सुना दीजिये तो एक तरफ से दिलजमयो हो जाय । कमलिनी के मकान की तबाही किशोरी,कामिनी और तारा की तकलीफ नकली बलभदसिह के कारण भूतनाथ की परशानी लक्ष्मीदेवी,दारोगा और शेरअलीखों का राहतासगढ में गिरफ्तार होना राजा वीरेन्द्रसिह का वहा पहुचना भूतनाथ के मुकदमे की पशी कृष्णाजिन्न का पहुचकर इन्दिरा वाले कलमदान का पेश करना और असली बलभदसिह का पता लगाने के लिए भूतनाथको छुट्टी दिला देना इत्यादि जो कुछ बातें हम ऊपर लिख आये है वह सब हाल राजा गोपालसिह ने इन्दिरा के सामने ही दोनों कुमारों से बयान किया आर सभी न बड़े पौर स सुना । इन्दिरा-बड़े आश्चर्य की बात है कि वह कलमदान जिस पर मेरा नाम लिखा हुआ था कृष्णाजिन्न के हाथ क्योंकर लगा | हॉ उस कलमदान का हमारे कब्जे से निकल जाना बुहत ही बुरा हुआ। यदि आज वह मेरे पास होता तो मैं यात की बात में भूतनाथ के मुकदम का फैसला करा देती मगर अब क्या हो सकता है । गोपाल-इस समय वह कलमदान राजा वीरेन्द्रसिह के कब्जे में है इसलिए उसका तुम्हारे हाथ लगना कोई बड़ी वात नहीं है। इन्दिरा-ठाक है मगर उन चीजों का मिलना तो अब कठिन हो गया जो उसके अन्दर थी और उन्हीं चीजों का मिलना सबसे ज्यादे जरुरी था। गोपाल-ताज्जुब नहीं कि वे चीजें भी कृष्णाजिन्न के पास हों और वह महाराज के कहने स तुम्हें दे दें। इन्द-या उन चीजों से स्वयम कृष्णाजिन्न वह काम निकालें जो तुम कर सकती हो ? इन्दिरा-नहीं उन चीजों का मतलब जितना मे बता सकती हू उतना कोई दूसरा नहीं बता सकता ! गोपाल-खेर जो कुछ होगा देखा जायगा। आनन्द-(गोपालसिह से ) यह सब हाल आपको कैसे मालूम हुआ? क्या आपन कोई आदमी रोहतासगढ़ भेजा था? या खुद पिताजी ने यह सव हाल कहला भेजा है? गोपाल-भूतनाथ स्वय मेरे पास मदद लेने के लिए आया था मगर मैने मदद देने से इनकार किया ? इन्द्र-(ताज्जुब से) ऐसा क्यों किया? 'गोपाल-(ऊची सास लेकर ) विधाता के हाथों से मै बहुत सताया गया है। सच तो यों है कि अभी तक मरे होशहवास ठिकान नहीं हुए इसलिए मैं कुछ मदद करन लायक नहीं है। इसके अतिरिक्त मै खुद अपनी तिलिस्मी किताव खा जाने के गम में पड़ा हुआ था मुझ किसी की बात कव अच्छी लगती थी। इन्द-(मुस्कुरा कर ) जी नहीं ऐसा करन का सबब कुछ दूसरा ही है मै कुछ कुछ समझ गया खैर देखा जायगा अब इन्दिरा का किस्सा सुनना चाहिए। गोपाल-(इन्दिरा से) अब तुम अपना हाल कहा यद्यपि तुम्हारा और तुम्हारी मां का हाल में बहुत कुछ जानता हू मगर इन दोनों भाइयों का उनकी कुछ भी खबर नहीं है बल्कि तुम दाता का भी नाम भी शायद इन्होंने न सुना होगा? इन्द-वशक एसा ही है। गोपाल-इसलिए तुम्हें चाहिए कि अपना और अपनी माँ का हाल शुरू से कह सुनाओ मै समझता हू कि तुम्हें अपनी मां का कुछ हाल मालूम झगा? इन्दिरा-जो हॉ में अपनी मां का हाल युट उसकी जुबानी आर कुछ इधर-उधर से की पूरी तरह सुन चुली है। गोपाल-अच्छा ता अय करना आरम्भ करो। ५ चन्द्रकान्ता मन्तति भाग १४