पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६७५

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B - तरफ से एक आदमी का आत दया आदमी भी अपन चेहरे का काय सहिगए हुए था। मरे पिता को देखत ही देचत वह उस चौमुहार पर कुछ रखकर पिछे की तरफ मुड गया। मेरे पिता ने पास जाकर देखा तो एक लिफाफे पर नजर पड़ी उस उठा लिया और घर लौट आये।शमादान के साम्नलिफाफा जाला उसका अन्दर एक चिट्ठी थी और उसमें यह लिखा था- दामोदरसिह के खूनी का जो पता लगाना चाहे उस अपनी तरफ स भी होशियार रहना चाहिए। ताज्जुब नहीं कि उसकी भी वही दशा हो जा दामादरसिह की इस पत्र को पढकर मेरे पिता सरददुद में पर गये और सवरा होन ता तरह-तरह की वा साचते विचारत रटे,उन्हें आशा थी कि सवेरा होने पर उनके एयार लग पर लौट आयेंगे और रात भर में जा कुछ उनान किया है उसका हाल कहेग क्योंकि एसा करन के लिए उन्होंने अपने ऐयारोमाताकीद कर दी थी मगर उनका विधा ठीक न निकला अर्थात उनके एयार लौट कर न आये दूसरा दिन भी बीत गया और तीसर दिन भी दा पहर रात जाते जाते तक मेरे पिता ने उन लोगों का इन्तजार किया मगर सब व्यर्थ था उन एयारों का हाल कुछ भी मालूम हुआ। आतिर लाधार होकर स्वय उनको खोज में जाने के लिए तैयार गय और घर से बाहर निकला ही चाहत थे कि कार दर्वाजा खुला और महाराज के एक चोबदार का साथ लिए हुए नाना साहब का एक सिपाही कमर व अदर दाखिल हुआ। पिता का बड़ा ताज्जुब हुआ और उन्होंने चोचदार से वहा आने का सबब पूछा चावदार न पावाब दिया कि आ को फुजर साहब ( गापालसिह ) ने शीय ही बुलाया है और अपने साथ लाने के लिए मुझ खत ताकीद की है। गोपाल-हाठीक है मैन उन्हें अपनी मदद के लिए नुलाया था क्योंकि मेरे और इन्द्रदय के बीच दास्ती और उस समय में दिली तकलीफों से बहुत धेचैन था। इददय से और मुझसे अब भी वैसी ही दोरती है वह मेरा सध्या दस्त है चाहे वो "हम दानों में पत्र व्यवहार न हो मगर दोस्नी किसी तरह की कमी नहीं आ सकती! इन्दिरा वेशक एसा ही है तो उस समय का हाल और उसके बाद भरे पिता से आर आगरा जो बातें हुई थी सा आप अच्छी तरह बयान कर सकतहै। गोपाल-नहीं नहीं जिस तरह तुम और हाल कह रही हा उसो सरह वह नी कह जा। मैं समझता हू कि इन्ददव ने यह सब हाल तुमसे कहा होगा ! इन्दिरा-जी हा इस घटना के काई वर्ष बाद पिरजी ने मुझसे सा हाल कहा था जो अभी तक मुझ अच्छी रह पाद ₹ मगर में उन बातों को मुख्सर ही में बयान करती हू गोपाल-क्या हर्ज है तुम मुस्तसर में बयान पर जाआ जहाँ लागी में बता दूगा यदि वा हाल मुदा भी मालूम होगा। इन्दिरा जो आज्ञा मरे पिता जव चोपदार के साथ राजमहल में गय तो मालूम हुआ कि कुअर साहय धरनहीं है कहीं बाहर गये है।आश्चर्य में आकर उन्होंन कुअर रगहा के पास खिदमतगार से दरियाप्त किया तो उनो जाल देया कि आपके पास चोचदार भेजने के बाद बहुत देर तक अकेले बैठकर आपका इन्तजार करते रहे मगर जब आपकं आ 'में दर हुई तो घबडा कर खुद आपक मकान की तरफ चले गए। यह सुनत ही मर पिता घबडा कर वहा स लौट और न ही घर पहुंचे मगर कुअर साहब स मुलाकात न हुई। दरियायत करने पर पहरेदार कहा कि कुअर साहब या हो sm है। भुन लोटकर राजमहल में गये परन्तु कुअर साहय का रता लग गया और 7 लगा। मरे पिता की रात परशानी में बीती और उस समय उन्हें नाना साहब की बार याद आई जानोन मेरे पिताजी से कहीं थी कि अब जमानिया में पड़ा भारी उपदव उठा चाहता है। तमाम रात बीत गई दूसरा दिन चला गया तीसरा दिन गुजर या गर कुअर साहब का पाना संको आदमी खाज में निकल तमाम शहर में कोलाहल मच गया। जिसे देखिए यह इही के विषय में तरह-तरह की बाते कहता और आश्चर्य करता था। उन दिरों मुअर साहब (मापालासह) की शादी लक्ष्मीदेवी सं लगी हुई थी और तिलिस्मो दारोगा सारच शादी के विरुद्ध बातें किया करते थे इस बात की चर्चा भी शहर में फैली हुई थी। चौथे दिन आधी रात के समय मेरे पिता नाना साहब वाले मकान में फाटक ऊपपलकमर के अन्दर पलम पर स्टे टुएअर साहब के विषय में कुछ सोच रहे थे कि यकायक कमर का दवाजा खुला और आप पालसिइ) कमक अन्दर आते हुए दिखाई पड़े। नुहब्बत और दास्ती में बडाई छुटाई का दर्जा कायर नही रहताकुसर साहब का दखत ही मरे पिता उठ खड़े हुए और दोडकर उनके गल से लिपट कर बोले क्यों साहब आप इतन दिनों शक महा थ? उस राभ्य कुअर साहब की आरा से आसू की चूदे टपटपा कार गिर रही थी यहर पर उदासी और तकतर की निसानी पाई जाल थी और उन तीन दिनों में ही उनके बदन की यह हालाहा गइ याठि महीनों को बीमार भागपडओ चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४