पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९४

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GY यद्यपि नानक का नौकर था परन्तु इस सबब से कि उसकी मॉ कुछ दिनों तक भूतनाथ की खिदमत में रह चुकी थी वह अपने का नौकर नहीं समझता था बल्कि घर का मालिक समझता था। नानक की स्त्री उसे बहुत चाहती थी यहा तक कि एक दिन उसन अपन मुह स उसे अपना दवर स्वीकार किया था इस सबब से वह और भी सिर चढ़ गया था। नानक के यहा एक मजदूरनी भी थी वह नानक के काम की चाह न हो मगर उसकी स्त्री के लिए उपयोगी पात्र थी और उसके द्वारा उन्क की स्त्री का बहुत काम निकलता था। तारासिह अपन दा चलों का साथ लिए राहतासगढ से रवाना होकर भेष बदले हुए तीसरे ही दिन नानक के घर पहुचा । ठीक दोपहर का समय था और नानक अपत किसी दोस्त के यहा गया हुआ था मगर उमका प्यारा खिदमतगार हनुमान दर्वाज पर बैठा अपन पडोसी साईसमें और कार्यवानों के साथ गप्पें लडा रहा था। तारासिह थोडी देर तक इधर उधर टहलता और टोह लेता रहा। जब उस मालूम हो गया कि हनुमान नानक का प्यारा नौकर है और उम्र में भी अपने म बड़ा नहीं है तो वहा से लौटा और कुछ दूर जाकर किसी सूनसान अधेरी गली में मकान किराए पर लेने का बन्दोबस्त फैरन लगा। सध्या होने के पहिले ही इस काम से भी निश्चिन्ती हो गई अर्थात उसने एक बहुत बड़ा मकान किराये पर ले लिया जा मुद्दत स खाली पड़ा हुआ था क्योंकि लाग उसमें भूत-प्रेतों का वास समझत थे और कोई उसमें रहना पसन्द नहीं करता था। उसमे जान के लिए तीन रास्ते थे और उसके अन्दर कई काठरिया एसीथी कि यदि उसमें किसी को बन्द कर दिया जाय ता हजार चिल्लान और ऊधम मचाने पर भी किसी बाहर वाल को खयर न हो। तारासिह ने उसी मकान म डेरा जमाया और बाजार जाकर दो ही घण्ट में व सब चीजें खरीद लाया जिनकी उसने जरूरत समझी और जो एक अमीराना ढग से रहने वाल आदमी क लिए आवश्यक थीं। इस काम से भी छुट्टी पाकर उसन मोमबत्ती जलाई और आईना तथा ऐयारी का बटुआ सामन रख कर अपनी सूरत बदलने का उद्योग करने लगा। शीघ्र ही एक खूबसूरत नौजवान अमीर की सूरत बना कर वह घर स बाहर निकला और मकान में एक चेले को छोडकर नानक के घर की तरफ रवाना हुआ। दूसरा चेला जो तारासिह के साथ था, उसे बहुत सी बातें समझा कर दूसरे काम के लिए भेजा। जब तारासिह नानक के मकान पर पहुचा तो उसने हनुमान को दर्वाजे पर बैठा पाया। इस समय हनुमान अकेला था और हुक्का पीने का बन्दोबस्त कर रहा था। उसके पास ही ताक (आला) पर एक चिराग जल रहा था जिसकी रोशनी चारो तरफ फैल रही थी। तारासिह हनुमान के पास जाकर खडा हा गया हनुमान ने बडे गौर से उसकी सूरत देखी और रोब में आकर हुक्का छोड के खडा हो गया। उस समय चिराग की रोशनी में तारासिह बडे शान शौकत का आदमी मालूम पड रहा था। खूबसूरती बनाने की तारासिह को जरुरत न थी क्योंकि वह स्वय खूबसूरत और नौजवाना आदमी था परन्तु रूप बदलने की नीयत से उसने अपने चेहरे पर रोगन जरूर लगाया था जिससे वह इस समय और भी खूबसूरत और शौकीन जच रहा था। - तारासिह को देखते ही हनुमान उठ खडा हुआ और हाथ जोड कर बोला 'हुक्म तारा-हमारे साथ एक नौकर था वह राह भूल कर न मालूम कहाँ चला गया उम्मीद थी कि वह हमको ढूँढने के बाद सीधा घर पर चला जायेगा मगर इस समय प्यास के मारे हमारा गला सूखा जा रहा है। हनुमान-(एक छोटी चौकी की तरफ इशारा करके ) सरकार इस चौकी पर बैठ जाय मैं अभी पानी लाता हूँ इतना सुन कर तारासिह चौकी पर बैठ गया और तारा पानी लाने के लिए अन्दर चला गया। थोड़ी देर में पानी का भरा हुआ एक लोटा और गिलास लिए तास बाहर आया और तारासिह को पीने के लिए पानी गिलास में दाल कर दिया उसी समय तारासिह ने दर्वाजे का पर्दा हिलते हुए दखा और यह भी मालूम किया कि कोई औरत भीतर से झांक रही है। पानी पीने के बाद तारासिह ने पाँच रुपये तारा के हाथ में दिये और वहाँ से उठकर दूसरी तरफ का रास्ता लिया। हनुमान केवल एक गिलास पानी पिलाने के बदले में पाँच रुपये पाकर बडा ही प्रसन्न हुआ और दाता की अमीरी पर आश्चर्य करने लगा। उसे विश्वास हो गया कि यह कोई बडा भारी अमीर आदमी या कोई राजकुमार है और साथ ही इसके,दिल का अमीर तथा जी खोल कर देने वाला भी है। दूसरे दिन सध्या के पहिले ही हनुमान ने तारासिह को अपने दर्वाज के सामने से आंते देखा और उसके साथ एक नौकर को भी देखा जो बडे शान के साथ कीमती कपडे पहिरे और तलवार लगाए तारासिह के पीछ-पीछे जा रहा था। हनुमान ने उठकर तारासिह को बड़े अदब के साथ सलाम किया। तारासिह ने अपने नौकर को जो वास्तव में उसका चेला था कुछ कहकर हनुमान के पास छोडा और आगे का रास्ता लिया। तारासिह के नौकर में और हनुमान में दो घण्टे तक खूब बातचीत हुई जिसे हम यहाँ लिखना नापसन्द करते है हो इस बातचीत का जो कुछ नतीजा निकला वह अवश्य दिखाया जायेगा क्योंकि नानक के घर की जाँच करने ही के लिए देवकीनन्दन खत्री समग्र ६८६