पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०२

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कमलिनी-तुम्हें जो तिलिस्मी खजर मैने दिया था वह तो मायारानी ने उस समय अपने कब्जे में कर लिया था जब जमानिया तिलिस्म के अन्दर जाने वाली सुरग में उसने तुम लोगों को बेहोश किया था। उसने राजा गोपालसिह का तिलिस्मी खजर लेकर नागर को दे दिया था। नागर वाला तिलिस्मी खजर ता भैरोसिह ने (इन्द्रदेव की तरफ इशारा कर) आपसे ल लिया था जो मेरी इच्छानुसार अब तक भैरोसिह के पास है परन्तु तुम्हारे पास तिलिस्मी खजर कहा से आ गया जिससे तुमने काम लिया और जो अब तक तुम्हारे पास है। भूतनाथ-आपको मालूम हुआ होगा कि मेरा खजर जो मायारानी ने ले लिया था उसे कृष्णाजिन्न ने रोहतासगढ़ किल के अन्दर उस समय मायारानी से छीन लिया था जब वह शेरअलीखा को लेकर वहा गई थी। कमलिनी-हा ठीक है तो क्या वही खजर कृष्णाजिन्न ने फिर तुम्हें दे दिया। भूतनाथ-जी हा (तिलिस्मी खजर और उसके जोड की अगूठी कमलिनी के आगे रखकर) अब यदि मर्जी हो तो ले लीजिये यह हाजिर है। कम-(कुछ सोच कर) वहीं अब यह खजर तुम अपने ही पास रक्खो, जब कृष्णाजिन्न ने जिन्हें राजा वीरेन्द्रसिह और तेजसिह मानते हैं तुम्हें दे दिया हो,अब बिना उनकी इच्छा के छीन लेना मै उचित नहीं समझती (ऊची सास लेकर) क्या कहा जाय तुम्हारे मामले में अक्ल कुछ भी काम नहीं करती। इन्द्रदेव-भूतनाथ तुम देखते हो कि नकली बलभदसिह को मैं अपने साथ लिये जाता हूँ, अगर तुम भी मेरे साथ चल के उससे बातचीत करते तो भूत-नहीं नहीं आप मुझे अपने साथ ले चल कर उसका मुकाबला न कराइये, उसका सामना होने से ही मेरी जान सूख जाती है । यह तो मैं जानता ही हूँ कि एक न एक दिन मेरा और उसका सामना धूमधाम के साथ हागा और जो कुछ कसूर मैने किया है या उसका विगाडा है खुले बिना न रहेगा परन्तु अभी आप क्षमा करें थोड दिनों में मैं अपने बचाव का सामान इकट्ठा कर लूगा और तब तक बलभद्रसिह का भी पता लग जायेगा उनसे भी सहायता मिलने की मुझ आशा है हा यदि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार न करें तो लाचार में साथ चलने के लिए हाजिर हूँ। इन्ददेव-(कुछ सोच कर ) खैर चिन्ता नहीं तुम जाओ बलभद्रसिह की खोज निकालने का उद्योग करो और इन्दिरा का भी पता लगाओ। अब मुझसे कब मिलोगे? भूत--आठ-दस दिन के बाद आपसे मिलूगा फिर जैसा मोका हो। कम-अच्छा जाओ मगर जो कुछ करना है उसे दिल लगा के करो। भूत-मै कसम खाकर कहता हूँ कि बलभद्रसिह को खोज निकालने की फिक्र सबसे ज्यादे दुनिया में जिस आदमी को है वह मैं हूँ। इतना कह कर भूतनाथ उठ खड़ा हुआ और अपने अडडे की तरफ रवाना हो गया। तीसरे दिन अपने अडडे पर पहुँचा जो बराबर की पहाड़ी पर था। वहा उसने अपने आदमी दाऊ यावा की जुबानी नानक का हाल सुना और क्रोध में भरा हुआ केवल दो घण्टे वहा रहने के बाद पहाडी के नीचे उतरकर उस जगल की तरफ रवाना हो गया जहा पहिले-पहल श्यामसुन्दरसिह और भगवनिया के सामने नकली बलभद्रसिह से उसकी मुलाकात हुई थी। नौवां बयान लक्ष्मीदेवी कमलिनी लाडिली और नकली बलभद्रसिह को लिए हुए इन्द्रदेव अपने गुप्त स्थान में पहुंच गये। दोपहर का समय है। एक सजे हुए कमरे के अन्दर ऊची गद्दी के ऊपर इन्द्रदेव बैठे हुए है पास ही में एक दूसरी गद्दी बिछी हुई है जिस पर लक्ष्मीदेवी,कमलिनी और लाडिली बैठी हुई है उनके सामने हथकडी बेडी और रस्सियों से जकडा हुआ नकली बलभद्रसिह बैठा है और उसके पीछे हाथ में नगी तलवार लिए इन्द्रदेव का ऐयार सऍसिह खडा है। नकली बलभद्र-(इन्द्रदेव से) जिस समय मुझसे और भूतनाथ से मुलाकात हुई थी उस समय भूतनाथ की क्या दशा हुई सो स्वयम् तेजसिह देख चुके हैं। अगर भूतनाथ सच्या होता तो मुझसे क्यों डरता। मगर बडे अफसोस की बात है कि राजा बीरेन्द्रसिह ने कृष्णाजिन्न के कहने से भूतनाथ को छोड़ दिया और जिस सन्दूकडी को मैंने पेश किया था उसे न खोला वह खुलती तो भूतनाथ का बाकी भेद छिपा न रहता। इन्द्रदेव-जो हो मै राजा साहब की बातों में दखल नहीं दे सकता मगर इतना कह सकता हूँ कि भूतनाथ ने चाहे तुम्हारे साथ हद से ज्यादे बुराई की हो मगर लक्ष्मीदेवी के साथ कोई बुराई नहीं की थी, इसके अतिरिक्त छोड दिये जाने देवकीनन्दन खत्री समग्र