पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०३

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पर भी भूतनाथ भागने का उद्योग नहीं करता और समय पड़ने पर हम लोगों का साथ देता है। नकली बलभद्र--अगर भूतनाथ आप लोगों का काम न करे तो आप लोग उस पर दया न करंगे,यही समझ कर वह इन्द्रदेव-(चिढ कर) ये सब वाहियात बातें हैं मैं तुमस बकवास करना पसन्द नहीं करता तुम यह यताओ कि तुम जेपाल हो या नहीं। नकली चलभद-मैं वास्तव में बलभदसिह हूँ। इन्द्र--(क्राध क साथ) अब भी तू झूठ बोलने से बाज नहीं आता मालूम होता है कि तेरी मौत आ चुकी है अच्छा देख मै तुझ किस दुर्दशा के साथ मारता हूँ (सयूसिह से) तुम पहिले इसकी दाहिनी आख उग्रली डाल कर निकाल लो। नकली बलभद्र-(लक्ष्मीदेवी से ) देखो तुम्हार बाप की क्या दुर्दशा हो रही है ! लक्ष्मी-मुझ अब अच्छी तरह से निश्चय हो गया कि नूहमारा बाप नहीं है। आज जब मै पुरानी बातों को याद करती हूँ तो तेरी और दारोगा की बेईमानी साफ मालूम हो जाती है। सबसे पहिले जिस दिन तू कैदखाने में मुझसे मिला था उसी दिन मुझे तुझ पर शक हुआ था मगर तेरी इस बात पर कि जहरीली दवा के कारण मेरा बदन खराब हो गया है में धोखे में आ गई थी। नकली बलभद-और यह माढे वाला निशान? लक्ष्मी-यह भी बनावटी है अच्छा अगर तू मेरा बाप है तो मेरी एक बात का जवाब दे नकली वलभद्र-पूछो। लक्ष्मी-जिन दिनों मेरी शादी होने वाली थी और जमानिया जाने के लिये में पालकी पर सवार होने लगी थी तब मेरी क्या दुर्दशा हुई थी और में किस ढग से पालकी पर बैठाई गई थी? नकली बलमद्र-कुछ सोच कर ) अब इतनी पुरानी बात तो मुझे याद नहीं है मगर मैं सच कहता हूँ कि में ही बलभद्र इन्द्रदेव-( क्रोध से सऍसिह से ) बस अब विलम्ब करने की आवश्यकता नहीं। इतना सुनते ही सर्वृसिह ने धक्का दकर नकली बलभद्र को गिरा दिया और औजार डाल कर उसकी दाहिनी आख निकाल ली । नकली बलभद्रसिह जिसे अब हम जैपाल के ही नाम से लिखेंगे दर्द से तडपने लगा और बोला,' अफसोस मेरे हाथ पैर बधे हुए हैं अगर खुल हाते तो इस बेदर्दी का मजा चखा देता। इन्ददेव-अभी अफसोस क्या करता हे थोडी देर में तेरी दूसरी आख भी निकाली जायगी और उसके बाद तेरा एक-एक अग काट कर अलग किया जायगा !(स'सिह से) हा सऍसिह अब इसकी दूसरी आख भी निकाल लो और इसके बाद दानों पैर काट डालो। जैपाल--(चिल्ला कर ) नहीं नहीं जरा ठहरो, मैं तुम्हें बलभद्रसिह का सच्चा हाल बताता हूँ। इन्द्रदेव-अच्छा बताओ। जैपाल-पहिले मेरी आख में कोई दवा लगाओ जिसमें दर्द कम हो जाय तब मैं तुमसे सब हाल कहूँगा। इन्द्रदेव--ऐसा नहीं हो सकता बताना हो तो जल्द बता नहीं लेरी दूसरी आख भी निकाल ली जायगी। जैपाल-अच्छा मैं अभी बताता हूँ। दारोगा ने उसे अपने वगले में कैद कर रक्खा था मगर अफसोस मायारानी ने उस वगले को बारुद के जोर से उड़ा दिया उम्मीद है कि उसी में उस बेचारे की हड्डी पसली भी उड गई होगी। इन्द्रदेव-( सर्पूसिह से) सऍसिह, यह हरामजादा अपनी यदमाशी से बाज न आवेगा अस्तु तुम एक काम करो इसकी जो आख तुमने निकाली है उसके गड़हे में पिसी हुई लाल मिर्च भर दो । इतना सुनते ही जैपाल चिल्ला उठा और हाथ जोड कर बोला- जेपालमाफ करो माफ करो अब मै झूठ न बोलूगा मुझे जरा दम ले लेने दो जो कुछ हाल है मैं सरसच कह दूंगा इस तरह तडप तडप कर जान देना मुझे मजूर नहीं। मुझे क्या पडी है जो दारोगा का पक्ष करके इस तरह अपनी जान दूं, कभी नहीं अब में कदापि तुमसे झूठ न बोलूगा। इन्ददेव-अच्छा अच्छा दम ल ल काई चिन्ता नहीं जब तू पलभद्रसिह का हाल बतान को तेयार ही है तो मै तुझ क्यों सताने लगा। जैपाल-(कुछ ठहर कर ) इसमें काई शक नहीं कि बलभद्रसिह अभीतक जीता है और इन्दिरा तथा इन्दिरा की मा चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५