पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१२

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ay1 पाठक इस तिलिस्मी खण्डहर की अवस्था आज दिन बेसी नहीं है जैसी आपने पहिले दयी जय राजा वीरेन्द्रसिंह ने इस तिलिसा का ताडा था। आज इसके चारो तरफ राजा वीरेन्द्रसिह की आज्ञानुसार बहुत बड़ी इमारत बन गई है ओर अभी तक बन रही है। इस इमारत को जीतसिह ने अपने ढग का मनवाया था। इसमें बदडे तहखाने सुरग और गुप्त काठरिया, जिनके दर्याजों का पता लगाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव था बनकर तैयार हुई हैं,ओर अच्छे-30 कमरे सहन बालाखाने *इत्यादि जीतसिह की बुद्धिमानी का नमूना दिखा रह है। याच में एक बहुत बडारमना छूटा हुआ है जिसके धीचाबीच में तो वह खण्डहर हे आर उसक चारो तरफ बाग लग रहा है। खण्डहर की टूटी हुई इमारत की भी मर गई हो सुबाई भार अब वह खण्डहर नहीं मालूम होता। भीतर की इमारत का काम बिल्कुल यतम का चुका है, कचरा यह हिन्से में कुछ काम लगा हुआ हे सो भी दस पन्द्रह दिन से ज्याद का काम नहीं है। जिस समय बलभद्रसिद्ध को लिए नाथ वहा पहुचा उस समय जीतसिह भी वहाँ मौजूद और पन्नालाल रामनारायण और बद्रीनाथ को साथ लिए हुए फाटक के बाहर टहल रहे थे। पयालाल,रामनारायण और पण्डित बद्रीनाथ तो भूतनाथ को बखूबी पहिचानते थ हा जीतसिह ने शायद उसे नहीं दखा था मगर तेजसिह ने भूतनाथ की तत्त्वीर अपन हाथ स तैयार करवा तसा और पुरेन्द्रसिह के पास भेजी थी और उसकी विचित्र घटना का समाचार भी लिखा था। भूतनाथ को दूर से आत हुए देख कर पगलाल ने जीतसिह स कहा “देखिये, भूतनाय गडा आ रहा है। जीतसिह-(गौर स भूतनाथ को देख कर ) मगर यह दूसरा आदमी उसके साथ कौन है? पन्ना-मै इस दूसर का ता नही पहिचानता । जीत-(वीन्गथ से ) तुभ पहिचानते हो? इतने में भूतनाथ और वलभदासह भी वहा पहुच गये। भूतनाथ न घोडे पर स उतरकर जीतसिह का सलाम किश क्योंकि वह जीतसिंह का बखूबी पहिचानता था, इसके बाद धीरे से बलभद्रसिह को भी घार्ड में नीचे उतारा और जीतसिह की तरफ इशारा करके कहा, यह तेजसिह के पिता जीतसिंह है और दूसर ऐयारों का भी नाम बताया। बल नद्रसिह का भी परिचय सभों का देकर भूतनाथ ने जीतसिंह से कहा यहोबलभदसिह है जिसका पता लगान का याझ मुझ पर डाला गया था। ईश्वर ने मरी इज्जत रख ली और मेरे हाधो इन्हें कैद से छुडाया ! आप ताव हाल सुन ही चुके होंग? जीत-हा मुझे साल भालूम है तुम्हार मुकदमे ने ता हम लागों का दिल अपनी तरफ ऐसा खीच लिया है पि दिन- रात उसी का ध्यान रहता है मगर तुम यकायक इस तरफ कस आ निकज आरइ कहाँ पाया ? भूत-म इ ई काशीपुरी से छुड़ा कर लिय आ रहा है. दुश्मनों के खौफस दक्निदता हुआ वरकर दकर आना "डा इसी से अब यहाँ पहुचने की नास्त आह नहीं तो अबतक कर का युनार पहुच गया हाता। राजा बीरन्द्रसिंह की सवारी चुनार की तरफ रवाना हो गई थी इसलिए में भी इन्हें लपी चुनार हो आया , जीत-बहुत अच्छा किया कि यहाँ चाय काल राजा रिमिट भी यहा पहुच जाया और उनका डेरा नी इसी मकान में पडेगा। किशोरी कागिनी और कमला वाला दश-विदारक समाचार तो नन तुना ही होगा ? भूतनाथ-( चौफ र दया क्या ? मुझे कुछ भी नहीं 1 जीत-कुरु सोचकर अच्छा आप लोगजरा आरान कर लीलिये तो स-हाल करेंगे क्योंकि बलभद्रसिंह टली मुसीवत सटाने के कारण बाल सुस्त और कमजोर हो रहे हैं। हालाल की तरफ दसकर) पूरब पाल नम्बर दो के कमर में इन लोगों को डेरा दिलदाओ और हर तरह के आराम का पदावन्त करो, इनकी खातिरदारी और हिफाजत तुम्हारे ऊपर है। पना-पले आज्ञा। हमारे ऐयारों को इस बात को उत्कण्टा बहुत ही चढी-बडी न किसी तरह भूतनाथ को मुक्दों का फैसला हो और उसकी पवित्र घटना का हाल जानने में आये क्योंकि इस उपन्यास पर ने जैसा नाय का अद्भुत रहस्य है वैसा और किसी पात्र का नहीं है। यही कारण था कि उनको इस बात की बहुत बड़ी खुशी हुई कि मूतनगध असली बलगद्रासह को मुद्धा कर ले आया और कल राजा वीरेन्द्ररिह के गां आ पहुंचन इसका विचित्र हाल भी मालूम हा जायेगा।

  • पन्द्रहवार समाप्त

"अट्टालिका। देवकीनन्दन खत्री समग्र ७०४