पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७२

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ory लडते ही लड़तेरनवीरसिहने यह भी देख लिया कि कई दुश्मन उस तरफ जा पहुचे है जिधर घेचारी कुसुमकुमारी खड़ी रनबीरसिह की बहादुरी देख रही थी। दुश्मनों पर फतह पाये हुए रनवीरसिह इसलिये वहाँ गये जिसमें वेचारी कुसुम को किसी तरह की तकलीफ न पहुचने पावे मगर रनवीरसिह को कुसुमकुमारी न मिली और ये घबडा कर चारी तरफ ढूँढने लगे। तस्वीर वाले कमरे के दर्वाजे पर कुसुमकुमारी की ओढनी मिली जिसे इन्होंने उठा लिया. हाथ में लेते ही मालूम हो गया कि यह खून से तर है। रनवीरसिह समझ गए कि दुश्मनों के हाथ से बेचारी कुसुम भी जख्मी हुई। थोडी ही देर में लोगों के यह कहने से कि तमाम महल में ढूँढ डाला मगर महारानी का पता न लगा रनवीरसिह को विश्वास हो गया कि वह दुश्मनों के कब्जे में आ गई। इस गम में उनका दिमाग चक्कर खाने लगा और वे बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़े। . वीरसेन ने बेहोश रनवीरसिह को उसी तरह छोड दिया चारो तरफ कुसुम की खोज में दौडती बदहोस और रोती हुई लोडियों की तरफ कुछ भी ध्यान न दिया, और तुरन्त महल से बाहर निकल एक तरफ को रवाना हो गए। बीसवां बयान यह छोटा सा शहर जो महारानी कुसुमकुमारी के कब्जे में था, एक मजबूत चारदीवारी के अन्दर बसा हुआ था! इसके बाहर खाई के बाद तीन तरफ गाँव था जिसकी आवादी घनी तो थी मगर सभी मकान कच्चे तथा फूस और खपडे की छावनी के थे जिनमें छोटे जमींदार और खेती के ऊपर निर्भर रह कर समय बिताने वाले गरीब लोग रहा करते थे। चौथी तरफ जिधर शहर का दर्वाजा था विल्कुल मैदान था। किले से बाहर निकलते ही चौडी सड़क मिलती थी जिसके दोनों तरफ आम के पेड लगे हुए थे और इधर ही से एक छोटी सड़क घूमती हुई वरावर उस गाँव तक चली गई थी जिसका हाल अभी ऊपर लिख चुके है। इसी छाटी सी सड़क पर जो गाँव में चली गई है. एक आदमी कम्बल ओढे बड़ी तेजी के साथ कदम बढाये चला जा रहा है। रात आधी से ज्यादे जा चुकी है. गॉव में चारो तरफ सन्नाटा है, आकाश में चन्द्रमा के दर्शन तो नहीं होते मगर मालूम होता है कि चन्द्रमा ने अपनी रोशनी चमक या कला जा कुछ भी कहिय इन छोटे छाटे गरीव मुहताज तारों को बॉट दी है जिससे खुश हो ये बड़ी तेजी के साथ चमक रहे हैं और इस बात को विल्कुल भूले हुए है कि यह चमक दमक बहुत जल्द ही जाती रहेगी और कलयुगी राजों की तरह चन्द्रमा भी धीरे धीरे पहुच कर अपनी दी हुई चमक के साथ ही उनकी पहिली आय भी जो प्रकृति ने उन्हें दे रक्खी हे लेकर सूर्य का मुकाबला करने को तैयार हो जायगा अर्थात् कहेगा कि आज मैं भी इस रात को दिन की तरह बना कर छोडूंगा। यह स्याह कम्बल ओढ हुए जाने वाला आदमी गाँव में झोपड़ियों की गिरती हुई परछाई के तले अपने को हर तरह से छिपाता हुआ जा रहा है जिससे मालूम होता है कि इसे इससे भी ज्यादे अधेरी रात की जरूरत है। कभी कभी यह अटक कर कान लगा कुछ सुनने की कोशिश करता और पीछ फिर कर देखता है कि कोई आ तो नहीं रहा है। धीरे धीरे वह एक ऐसी झोपड़ी के पास पहुचा जिसके पीछे की तरफ छप्पर से जमीन को एक कर देने वाली लता बहुत ही घनी फैली हुई थी। वह उसी जगह जा कर खड़ा हो गया और पत्तों की आड़ में छिप कर चारो तरफ देखने लगा, जब कोई नजर न आया तो उसने धीरे धीरे दो चार दफे चुटकी बजाई। थोडी देर बाद उस झोपड़ी से एक औरत निकल कर उस तरफ आई जिधर वह खडा था। उस औरत को देखते ही वह पत्तों की आड से बाहर निकला और दोनों ने मैदान का रास्ता लिया। ये दोनों जब तक गाँव की हद्द से दूर न निकल गए बिल्कुल चुप थे, बहुत दूर निकलजाने के बाद यों बातचीत होने लगी औरत-मैं बहुत देर से तुम्हारी राह देख रही थी जैसे जैसे देर होती थी कलेजा धक धक करता था। मर्द-तुम्हारे लिये मैंने अपनी जान आफत में डाल दी अब देखें तुम मेरे साथ किस तरह निवाह करती हो । औरत-मेरी बात में कभी फर्क न पडेगा, पहले भी कई दर्फ कह चुकी है और फिर कहती है कि मै तुम्हारी हो चुकी जिस तरह रक्खोगे रहूगी मेरी मुराद तुमने पूरी की. अब में किसी तरह तुम्हारे हुक्म से याहर नहीं हो सकती। मर्द-अभी मैं कैसे कहू कि तुम्हारी मुराद पूरी हो गई। औरत-(चौंक कर) क्या कुसुमकुमारी हाथ नहीं लगी। मर्द-कुसुम तो हाथ लग गई मगर मेरे कई साथी मारे गए और अभी न मालूम क्या क्या होगा ! औरत-अगर कुसुम किले के बाहर हो गई तो अब हम लोगों को भी कुछ डर नहीं है। देवकीनन्दन खत्री समग्र १०८०