पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७२०

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LE - इन्दिरा-आपके कोषाध्यक्ष (खजानची) गोपाल-क्या उसने भी तुम्हारे साथ दगा की ? इन्दिरा-सो मैं ठीक नहीं कह सकती. मेरा हाल सुन कर कदाचित आप कुछ अनुमान कर सकें। क्या मायाप्रसाद अब भी आप के यहा काम करते है? गोपाल-हा है तो सही मगर आज कल मैंने उसे किसी दूसरी जगह भेजा है। अस्तु अब मैं इस बात को बहुत जल्द सुनना चाहता हू कि उसने तेरे साथ क्या किया ? हमारे पाठक महाशय पहले भी मायाप्रसाद का नाम सुन चुके है। सन्तति पन्द्रहवें भाग के तीसरे वयान में इसका जिक्र आ चुका है, तारासिह के एक नौकर ने नानक की स्त्री श्यामा के प्रेमियों के नाम बताये थे उन्हीं में इनका नाम भी दर्ज हो चुका है। ये महाशय जाति के कान्यकुब्ज ब्राहमण थे और अपने को ऐयार भी लगाते थे। इन्दिरा ने फिर अपना किस्सा कहना शुरु किया- इन्दिरा-उस समय मै मायाप्रसाद को देखकर बहुत खुश हुई और समझी कि मेरा हाल राजा साहब (आप) को मालूम हो गया है और राजा साहब ही न इन्हें मेरे पास भेजा है। मै जल्दी से उठकर उनके पास गई और मेरी अन्नाने मेरी दण्डवत करके काठरी में आने के लिए कहा जिसके जवाब में पडितजी बोले "में कोठरी के अन्दर नहीं आ सकता और न इतनी मोहलत है। मैं-क्यों? मायाप्रसाद-मैं इस समय केवल इतना ही कहने आया है कि तुम लोग जिस तरह बन पडे अपनी जान बचाओ और जहा तक जल्दी हो सके यहा से निकल भागो क्योंकि गदाधर दुश्मनों के हाथ में फस गया है और थोड़ी ही देर में तुम लोग भी गिरफ्तार होना चाहती हो। मायाप्रसाद की बात सुनकर मेरे तो होश उड़ गये। मैंने सोचा कि अब अगर किसी तरह दारोगा मुझे पकड़ पायेगा तो कदापि जीता न छोडेगा। आखिर अन्ना ने घवडा कर पडितजी से पूछा, 'हम लोग भागकर कहा जाये और किसके सहारे पर भागें। पडितजी ने क्षण भर सोच कर कहा 'अच्छा तुम दोनों मेरे पीछे चली आओउस समय हम दोनों ने इस बात का जरा भी ख्याल न किया कि पडितजी सच बोलते है या दगा करते है। हम दोनों आदमी पडितजी को बखूबी जानते थे और उन पर विश्वास करते थे अस्तु उसी समय चलने के लिए तैयार हो और कोठरी के बाहर निकल कर उनके पोछे-पीछ रवाना हुए। जब मकान के बाहर निकले तो दरवाजे के दोनों तरफ कई आदमियों को टहलते हुए देखा मगर अधेरी रात होने और जल्दी-जल्दी निकल भागने की धुन में लगे रहने के कारण उन लोगों को पहचान न सकी इसलिये नहीं कह सकती कि वे लाग गदाधरसिह के आदमी थे या किसी दूसर के। उन आदमियों ने हम लोगों से कुछ नहीं पूछा और हम दोनों बिना किसी रुकावट के पडितजी के पीछे-पीछे जान लगा थोडी दूर जाकर दो आदमी और मिले एक के हाथ मे मशाल थी और दूसरे के हाथ में नगी तलवार। नि सन्देह वे दोनों आदमी मायाप्रसाद के नौकर थे। जो हुक्म पाते ही हम लोगों के आगे-आगे रवाना हुए। उस पहाड़ी से नीचे उतरने का रास्ता बहुत ही पेचीला और पथरीला था। यद्यपि हम दानों आदमी एक दफे उस रास्ते को देख चुके थे मगर फिर भी किसी के राह दिखाये बिना वहा से निकल जाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव था, पर एक तो हम लोग मायाप्रसाद के पीछे-पीछे जा रहे थे दूसरे मशाल की रोशनी साथ-साथ थी इसलिये शीघता से हम लोग पहाडी के नीचे उतर आर्य और पडितजी की आज्ञानुसार दाहिनी तरफ घूमकर जगल ही जगल चलने लगे। सवेरा होते-होते हम लोग एक खुले मैदान में पहुंचे और वहा एक छोटा सा वगीचा नजर पडा। पडितजी ने हम दोनों से कहा कि तुम लोग बहुत थक गई हो इसलिए थोड़ी देर तक बागीचे में आराम कर लो तब तक हम लोग सवारी का बन्दोबस्त करते है जिसमें आजही तुम राजा गोपालसिह के पास पहुच जाओ। मुझे उस छोट से बागीचे में किसी आदमी की सूरत दिखाई न पड़ी। न तो वहा का कोई मालिक नजर आया और न किसी माली या नौकर ही पर नजर पडी मगर बागीचा बहुत साफ और हरा-भरा था। पडितजी ने अपने दोनों आदमियों को किसी काम के लिए रवाना किया और हम दोनों को उस बागीचे में बेफिक्री के साथ रहने की आज्ञा देकर खुद भी आधी घडी के अन्दर ही लौट आने का वादा करके कहीं चले गये। पडितजी और उनके आदमियों को गए हुए अभी चौथाई घडी भी न बीती होगी कि दो आदमियों को साथ लिए हुए कम्बख्त दारोगा बाग के अन्दर आता हुआ दिखाई पडा। देवकीनन्दन खत्री समग्र ७१२