पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५२

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Geri पाठकों को यह मालूम है कि लीला ऐयारी भी जानती थी। कनात काट कर वह खेमे के अन्दर चली गई। आदमी बहुत ज्यादे भरे हुए थे इसलिए उसे मायारानी के पास तक पहुचने में बड़ी कठिनाई हुई. आखिर उसके पास पहुची और हाथ-पैर खोलने के बाद लखलखा सुंघा कर होश में लाई। मायारानी ने होश में आकर लीला को देखा और धीरे से कहा शावाश खुय पहुची। बस दारोगा को छुड़ाने की कोई जरूरत नहीं।' इतना कह कर मायारानी उठ खडी हुई और लीला के हाथ का सहारा लेती हुई खेमे के बाहर निकल गयी। लीला न चाहा कि लश्कर में से दो घोर्ड भी सवारी के लिए चुरा लावे मगर मायारानी ने स्वीकार न किया और उसी तूफान में दोनों कम्बख्तों ने एक तरफ का रास्ता लिया। दूसरा बयान पाठकों को मालूम है कि शिवदत्त और कल्याणसिह ने जब राहतासगढ पर चढाई की थी तब उनके साथ मनोरमा और माधवी भी मौजूद थी। भूतनाथ और सऍसिह ने शिवदत्त और कल्याणसिह को डर-धमका कर मनोरमा को तो गिरफ्तार कर लिया परन्तु माधवी कहा गई या क्या हुई इसका हाल कुछ लिखा नहीं गया अस्तु अव हा थोडा सा हाल माधवी का लिखना उचित समझते हैं। जिस जमाने में माधवी गया और राजगृही की रानी कहलाती थी उस जमाने में उसका राज्य केवल तीन ही आदमियों के भरोसे पर चलता था-एक दीवान अग्निदत्त दूसरा कोतवाल धर्मसिह और तीसरा सेनापति कुबेरसिह। यस यहा तीनों उसके राज्य का आनन्द लेते थे और इन्हीं तीनों का माधवी को भरोसा था। यद्यपि ये तीनों ही माधवी की चाह में डूबने वाले थे मगर कुबैरसिह और धर्मसिह प्यासे ही रह गये जिसका उन दोनों को बराबर बहुत ही रज बना रहा। जब राजगृही और गया की किरमत ने पलटा खाया तब धर्मसिह कोतवाल कोतीचपला ने माधवी की सूरत बन और धोखा दे गिरफ्तार कर लिया और दीवान अग्निदत्त बहुत दिनों तक बचा रहकर अन्त में किशोरी के कारण एक खोह के अन्दर मारा गया परन्तु अभी तक यह न मालूम हुआ कि उसके मर जाने का सबब क्या था। ह्य सेनापति कुबेरसिह, जिसने माधवी के राज्य में सबसे ज्यादे दौलत पैदा की थी वचा रह गया क्योंकि उसने जमाने को पलटा खाते देख चुपचाप अपने घर (मुशिदावाद ) का रास्ता लिया मगर माधवी के हालचाल की खबर,लेता रहा, क्योंकि यद्यपि उसने माधवी का राज्य छोड़ दिया था मगर माधवी के इश्क ने उसके दिल से अपना दखल नहीं उठाया था। माधवी की बिगडी हुई अवस्था देखकर भी उसकी मुहब्बत से हाथ न धोने का दो सबब था, एक तो माधवी वास्तव में खूबसूरत हसीन और नाजुक थी, दूसरे राजगृही और गया के राज्य से खारिज हो जाने पर भी वह माधवी को अमीर और बेहिसाव दौलत का मालिक समझला था और इसलिये वह समय पर ध्यान रख कर माधवी के हालचाल की बराबर खबर लेता रहा और वक्त पर काम देने के लिये थोड़ी सी फौज का मालिक भी बना रहो। मनोरमा के गिरफ्तार हो जाने के बाद शिवदत्त और कल्याणसिह के साथ जब माधवी रोहतासगढ़ की तराई में पहुची ता एक आदमी ने गुप्त रीति पर उसे एक चीठी दी और बहुत जल्द उसका जवाब मागा। यह चीठी कुबेरसिह की थी और उसमें यह लिखा हुआ था- मुझे आपकी अवस्था पर बहुत रज और अफसोस है। यद्यपि आपकी हालत बदल गई है और आप मुझसे बहुत दूर है मगर मैं अभीतक आपकी खयाली तस्वीर अपने दिल के अन्दर कायम रखकर दिन रात उसकम्जा किया करता हूँ। यही सवय है कि बहुत दिनों तक मेहनत करके मैंने इतनी ताकत पैदा कर ली है कि आपकी मदद कर सकू और आपको पुन राजगृही की गद्दी का मालिक बनाऊ। आप अपने ही दिल से पूछ देखिये कि अग्निदत्त, जिसके साथ आपने सब कुछ किया कैसा बेईमान और बेमुरौवत निकला और मै जिसे आपने हद स ज्यादे तरसाया कैसी हालत में आपकी मदद करने को तैयार हू यदि आप मुनासिव समझें तो इस आदमी के साथ मेरे पास चली आ या मुझी को अपने पास बुला ले। यह आदमी जो चीठी लेकर जाता है मेरा ऐयार है। आपका- कुबेर।

  • देखिये चौदहया भाग दूसरा बयान ।

देवकीनन्दन खत्री समग्र ७४४