पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६९

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दि माया कम क्या ? मैं तो समझती हूँ कि इस समय इसमें कुछ भी पानी नहीं है और कूआं सूखा पड़ा है। माधवी (ताज्जुब से ) ऐसा नहीं हा सकता। एक पत्थर इसमें फेंक कर देखो। माया-आओ तुम ही देखो। माधवी ने अपने हाथ से ईट का टुकड़ा कूरों के अन्दर फेंका और उसकी आवाज पर गौर करके बोली- माधवी-बेशक इसमें पानी कुछ भी नहीं है केवल कीचड़ मात्र है। तो क्या तुम नहीं जानती कि इसके अन्दर पानी के निकास का कोई रास्ता तथा आदमियों के आने जाने के लिए कोई सुरग या दर्वाजा है या नहीं? माया-मुझे एक दफे गोपालसिह ने कहा था कि इस कूर के नीचे एक तहखाना है जिसमें तरह-तरहके तिलिस्मी हये और ऐयारी के काम की अपूर्व चीजें है। माधवी-येशक यही बात ठीक होगी और उन्हीं चीजों में से कुछ लाने के लिये गोपालसिह गये होंगे। माया-शायद ऐसा ही हा। माधवी तो बस इससे बढकर और कोई तरकीब नहीं हो सकती कि यह कूआ पाट दिया जाय जिसमें गोपालसिह को फिर दुनिया का मुंह देखना नसीब न हो। माया–नि सन्देह यह बहुत अच्छी राय है अस्तु जहाँ तक हो सके इसे कर ही देना चाहिए। इस समय कुबेरसिह की फौज टिड्डियों की तरह इस बाग में सब तरफ फैली हुई हुक्म का इन्तजार कर रही थी। माधवी ने अपनी राय भीमसेन और कुबैरसिह से कही और उनकी आज्ञानुसार फौजी आदमियों ने जमीन खोद कर मिट्टी निकालने और कूआ पाटने में हाथ लगा दिया । पहर रात जात तक कूओं बखूबी पट गया और उस समय मायारानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि अब मुझे गोपालसिह का कुछ भी डर न रहो। फौजी सिपाहियों को खुले मैदान बाग में पड रहने की आज्ञा देकर भीमसेन कुबेरसिह और माधवी तथा एयार्गे का साथ लिए हुए मायारानी अपने उस खास कमरे की छत पर बेफिक्री और खुशा के साथ चली गई जिसमें आज के कुछ दिन पहिलेमालिकाना ढग से रहती थी। 1 दसवां बयान रात अनुमान दा पहर क जा चुकी है। खास बाग के दूसरे दर्जे में दीवान खाने की छत परकुवेरसिह, भीमसन और उसके चारों ऐयार तथा माधवी के साथ बैठी हुई मायारानी बडी प्रसन्नता से बातें कर रही है। चाँदनी खूब छिटकी हुई है और बाग की हर एक चीज जहाँ तक निगाह बिना ठोकर खाये जा सकती है साफ दिखाई दे रही है। बात चीत का विषय अब यह था कि राजा गोपालसिह से तो छुट्टी मिल गई अब राज्य तथा राजकर्मचारियों के लिये क्या प्रबन्ध करना चेहिए? जिस छत पर ये लोग बैठ हुए थे उसके दाहिनी तरफ वाली पट्टी में भी एक सुन्दर इमारत और उसके पीछे ऊची दीवार के बाद तिलिस्मी याग का तीसरा दर्जा पडता था। इस समय मायारानी का मुँह ठीक उसी इमारत और दीवार की तरफ था और उस तरफ की चाँदनी दर्वाजों के अन्दर घुस कर बडी बहार दिखा रही थी। बात करते-करते मायारानी चौकी और उस तरफ हाथ का इशारा करके बोली- है उस छत पर कौन जा पहुचा है ? . माधवी हा एक आदमी हाथ में नगी तलवार लेकर टहल तो रहा है। भीम-चहरे पर नकाब डाले हुए है। कुबेर-हमारे फौजी सिपाहियों में से शायद कोई ऊपर चला गया होगा मगर उन्हें बिन, तक्म ऐसा करना नहीं चाहिये। माया नहीं नहीं उस मकान मे सिवा मेरे और कोई नहीं जा सकता। माधवी-तो फिर वहाँ गया कौन? माया-यही तो ताज्जुब है देिखिए एक और भी आ पहुचा, तीसरा भी आया मामला क्या है ? अजायय-कहीं राजा गोपालसिह कूएँ में घुस कर वहाँ न जा पहुचे हों मगर वे तो केवल दो ही आदमी थे !! माया और ये तीन है (कुछ रुक कर ) लीजिए अब पॉच हो गये। मायारानी और उसके सगी साथियों के देखते-देखते उस छत पर पचीस आदमी हा गये। उन सभों ही के हाथों में नगी तलवारें थीं। जिस छत पर वे सब थेवहा पर से ऊपर मायारानी क पास तक आने में यद्यपि कई तरह की रुकावटें चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७६१