पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७२

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ori आनन्द - अगर दुश्मन भी होंगे तो हमें कुछ परवाह न करना चाहिए, हम लोग हजारों में लड़न वाले है। इन्द- अगर हम लोग दस बीस आदमियों से डर कर चलेंगे तो कुछ भी न कर सकेंगे। इतना कह कर इन्दजीतसिह ने उस तरफ कदम बढ़ाया। आनन्दसिए उनके पीछे पीछ रवाना हुए मगर सर्य को साथ आने की आज्ञा न दी और वह उसी जगह खड़ी रह गई। पास पहुच कर कुमारों ने देखा कि सात आदमी जमीन पर बेहोश पड़े हैं। सभी के बदन पर स्याह लबादा और चेहरों पर स्याह नकाब था थोडी देर तक दानों भाई ताज्जुब की निगाह से उन सभों की और देखते रहे और इसके बाद एक के चेहरे पर से नकाब हटाने का इरादा किया मगर उसी समय ऊपर से पुन दरवाजायाखिड़की खुलने की आवाज आई। आनन्द- मालूम होता है कि और भी दो चार आदमी यहा उतारे जायग। इन्द्र - शायद ऐसा ही हो, यहाँ से हट कर और आड में होकर देखना चाहिए। आनन्द-(सातों बेहोशों की तरफ इशारा करके) यदि इन लोगों का इनके किसी दुश्मन ने यहा पहुंचाया हो और अबको दफे कोई आकर इनकी जान इन्द- नहीं नहीं, अगर ये लोग मारे जाने लायक होते और जिन लोगों ने इन्हें नीचे उतारा है वे इनके जानी दुरमन होते तो धीरे से उतारने के बदले ऊपर से धक्का देकर नीचे गिरा देते। खैर ज्यादे बातचीत का मौका नहीं है इस पेड की आड में हो जाओ फिर देखो हम सब पता लगा लेत है. इस हटो जल्दी करा। बेचारे आनन्दरिरह कुछ जवाव न दे सके और वहाँ से दूर हट कर एक पेड़ की आड में हो गए। इस तमय चन्ददेय अपनी छावनी की तरफ जा रहे थे और पेडों की आड़ पड जाने के कारण उस जगह कुछ अन्धकार सा छा गया था जहाँ वे सातों बेहोश पड़े हुए थे और इन्द्रजीतसिह खड़े थे। इन्द्रजीतसिह हाथ में तिलिस्मी खजर लेकर पुर्तीि से इन सातों के बीच में छिप कर लट र# दोनों तरफ रस दो आदमियों के लबादे को भी अपने बदन पर ले लिया और पड़-पड़े ऊपर की तरफ देखने लगा एक आदमी कमन्द के सहारे नीचे उतरते हुआ दिखाई दिया । जब वह जमीन पर उतर कर उन सातो आदमियों की तरफ आया तो इन्द्रजीतसिह ने फुर्ती से हाथ बढा कर तिलिस्मी खजर उसके पैर से लगा दिया साथ ही यह आदमी कॉपा और यहाश हाकर जमीन पर गिर पड़ा । इन्दजीतसिह पुन उसी तरह लेट ऊपर की तरफ देखने लगे। थोड़ी दर वाद और एक आदमी उसी कमन्द के सहारे नीचे उतरा और गुम-घूम के गौर से उन सातों को दखन लगा। जब वह कुमार के पास आया कुमार ने उसके पैर स भी तिलिस्मी खजर लगा दिया और वह भी पाहिले की तरह यहाश होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुँअर इन्द्रजीतसिह लटे-लेटे और किसी के आने का इन्तजार कर।लम मगर कुछ देर हो जान पर भी कोई तीसरा दिखाई न पडा । कुमार उठ खडकुर और आनन्दसिह भी उसके पास चले आये। इन्द्रजीत-तुम इसी जगर मुस्तैद रह कर इन सभों की निगहबानी करा हम इसी कमद के महारे ऊपर जाकर देखते हैं कि वहाँ क्या है ? आनन्द-आपका अकेले ऊपर जाना ठीक न होगा फोन ठिकाग वहाँ दुश्मनों की बारात लगी हो । इद्रजीत-कोई हर्ज नहीं जो कुछ होगा देखा जायगा मगर तुभ यहाँ से मत हिलना। इतना कह कर इन्द्रजीतसिह उसी कमन्द के सहारे बहुत जन्द ऊपर चर गय और खिड़की के अन्दर जाकर एक लम्बे चौडे कमरे में पहुचे जहाँ यद्यपि बिल्कुल सन्नाटा था मगर एक चिराग जल रहा था। इस कमरे में दूसरी तरफ याहर निकल जाने के लिए एक बड़ा सा दर्वाजा था, कुमार वहाँ चले गये और एक पैर दर्वाजे के बाहर रख झॉकने लगे। एक दूसरा कमरा नजर पड़ा जिसमें चारों तरफ छोटे-छोटकई दर्वाजे थे मगर सय बन्द थे और सामने की तरफ एक बड़ा सा खुला हुआ दर्वाजा था। कुमार उस खुल हुए दर्याजे में चले गये और झाक कर दखने लगे। एक छोटा सा नजर बाग दिखाईदिया जिसके बारा तरफ ऊँची-ऊंची इमारत और बीच में एक छोटी सी यावनी थी। बाग में दो बिगहे से ज्यादे जमीन न थी और फूल पत्तों के पेड मीकमथे। बारती के पूरब तरफ एक आदमी हाथ में मशाल लिये खडा था और उस मशाल में से बिजली की तरह बहुत ही तेज रोशनी निकल रही थी। वह रोशनी स्थिर थी अर्थात हवा लगने स हिलतीन थी और केवल उस एक ही रोशनी से तमाम बाग ऐसा उजाला हो रहा था कि वहा का एफ-एक पत्ता साफ साफ दिखाई दे रहा था। कुँअर इन्द्रजीतसिह ने बड़े गौर से उस आदमी को देखा जिसके हाथ में मशाल थी और उनको निश्चय हो गया कि यह आदमी असली नहीं है बनावटी है अस्तु ताज्जुब से कुछ देर तक वे उसकी तरफ देखते रहे, इसी बीच में साग के उत्तर वाले दालान में से एक आदमी निकल कर बावली की तरफ आता हुआ दिखाई पड़ा और कुमार ने उसे देखते ही पहिचान लिया कि यह राजा गोपालसिइ है। कुमार ने उन्हें पुकारने का इरादा किया ही था कि उसी दालान में से और चार आदमी आते हुए दिखाई दिये और इनकी सूरत शक्ल भी पहिले आदमी के समान ही थी अर्थात् ये चारों भी राजा देवकीनन्दन खत्री समग्र