पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७९

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२ पहुचे? क्या किसी ने इन्हें रोका नहीं? भैरो-मैंने इनसे अभी कुछ भी नहीं पूछा कि ये कौन है और यहा कैसे आ पहुचे क्योंकि मै तुम्हारी मुहब्बत में डूबा हुआ तरह-तरह की बातें सोच रहा था अब तुम आई हो तो जो कुछ पूछना हो स्वय पूछ लो। बुढिया-(कुमारों से तुम दोनों कोन हो ? भैरो-(कुमारों स) बताओ-वताओ सोचते क्या हो ? आदमी हो जिन्न हो भूत हो, प्रेत है कौन हो कहते क्यों नहीं । क्या तुम देखते नहीं कि मेरी नौजवान स्त्री को तुमसे बात करने में कितना कष्ट हो रहा है? भैरासिह और उस बुढिया की बातचीत और अवस्था पर दोनों कुमारों को बडा ही आश्चर्य हुआ और कुछ सोचने के बाद इन्द्रजीतसिहन भैरोसिहसे कहा अब मुझे निश्चय हो गया कि जरूर तुम्हें किसी ने इस तिलिस्म में ला फसाया है और कोई ऐसी वीज खिलाई या पिलाई है कि जिससे तुम पागल हो गए हो ताज्जुब नहीं कि यह सब बदमाशी इसी बुढिया की हो, अब अगर तुम हाश में न आओगे तो मैं तुम्हें मार पीट कर होश में लाऊँगा। इतना कह कर इन्दजीतसिह भैरोसिह की तरफ बढे मगर उसी समय बुढ़िया ने यह कह कर चिल्लाना शुरु किया दौडियों दोडिया हाय रे मारा रे मारा रे चोर-चोर, डाकू दौडो-दौडो ले गया ले गया ले गया । बुढिया चिल्लाती रही मगर कुमार न उसकी एक भी न सुनी और भैरोसिह का हाथ पकड के अपनी तरफ खैच ही लिया मगर बुडिया का चिल्लाना भी व्यर्थ न गया। उसी समय चार पाच खूबसूरत लडके दौडते हुए वहा आ पहुचे जिन्होंने दोनों कुमारों को चारो तरफ से घेर लिया। उन लडकों के गले मे से छोटी-छाटी झोलिया लटक रही थी और उनमें आटे की तरह की कोई चीज भरी हुई थी। आन के साथ ही इन लडकों ने अपनी झोली मे से वह आटा निकाल कर दोनों कुमारों की तरफ फेंकना शुरु किया । नि सन्देह उस बुकनी में तज बेहोशी का असर था जिसने दोनों कुमारों को बात की बात में बहोश कर दिया और दोनों चक्कर खाकर जमीन पर लट गयां जव आख खुली तो दोनों ने अपने को एक सजे सजाये कमरे में फर्श के ऊपर पड पाया। चौदहवां बयान जिस कमरे में दोनों कुमारों की वेहोशी दूर हो जाने के कारण आख खुली थी वह लम्बाई में बीस और चौडाई में पन्द्रह गज से कम न था। इस कमरे की सजावट कुछ विचित्र ढग की थी और दीवारों में भी एक तरह का अनूठापन था। रोशनी के शीशों (हाडी ओर कन्दीलों) की जगह उसमें दो दो हाथ लम्बीतरह-तरह की खूबसूरत पुतलिया लटक रही थी और दीवार गीरों की जगह पचासों किस्म के जानवरों के चेहरे दीवारों में लगे हुए थे। दीवारें इस कमरे की लहरदार बनी हुई थी और उन पर तरह तरह की चित्रकारी की हुई थी। ऊपर की तरफ छत से कुछ नीचे हट कर चारों तरफ कोई गुलामगर्दिश या मकान है मगर इस समय सब खिडकियो चन्द थी और इस कमरे में से काई रास्ता ऊपर जाने का नहीं दिखाई देता था। कुँअर आनन्दसिह ने इन्द्रजीतसिंह से कहा, "भैया, वह मुढ़िया तो अजम आफत की पुड़िया मालूम होती है। और उन लडकों की तेजी भी भूलने योग्य नहीं है।' इन्दजीत-बेशक ऐसा ही है ! ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिये कि उन्होंने हमलोगों को जीता छोड़ दिया। मगर हमें मैरोसिह की बातों पर आश्चर्य मालूम होता है। क्या हम वास्तव में कोई ऐयार समझें? आनन्दसिह-यदि वह ऐयार होता तो नि सन्देह हम लोगों को धोखा देने के लिए भैरोसिह बना होता और साथ इसके पोशाक भी वैसी हीरखता जैसी भैरोसिन पहिरा करता है, इसके सिवाय वह स्वयं अपने को भैरोसिह प्रकट करके हम लोगों का साथी बनता ऐसा न कहता कि भेरोसिह नहीं हूँ। मगर उसकी नौजवान औरत (बुढिया) के विषय में इन्दजीत उस बुढिया की बात जाने दो, अगर वह वास्तव में मेरोसिह है तो ताज्जुब नहीं कि मसखरापन करता है या पागल हो गया है और अगर वह पागल हो गया है तो नि सन्देह उस बुढ़िया की बदौलत जो उसको आखों में अभी तक नौजवान बनी हुई है। आनन्द-उस बुढ़िया को जिस तरह हो गिरफ्तार करना चाहिए। इन्द्रजीत-मगर उसके पहिले अपने को बेहोशी से बचाने का बन्दोबस्त कर लेना चाहिए क्योंकि लगाईदगे से तो चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७७१