पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८७

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मगर उसके हानि-लाभपर ध्यान न दिया। इसलिए वह मजदूरनी चुपचाप सब कार्रदाई देखती सुनती और समझती रही मगर जब श्यामारानी तारासिह के यहा चली गई और कुछ देर बादनानक घर में आया तो उसने अपना नाम प्रकद न करने का वादा कराके सब हाल नानक से कह दिया और तारासिह का मकान दिखा देने के लिए भी तैयार हो गई क्योंकि उसे पता ठिकाना तो मालूम हो ही चुका था। नानक ने जब सुना कि उसकी स्त्री किसी परदेशी के घर चली गई है, तब उसे बड़ा क्रोध आया और उसने ऐयारी के सामान से लेस होकर अकेले ही अपनी स्त्री का पीछा किया। नानक ने यद्यपि किसी कारण से लोकलाज को तिलाजुली द दी थी मगर ऐयारी को नहीं। उसे अपनी एयार पर बहुत भरोसा था और वह दस-पाच आदमियों में अकेला घुस कर लडने की हिम्मत भी रखता था. यही सबब था कि उसने किसी समी-साथीका ख्याल न करके अकेले श्यामारानी का पीछा किया, हॉ यदि उसे मालूम हाता कि श्यामारानी का उपपति तारासिंह है तो कदापि अकेला न जाता। नानक औरत के येय में घर से बाहर निकला और जब मकान के पास पहुचा जिसमें तारासिह ने डेरा डाला था, तो कमन्द लगा कर मकान के ऊपर चढ गया और धीरे-धीरे उस कोठरी के पास जा पहुचा जिसके अन्दर तारासिह और श्यामारानी थी और बाहर तारासिह का चेला और नानक का नौकर हनुमान हिफाजत कर रहा था। वहाँ पहुँचते ही उसने एक लात अपने नौकर की कमर में ऐसी जमाई कि वह तिलमिला गया और जब वह चिल्लाया तो उसे चिढाने की नीयत से नानक स्वयंभी औरतो ही की तरह चिल्ला उठा। यही वह चिल्लाने की आवाज़ थी जिसे कोठरी के अन्दर बैठे हुए तारासिह और श्यामा ने सुना था। चिल्लाने की आवाज सुनते ही तारासिह उठ खडा हुआ और हाथ में खजर लिए कोठरी के बाहर निकला। वहा अपने चेले और हनुमान के अतिरिक्त एक औरत को खड़ा देख वहताज्जुब करने लगा और उसने औरत अर्थात् नानक से पूछा तू कौन नानक-पहिले तू ही बता कि तू कौन है जिसमें तुझे मार डालने के बाद यह तो मालूम रहे कि मैंने फलाने को मारा था। तारा-तेरी ढिठाई पर मुझे ताज्जुब ही नहीं होता बल्कि यह भी मालूम होता है कि तू औरत नहीं कोई ऐयार है ! नानक-(गम्भीरता के साथ) बेशक मैं ऐयार हूँतभी तो अकेले तेरे घर में घुस आया हूँ !शैतान, तूनहीं जानता कि बुरे कर्मो का फल क्योंकर मिलता है और वह कितना बड़ा ऐयार है जिसकी स्त्री को तूने धोखा देकर बुला लिया है ! तारा-(जोर से हस कर) अहहह ! अब मुझे विश्वासहो गया कि बेहया नानक तूही है और शायद अपनी पतिव्रता की आमदनी गिनाने के लिए यहा आ पहुंचा है। अच्छातो अब तुझे यह भी जान लेना चाहिए कि जिसका तू मुकाबला कर रहा है उसका नाम तारासिह है और वह राजा बीरेन्द्रसिह की आज्ञानुसारनेरेचाल-चलन कीतहकीकातकरने आया है। तारासिह और राजा वीरेन्द्रसिह का नाम सुनते ही नानक सन्न हो गया। उधर उसकोस्त्री ने जब यह जाना कि इस कोठरी के बाहर उसका पति खडा है तो वह नखरे से रोने और पीटने लगी तथा यह कहती हुई कोठरी के बाहर निकल कर नानक के पैरों पर गिर पड़ी कि मुझे तो तुम्हारा नाम ले कर हनुमान यहा ले आया है। नानक थोड़ी देर तक सन्नाटे में रहा इसके बाद तारासिह की तरफ देख के बोला- नानक क्या ऐयारो का यही धर्म है कि दूसरों की औरतों को खराब करें और बदकारी का धब्या अपने नाम के साथ लगावें। तारा-नहीं नहीं एयारों का यह काम नहीं है और एयारों को यह भी उचित नहीं है कि सब तरफ का ख्याल छोड़ केवल औरत की कमाई पर गुजारा करें। मैने तेरी औरत को किसी बुरी नीयत से नहीं बुलाया बल्कि चालचलन का हाल जानने के लिए ऐसा किया है। जो यातें तेरे बारे में सुनी गई है और जो कुछ यहा आने पर मैने मालूम की,उनसे जाना जाता है कि तू बडा ही कमीना और नमकहराम है। नमकहराम इसलिए कि मालिक के काम की तुझे कोई भी फिक्र नहीं है और इसका सबूत केवल मनोरमा ही बहुत है जिसके साथतूशादी किया चाहता था और जिसने जूतियों से तेरी पूजा ही नहीं की बल्कि तिलिस्मी खजर भी तुझसे ले लिया । नानक यह कोई आवश्यक नहीं है कि ऐयारों का काम सदैव पूरा ही उतरा करे कभी घाखाखाने में न आवे यदि मनोरमा की ऐयारी मुझ पर चल गई तो इसके बदले में कमीना और नमक हराम कहे जाने लायक मैं नहीं हो सकता। क्या तुमने और तुम्हारे बाप ने कभी धोखा नहीं खाया? और मेरी स्त्री को जो तुम बदनाम कर रहे हो वह तुम्हारी भूल है। वह तो खुद कह रही है कि मुझे तो तुम्हारा नाम लेकर हनुमान यहा ले आया है । मेरी स्त्री बदकार नहीं है बल्कि वह साध्वी और सती है असल में बदमाश तू है जो इस तरह धोखा देकर पराई स्त्री को अपने घर में बुलाता है और मुझे यहा पर अकेला जान कर गालिया देता है नहीं तो मै तुझसे किसी बात में कम नहीं हूँ। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ७७९