पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९६

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lat आज दिन भर की कार्रवाई भी हमें विश्वास न दिला सकेगी कि इस जानोदिल का मालिक इसी स्थान में आ पहुंचा है। जैसा कि सुन चुके है और क्या आज दिन भर की उपासना का फल भी जुदाई की उस काली घटा का दूर न कर सकेगा जिसने इन चकोरों को जीवनदान दने वाले पूर्णचन्द्र को छिपा रक्खा है ? नहीं-नहीं ऐसा कदापि नहीं हा सकता आज दिन मर में हम बहुत कुछ कर सकेंगे और उनका पता अवश्य लगावेंगे जिन पर अपनी जिन्दगी का भरोसा समझते है और जिनक मिलाप से बढ कर इस दुनिया में और किसी चीज को नहीं मानते। इसी तरह की बाते साचते हुए दोनों कुमार खड़ हो गये। नहर के किनार आकर हाय मुंह धाने वाद घड़ी भर के अन्दर ही जरुरी कार्मा से छुट्टी पाये/बाग मे घूमने और वहाँ की हर एक चीज को गौर से देखने लगे और थोड़ी ही दर में वारहदरी के सामने वाली दो मजिला इमारत के नीचे जा पहुंचे जिसके ऊपर वाली मजिल में रात को काई काम करते हुए भैरोंसिंह ने कई आदमियों को देखा था। इस इमारत के नीचे वाला भाग ऊपर वाले हिस्से के विपरीत दवाजे पल्कि दवाजे के पिसी नामानिशान तक सभी खाली था। बाग की तरफ वाली नीचे की दीवार साफ तथा चिकने सगनर की बनी हुई थी और बीचोबीच चार हाथ ऊँचा और दा हाथ चौड़ा स्याह पत्थर का एक टुकड़ा लगा हुआ था। उसमें नोच लिये मोट छत्तीत अक्षर युदे हुए थे जिसे दोनों कुमार बड़े गौर से दखने और उसका मतलब जानन के किए उद्योग करन लगा वे अक्षर येथे - ती ने हि ए को रसो ति ड़ न का से या टू र य क न से टें ल हाँ ग ख क रो दोघडी तक गौर करने पर कुँअर इन्दजीत उसका मतलब समझ गये और अपने छोटे माई कुँअर आनन्दसिह को भी समझाया इसके बाद दोनों भाइयों ने जोर करके उन्ज पत्थर को दवाया तो यह अन्दर की तरफ घुस कर जमीन के वरायर हो गया और अन्दर जाने लायक एक खासा दाणा दिखाई दने लगा साथ इसके भीतर की तरफ अन्धकार भी मालूम हुआ। इन्द्रजीत ने तिलिस्मी खजर को राशनी करके आगे चलने के लिए आनन्दसिह से कहा। तिलिस्मी खजर की राशनी के सहार दोनों भाई उस दर्वाजे के अन्दर चले गये और एक छोटे से कमर में पहुंचे जिसके बीचोंबीच से ऊपर की मजिल में जाने के लिए छोटी-छोटी चक्करदार सीटियों बनी हुई थी। उन्हों सीढियों की राह से दानों कुमार ऊपर वाली मजिल पर चढ गये और एक ऐसी कोठरी में पहुंचे जिसकी बनावट अर्धचन्द के दग की थी और तीन दजे बाग की तरफ उस बारहदरी के ठीक सामने थे जिसमें रात को दोनों कुमारों ने आराम किया था। याग की तरफ बाल तीनों दर्वाजे खोल देने से उस काटरी के अन्दर अच्छी तरह उजाला हा गया, उस समय आनन्दसिह ने तिलिस्मी खजर की राशनी बन्द की और उस कमर में रखने बाद अपने भाई से कहा- 'आनन्द-इसी कोठरी में रात को भैरोसिह ने कई आदमियों को चलते फिरते तथा काम करत देखा था, और मालूम होता है कि इसके दोनों तरफ की कोउरियों का सिलसिला एक दूसरस लगा हुआ है और समों का एक दूसरे से सम्बन्ध इन्द्र में भी ऐसा ही विश्वास करता हूं, इस दाहिने बगल वाली दूसरी कोठरी का दर्याजा खोलो और देखो कि उसके अदर क्या है? ण्ड कुमार की आज्ञानुसार आनन्दत्तिह ने बगल वाली दूसरी कोठरी का दवाजा खोला, उसी समय दोनों कुमारों को ऐसा मालूम हुआ कि कोई आदमी तेजी के साथ कोठरी में से निकल कर इसके बाद वाली दूसरी कोठरी मे चला गया। दोनों कुम्परों नती के माय उसका पीछा किया और उस दूसरी कोठरी में गए जिसकादाजा मजबूती के साथ चन्दन था, नो नानक पर निगाह पड़ी। यद्यपि उस कोठरी के दरवाजे जो चाग की तरफ पडतेथे 'वन्द थमगर दिन का समय होने के कारण झिलमिलियों की दरारों में से पड़न वाली रोशनी न उसमें इतना उजाला जरूर कर रक्खा था कि आदमी की सूरत शक्ल वश्वी दिखाई दे जाय, यही सवय था कि निगाह पडते ही दानों कुमारों ने नानक को पहिचान लिया इसी तरह नानक में देवकीनन्दन खत्री समग्र ७८८