पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

cyt कर आपत्ति न की और उसे ले जाने दिया। और कोठरियों की बनिस्बत इस कोठरी में दर्वाजे ज्यादे थे अर्थात् दो दरवाज दानो तरफ तो थे ही मगर बाग की तरफ चार और दो दवाजे पिछली तरफ भी थे और उसी पिछली तरफ वाले दोनो दाजों में सब लोग आएथ जोनानक को घसीट कर ले गए थे। नानक को ले जा क याद आनन्दसिह से उन्ही पिछली तरफ वाले दबाजों में से एक दाजा खाला और अन्दर की तरफ झाक के देखाभीतर बहुत लम्बा चौड़ा एक कमरा नजर आया जिसमें अन्धकार का नाम निशान भी न था बल्कि अच्छी तरह उजाला था। दानों कुमार उस कमर मचल गए और तब मालूम हुआ कि वे दर्वाजे एक ही कमरे में जान के लिए है। इस कमर में दोनों कुमारों में एक बहुत बूढ़े आदमी को देखा जो चारपाई के ऊपर लेटा हुआ कोई किताब पढ़ रहा था। कुमारों को देखत ही वह चारपाई के नीच उतर कर खड़ा हो गया और सलाम कर के योला. आज कई दिनों से में आप दानों भाइयों के आने का इन्तजार कर रहा हूँ। इन्द-तुम कौन हो? युड़ता-जी में इस बाग का दारोगा हूं। इन्द-तुम हम लोगों का इन्तजार क्यों कर रहे थे? दारोगा इसलिए कि आप लागों को यहो की इमारतों और अजायबातों की सैर करा के अपने सर से एक भारी बोझ उतार दूं। इन्द्र-क्या इधर दो-तीन दिन के बीच में कोई और भी इस बाग में आया है? दारोगा-जी हा दो मर्द और कई औरते आई है। इन्द-क्या उन लोगों के नाम बता सकते है। दारोगा-नानक और भैरोसिह के सिवाय मै और किसी का नाम नहीं जानता (कुछ सोच कर) हा एक औरत का भी नाम जानता हूँ शायद उसका नाम कमलिनी है क्योंकि वह दो एक दफे इसी नाम से पुकारी गई थी बड़ी ही धूत और चालाक है अपनी अक्ल के सामन किसी का कुछ समझती ही नहीं अस्तु विना घोखा खाये नहीं रह सकती। इन्द-क्या बता सकते हो कि वे सब इस समय कहाँ है और उनस मुलाकात क्योकर हो सकती है? दारोगा जी मुझे उन लोगों का पता नहीं मालूम क्योकि कमलिनी ने उन सभों को मेरी बात मानने न दी और अपनी इच्छानुसार उन सभी को लिए हुए चारों तरफ घूमती रही, इसी से मुझे रज हुआ और मैने उनकी यवरगीरी छोड़ दी। इन्द्र-अगर तुम यहाँ के दारोगा होतो खबरदारी नरयन पर भी यह तो जरूर जानते ही होवागे कि वे सब कहा है ? दारोगा-मुझे यहाँ का दारोगा समझने और न समझने का तो आपको अख्तियार है मगर ने यह जरूर कहूँगा कि मुझे उन सभों का पता नहीं मालूम है। आनन्द-(हस कर ) यही हाल है तो यहाँ की हिफाजत क्या करते हो? दारोगा इसका हाल तो तभी मालूम होगा जब आप मेरे साथ चल कर यहाँ की सैर करेंगे। आनन्द--अच्छा यह बताओ कि अभी हमारे देखते ही देखते जो लोग नानक को ले गए वे कौन थे? दारोगा वे सब मेरे ही नौकर थे। वह झूठा और शैतान है तथा आपको नुकसान पहुंचाने की नीयत से धोखा देकर यहाँ घुस आया है इसी लिए मैंने उसे गिरफ्तार करन का हुक्म दिया आनन्द-तुम्हारे आदमी लोग कहाँ रहते है ? यहाँ तो मैं तुमको अकेला ही देयता हूँ। दारोगा-यह कमरा तो मेरा एकान्त स्थान है जय पढने या किसी विषय पर गौर करने की जरुरत पड़ती है तब मै इस कमरे में आकर बैठता या लेटता हूँ। मगर यहाँखड़े-खड़ेयातें करने में तो आपको तकलीफ होगी। आप मेरे स्थान पर चलें तो उत्तम हो या पाग ही में चलिए जहाँ और भी कई इन्दजीत-खैर यह सब तो होता रहेगा पहिले हम लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि तुम हमारे दोस्त हो. दुश्मन नहीं और तुम्हारी यह सूरत असली है.बनावटी नहीं। इसके बाद मैं तुमसे दिल खोल कर बातें कर सकूँगा। दारोगा-इस बात का पता तो आपको मेरी कार्रवाई से ही लग सकेगा, मेरे कहने का आपको एतबार कब होगा मगर इस बात को दारोगा की बात पूरी न होने पाई थी कि एक तरफ से आवाज आई, अजी तुम्हें कुछ खाने पीने की भी सुध है या यों ही वकवाद किया करोगे। समझ देवकीनन्दन खत्री समग्र ७९०