पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०२

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exi समय बन्द था मगर कोई जागीर, कुण्डा या ताला उसमें दिखाई नहीं देता था। कुमारों को यह भी मालूम हुआ कि किस खुटके को दबा कर या क्योंकर उसने वह पर्वाजा खोला दवाखुराने पर उस औरत ने पाहिले दोनो कुमारों का उसके अन्दर जाने के लिए कहा. जब पानो कुमार उसके अन्दर चले गए तब उन दोनों ने भी टरवाने के अन्दर पैर रक्या और उसके बाद हलकी आवाज के साथ यह पर्याजा आप से आप बन्द हो गया। इस समय दानो कमारों ने अपो का एक सुरग में पाया जिसमें अन्धकार के सिवाय और कुछ दिखाई नहीं देता या आर जिसकी चौड़ाई सीन हाय और उचाई चार हाथ से किसी तरह ज्यादे नधी । इस जगह कुमार की इस बात का ख्याल हुआ कि कहीं इन औरतों न मुझ धोखा तो नहीं दिया मगर यह साच कर चुप रह गये फि अब तो होना था कही गया आर ये औरते भी ना आरिहर हरे साथ ही है जिनके पास किसी तरह का ही दान में नहीं आया था। दोनों कुमारों ने अपना हायपसार कर दीवाल को टटोला और मालूम किया कि यह सुरगा। उसी समय पछि उस ओरत की यह आवाज आई, आप दानों भाई किसी तरह का अदेशा न कीजिए और सीधे चले चलिए इस सुरगमे बहुत दूर तक जान की तकलीफ आप लोगों को महागी ।" वास्तव में यह सुरग बहुत वी न था चालीस पचास कदम से गाद कुमार ने गा हो कि सुरग का दूसरा दांला मिला और उसे लाध कर सुअर इन्द्रजीतसिह और आनसिह ने अपने को एक दूसरे ही भाग में पाया जिसकी जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा मकान कमरों बारहदरियों तथा और इमारतो क काम म लगा हुआ था और थारे हिस्से में मामूली ढग का एक छोटा सा बाग था। हा उस बाग के बीचोवीप में एक छोटी सी रसूबसूरत आपली जरूर थी जिसकी पार अगुल ऊची सीढ़ियों सफेद लहरदार पत्थरों से बनी हुई थी। इसके चारों कोने पर वार पेड कदाय के लगाए थे और एक पेड़ के निचे एक चबुतरा सगर्मभर का इस लायक या कि उस पर बीस-पच्चास आदमी पुल तौर पर 4ठ सके। इमारत का हिस्सा जो कुछ बाग में था यह सब बाहर से तो देखने में बहुत ही यबसूरत था मगर अदर से यह सा और किस लायक था सो नहीं कह सकत । बाग्ली के पास पहुंध कर उस औरत कुअर इन्दजीतसिंह से कहा 'यापि इस गाय धूप बहुत तेज हो रही है मगर इस पेड(कदम्ब ) की घनी छाया में इस सगमर्मर के चबूतरे पर थोडी देर तक बैठने में आपको कित्ती तरह की तकलीफ न होगी में बहुत जल्द {सामने की तरफ इशारा करके) इस कमरे को सुलथा कर आप आराम करने का इन्तजाम करूंगी, केवल आधी घडी के लिए आप मुझ विदा करे। इन्द-खैर जाआ मगर इतना बताती - ॥ओ कि तुम दोनों का नाम क्या है जिससे यदि कोई आधे और कुछ पूछे तो कह सके कि हम लोग पलाने के मेहमान औरत-(हस कर ) जरूर जानना चाहिये कवल इसलिए नहीं बल्कि कई काम के लिए हम दोनो बहिनों का नाम जान लेना आपके लिए आवश्यक है मेरा नाम इन्द्रानी (दूसरी की तरफ इशारा करके) और इसका राम आनन्दी है। यह मेरी सगी छोटी बहिन है। इतना कर कर वे औरतें तेजी के साथ एक तरफ चली गई और इस बात का कुछ भी इन्तजार न किया कि कुमार कुछ जवाब देंगे या और कोई वात पूछगे। उन दोनो ओरतों के घले जाने बाद कुअर आनन्दसिह ने अपने भाई से कहा. 'इन दोनों औरतों के नाम पर आपने कुछ ध्यान दिया ?" इन्द्र-हो, यदि इनका यह नाम इनके बुजर्गो का रक्खा हुआ और इनके शरीर का सबसे पहिला साथी नहीं है तो कह सकते है कि हम दोनों ने धोखा खाया । आनन्द-जी मेरा भी यही ख्याल है मगर साथ ही इसके भै यह भी ख्याल करता हूँ कि अब हम लोगों को चालाक बनना इन्द्र-(जल्दी से) नहीं-नहीं अब हम लोगों को जब तक छुटकारे की साफ सूरत दिखाई न दे जाय प्रकट में नादान बने रहना ही लाभदायक होगा आनन्द-नि सन्देह, मगर इतना तो मेरा दिल अब भी कह रहा है कि ये सब हमारी जिन्दगी के धागे में किसी तरह का खिचाव पैदा न करेंगी। इन्द्र-मगर उसमें लगर की तरह लटकाने के लिए इतना बडा बोझ जरुर लाद देगी कि जिसका सहन करना असम्भव नहीं तो असक्ष्य अवश्य होगा। आनन्द-हा, अब यदि हम लोगों को कुछ सोचना है तो इसी के विषय में इन्द्रजीत-अफसोस, ऐसे समय में भैरोंसिंह को भी इत्तिफाक ने हम लोगों से अलग कर दिया । ऐसे मौकों पर उसकी बुद्धि अनूठा काम किया करती है । (कुछ रुक कर) देखो तो सामने से वह कौन आ रहा है ! देवकीनन्दन खत्री समग्र