पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१३

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इसके जवाब में गोपालसिह न कहा तुम लोगों को हमने नहीं बल्कि कम्बख्त मायारानी ने बेहोश किया था हमने यहाँ पहुँच कर तुम लोगों की बहोशी दूर कर दी अब तुम लोग एक सायत भी विलम्ब न करो और शीघ्र ही यहा से चले जाओ। उस अफसर ने झुक कर सलाम किया और अपने साथियों को कुछ इशारा करके वहाँ से चल पडा। यह हाल देय मायारानी ने पुन तिलिस्मी तमचे की गोलियाँ उन लोगों पर चलाई मगर इसका असर कुछ भी न हुआ और वे सब सिपाही राजा गोपालसिह की बदौलत थोडी ही देर में इस बाग के बाहर हो गए। फिर मायारानी को यह भी मालूम न हुआ कि राजा गोपालसिह कहा गए और क्या हुए। आठवां बयान वास्तव में भूतनाथ का हाल चडा ही विचित्र है। अभी तक उसका असल भद खुलने में नहीं आता। वह जहाँ जाता है वहाँ ही एक विचित्र घटना देखन में आती है जिससे मिलता है उसी से एक नई बात पेदा हाती है और जब जो करता है उसी में एक अनूठापन मालूम होता है। इस समय वह बलभद्रसिह के साथ चुनारगढ वाले तिलिस्म में मौजूद है और वाॉ पहुंचन के साथ ही वह सुन चुका है कि कल राजा वीरन्द्रसिह भी इस जगह आने वाले हैं। वीरेन्द्रसिह को तो आए हुए आज कई दिन हो धुक हाते मगर उन्होंने जान बूझ कर रास्ते में बहुत दर लगा दी। नकली किशोरी कामिनी और कम ना क क्रिया कर्म का बखडा (जिसका करना लोगों को धोखे में डालन के लिए आवश्यक था) चुनार में ले जाना उन्होंने पसन्द किया बल्कि रास्त ही में निपटा डालना उचित जाना इसलिए पन्द्रह-बीस दिन की देर उन्हें रारते ही में हो गई ओर इसी स वहां पहुंच जाने पर भूतनाथ ने सुना कि राजा वीरन्द्रसिह कल आने वाले हैं। उस खण्डहर में पहुंचने पर रात क समय भूतनाथ ने जो कुछ तमाशा देखा था उसका विचित्र हाल तो हम ऊपर के किसी बयान में लिख ही चुके है आज उसी के आगे का हाल लिख कर हम अपने पाठकों के चित्त में भूत्नाथ की तरफ से पुनः एक तरह का खुटका पैदा किया चाहते हैं। बलभदसिह न जब सिरहाने वाला लिफाफा उठा कर शमादान के सामने खोला तो उसके अन्दर से एक अंगूठी निकली जिसे देखते ही वह चिल्ला उठा और तब विना कुछ कहे अपनी चारपाई पर आकर बैठ गया। भूतनाथ ने उससे पूछा क्यों यह अंगूठी कैसी है और इसे देख कर तुम घबडा क्यों गए? बलभद-इस अंगूठी ने मुझ कई एसी बातें याद दिला दी जिन्हें स्वप्न की तरह कभी-कभी याद करके मैं चौक पडता था मगर आज नहीं फिर कभी मैं इसका खुलासा हाल तुमस कहूँगा। भूत-भला देखो तो सही उस लिफाफे के अन्दर कोई चीठी भी है या केवल यह अंगूठी ही थीं। बलभद-(लिफाफा भूतनाथ के हाथ में देकर ) लो तुम्हीं देखो। भूत-(शमादान के पास लिफाफा ले जाकर और उसे अच्छी तरह देख कर ) हाँ हों इसमें चीठी भी तो है। बलभद्-(भूतनाथ क पास जा कर ) देखें। भूतनाथ ने वह चीठी वलभदसिह के हाथ में दी और बलभदसिह ने बडे शोक स उसे पढा यह लिखा हुआ था - यह अगूंठी दे कर तुम्हें विश्वास दिलाते हैं कि तुम हमारे हो और हम तुम्हारे है। भूतनाथ को अपना सच्चा सहायक समझो और जो कुछ वह कहे उसे करो। भूतनाथ यह नहीं जानता कि हम कौन है मगर हम कल उससे मिल कर अपना परिचय देंगे और जो कुछ कहना होगा कहेंगे। इस चीठी को पढकर दोनों के जी में एक तरह का खुटका पैदा हो गया और बिना कुछ विशेष बातचीत किये दोनों अपनी अपनी चारपाई पर जाकर लेट रहे मगर बची हुई रात दोनों ने अपनी आँखों में ही काटी, किसी को नींद न आई। दूसरे दिन सयेरे ही पन्नालाल उन दोनों के पास पहुंचे और रात भर का कुशल मगल पृछा। दोनों ही ने दुनियादारी के तौर पर कुशल मगल कह कर यातचीत की. मगर रात के विचित्र हाल को अपने दिल के अन्दर ही छिपा रक्खा। दिन भर दोनों का यड़े चैन और आराम से बोता। जीतसिह से भी मुलाकात और कई तरह की बातें हुई मगर जीतसिह और उनकी आज्ञानुसार किसी ऐयार ने भी उन दोनों से मुकदमे की बात या किसी तरह का सवाल न किया क्योंकि यह बात पहिले से ही तय पा चुकी थी कि बिना राजा वीरेन्दसिह के आये इस बारे में किसी तरह की बात-चीत भूतनाथ से न की जायगी। आज किसी समय राजा वीरेन्दसिह के आने की खबर थी मगर वे न आये। सध्या के समय हरकारे ने आकर जीतसिह को खबर दी कि राजा साहब कल सध्या के समय यहाँ आवेंगे भूतनाथऔर बलभदसिह के आने की खबर उन्हें हो गई है। सध्या होने के साथ ही भूतनाथ और बलभद्रसिह के दिल में धुकधुकी पैदा हो गई कि देखा चाहिये कि आज की रात कैसी गुजरती है तिलिस्मी चबूतरे के अन्दर से कौन निकलता है, और क्या कहता है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ८०५